Saturday, December 12, 2015

यजुर्वेद ९-२३ (9-23) वाज॑स्ये॒मम्प्र॑स॒वः सु॑षु॒वे ग्रे॒ सोम॒ राजा॑न॒मोष॑धीष्व॒प्सु । ताऽअ॒स्मभ्यं॒...

यजुर्वेद ९-२३ (9-23)

वाज॑स्ये॒मम्प्र॑स॒वः सु॑षु॒वे ग्रे॒ सोम॒ राजा॑न॒मोष॑धीष्व॒प्सु । ताऽअ॒स्मभ्यं॒ मधु॑मतीर्भवन्तु व॒य रा॒ष्टे जा॑गृयाम पु॒रोहि॑ताः॒ स्वाहा॑ ॥

भावार्थ:- शिष्ट मनुष्यों को योग्य है कि सब विघयाओं को चतुराई, रोगरहित और सुन्दर गुणों में शोभायमान पुरूष को राज्यधिकार देकर, उसकी रक्षा करने वाला वैद्य ऐसा प्रयत्न करे कि जिससे इसके शरीर बुद्धि और आत्मा में रोग का आवेश न हो। इसी प्रकार राजा और वैद्य दोनों सब मन्त्री आदि भृत्यों और प्रजाजनों को रोगरहित करें। जिससे ये राज्य के सज्जनों के पालने और दुष्टों के तोड़ने में प्रयत्न करते रहें, राजा और प्रजा के पुरूष परस्पर पिता पुत्र के समान सदा वर्ते।।

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