Friday, February 27, 2015

📢 आर्योद्देश्यरत्नमाल 13➡मरण🚩जिस शरीर को प्राप्त होकर जीव क्रियाकरता है, उस शरीरऔर जीव का किसी काल...

📢 आर्योद्देश्यरत्नमाल

13➡मरण🚩जिस शरीर को प्राप्त होकर जीव क्रियाकरता है,

उस शरीरऔर जीव का किसी काल मे जो वियोग हो जाना है, उसको “मरण” कहते है

🌺व्याख्या 🔊➡शरीर और जीव के अलग होने मे कोई भी कारण हो उसे “मरण”=मृत्यु कहते है

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📢 आर्योद्देश्यरत्नमाला

14➡ स्वर्ग🚩 जो विशेष सुख और सुख की सामग्री को जीव का प्राप्त होना है, वह “स्वर्ग ” कहाता है ।

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🌺 व्याख्या ➡🔊स्वर्ग ऊपर नही ।नीचे है ।नीचे भी इस धरती पर है । इस धरती पर भी जहां हम रहते है ।हम कहा रहते है घर मे परिवार मे ।हमारे ही घर परिवार मे ईश्वर पर विश्वास, ईश्वर पर विश्वास होने से प्रत्येक व्यक्ति अपने अपने कर्तव्य का पालन करेगा। कर्तव्य पालन का आधार परस्पर सत्यभाषण ।सत्य से विश्वास बढता है । परस्पर विश्वास बढ़ाने से प्रेम बढता है परस्पर प्रेम के बढ़ने से सुख की प्राप्ति होती है ।येसब विशेष सुख प्राप्ति के साधन सामग्री से शांति मिलती है । यही हमारे लिये हमारे ही घर मे स्वर्ग है स्वर्ग है । क्रमशः




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