२५ मार्गशीर्ष 10 दिसम्बर 2015
😶 “ तेरे बाहु पाश में ! ” 🌞
🔥🔥 ओ३म् यस्येमें हिमवन्तो महित्वा यस्य समुद्रं रसया सहाहु: । 🔥🔥
🍃🍂 यस्येमा प्रदिशो यस्य बाहू कस्मै देवाय हविषा विधेम ।। 🍂🍃
ऋक्० १० । १२१ । ४ ; यजु:० २५ । १२
ऋषि:- हिरण्यगर्भ: प्राजापत्य: ।। देवता-क: ।। छन्द:- विराट्त्रिष्टुप् ।।
शब्दार्थ- जिसकी महिमा को ये बर्फीले पहाड़ कह रहे हैं और जिसकी महिमा को नदियों-सहित यह समुंद्र कह रहा है ये प्रकृष्ट दिशाएँ जिसके भुजाओं के समान हैं उस सुख-स्वरूप प्रजापति देव का हम हवि द्वारा पूजन करें ।
विनय:- क्या तुम पूछते हो कि हम किस देव की उपासना करें ? यह देखो,ये ऊँचें-ऊँचें पर्वत,ये हिम से ढके हुए,आकाश से बातें करनेवाले उत्रत पर्वत-शिखर जिसकी महिमा को गा रहे हैं, यह समुद्र, यह दिग् -दिगन्त तक फैला हुआ असीम दिखाई देने वाला विस्तृत समुद्र,अपने में आ-आकर गिरनेवाली नदियों के सहित जिसके ऐश्वर्यों का बखान कर रहा है और ये दिशाएँ जिस देव की हैं, ये अनन्त दिशाएँ जिसके फैले हुए बाहुओं के समान हैं,उस देव को
हे मनुष्यों ! तुम पहचानो ।
ये ऊँचें खड़े हुए गगनचुम्बी विशाल पर्वत यदि तुम्हें किसी महान रचयिता की ओर इशारा करते हुए दिखाई देते हैं,संसार के ये अपार पारावार अपनी लहरों में उमड़ते हुए यदि तुम्हें किसी अद्भुभुत शक्ति का स्मरण दिलाते हैं और ये प्रकृष्ट दिशाएँ जिसकी बाहु हैं-ऐसा ध्यान करने पर यदि तुम्हें कोई विराट् पुरष अनुभवगोचर होता है तथा इन दिशाओं में फैले हुए संसार के देखने पर यदि तुम्हें इस सबका जीवन और प्राण होकर इसमें रमे हुए किसी आत्मा का दर्शन होता है तो वही एकमात्र देव है जोकि हम सबका उपास्य है, आराध्य है । वह ‘क’ नाम का देव है, वह सुख-स्वरूप है । आओ,हम सब प्रजानन,हम सब पुत्र उस परमदेव को नमस्कार करें,अभिमान को त्यागकर उसके चरणों में अपना मस्तक नमाएँ और अपने तुच्छ सर्वस्व की भी भेंट देकर उस आनंदस्वरूप का पूजन करें ।
🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂
ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे
🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚
from Tumblr http://ift.tt/1OUhqqu
via IFTTT
No comments:
Post a Comment