[10:44pm, 11/12/2015] भूपेश सिंह आर्य: 🌻🌷🌻🌷🌻ओ३म्🌻🌷🌻🌷
भूपेश आर्य
🌷जीवन की सात मर्यादाओं का भंग न करो🌷
विद्वानों ने व्यक्ति को पाप से बचाने के लिए सात मर्यादाओं का निर्माण किया है।उन मर्यादाओं का उल्लंघन किसी को कभी भूलकर भी नहीं करना चाहिये।
यथा:-
(1).प्रथम मर्यादा:-स्तेय त्याग-चोरी न करना।
(2).तल्पारोहण त्याग:-गुरु स्त्री अथवा किसी भी पराई स्त्री से भोग करना तल्पारोहण कहलाता है।परस्त्री संपर्क का दोष दर्शाते हुए नीतिकारों ने कहा है-
बधो बन्धो धनभ्रंशस्तापः शोक कुलक्षयः।
आयासः कलहो मृत्युर्लभ्यन्तेपर दारकै।।
पराई स्त्री से भोग करने वालों को कतल होना,कैद में पड़ना,धन का नाश,सन्ताप प्राप्ति,शोकाकुलता,कुल का नाश,थकान का आना,कलह और मृत्यु से दो-चार होना पड़ता है।अतः इससे बचना भी आवश्यक है।
(3).भ्रूण हत्या का त्याग-अर्थात् गर्भपात् से बचना अथवा अण्ड़े,मांस आदि का न खाना,किसी कवि का वचन है-
पेट भर सकती है तेरा जब सिर्फ दो रोटियां।
किसलिए फिर ढूंढता है बे-जुबां की बोटियां ।।
गर हिरस है तो हिरस का पेट भर सकता नहीं।
दुनिया का सब कुछ मिले तो तृप्त कर सकता नहीं।
[9:55am, 12/12/2015] भूपेश सिंह आर्य: (4).मादक वस्तुओं का त्याग-सुरापान,भंग,चरस,अफीम आदि बुद्धिनाशक वस्तुओं का त्याग,नशीली वस्तुओं का प्रयोग बड़ा हानिकारक है।किसी संस्कृत के कवि ने सुन्दर शब्दों में कहा है–
चित्ते भ्रान्तिर्जायते मद्य पानात् भ्रान्ते चित्ते पाप चर्यामुपैति,पापं कृत्वा द्रुगति यान्ति मूढ़ास्तस्मान्मद्यं नैव पेयं न पेयम।
नशीली वस्तुओं के सेवन से अथवा मद्य पीने से चित्त में भ्रान्ति उत्पन्न होती है,चित्त के भ्रान्त होने पर मनुष्य पाप करता है,पाप करके दुर्गति को प्राप्त होता है,इसलिए शराब नहीं पीना चाहिये,अथवा सब प्रकार के नशों से सदा उपराम रहना चाहिये।
(5).दुष्कृत कर्मों का त्याग:-बुरे कर्मों को बार बार जीवन में आवृत्ति नहीं करनी चाहिये,बुरे कर्मों से सदा बचना चाहिये-
भलाई कर चलो जग में तुम्हारा भी भला होगा।
तुम्हारे कर्म का लेखा किसी दिन बरमला होगा।
(6).ब्रह्म हत्या से बचना:-अर्थात् भक्ति का त्याग न करना,भक्ति तीन प्रकार की होती है-वेद का स्वाध्याय नित्य करना अथवा किसी वेदपाठी सदाचारी विद्वान की हत्या न करना या उसे किसी प्रकार से कष्ट न पहुंचाना,और ओंम् का जाप।
(7).पाप करके उसे न छिपाना।पाप छिपाने से बढ़ता और प्रकट करने से घटता है।इसलिए बुद्धिमान को पाप करके छिपाना नहीं चाहिये।स्वमी श्रद्धानन्द जी इसके उदाहरण हैं जिन्होंने अपने जीवन की प्रत्येक बुरी से बुरी घटना को भी लोंगो के सामने स्पष्ट रुप से प्रकट किया।
जो उपरोक्त मर्यादाओं का पालन करता है वही श्रेष्ठ पुरुष है।उस पर पाप का कभी भी आक्रमण नहीं होता।वह सदा सुख की और अग्रसर होता है।
वेद का सन्देश इस प्रकार है-
सप्त मर्यादाः कवयस्ततक्षुः तासामेकामभ्यंहुरो गात्।
आयोर्ह स्कम्भ उपमस्य नोड़े पथां विसर्गे घर्णेषु तस्थौ।।
सात मर्यादाएं बताई हैं उनमें से एक को भी तोड़ता है वह पापी है।
निश्चय से दीर्घायु की इच्छा वाले जितेन्द्रिय उत्पादक ईश्वर के आश्रय में रहते हुए और कुमार्गों का त्याग करके उत्तम लोकों को प्राप्त होते हैं उत्तम गति पाते हैं।
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