२० मार्गशीर्ष 5 दिसम्बर 2015
😶 “ मुझे बचाओ ! ” 🌞
🔥🔥 ओ३म् त्वावतो हीन्द्र क्रत्वे अस्मि त्वावतोSवितु: शूर रातौ । 🔥🔥
🍃🍂 विश्वेदहानि तविषीव उग्रँ ओक: कृणुष्व हरिवो न मर्धी: ।। 🍂🍃
ऋक्० ७ । २५ ।४
ऋषि:- वसिष्ठ: ।। देवता- इन्द्र: ।। छन्द:- पक्त्ङि।।
शब्दार्थ- हे परमेश्वर!
मैं तेरे-जैसे (आत्मीय) के कर्म के लिए ही, निःसन्देह हूँ, सदा उद्यत हूँ और
हे शूर !
तेरे जैसे रक्षक के दान में भी हूँ,परन्तु हे सेनावाले ! हे उग्र ! ओजस्विन ! तुम अब सभी दिनों के लिए,हमेशा के लिए मुझमें अपना घर कर लो,बना लो हे हरियोंवाले ! मुझे मरने ना दो ।
विनय:- हे जगदीश्वर !
तुम मेरे आत्मा के भी आत्मा हो । यह जान लेने पर अब मैं तुम्हारे-जैसे आत्मीय के कर्म के लिए सदा उद्यत रहता हूँ । मैं प्रात: से सायंकाल तक और फिर सायं से प्रात: तक जो कुछ करता हूँ वह सब प्रभो ! तुम्हारे लिए करता हूँ
हे शूर !
तुम सब संसार के रक्षक हो । इसलिए तुम्हारे लिए कर्म करता हुआ मैं अब तुम्हारे-जैसे महान रक्षक के दान में भी हो गया हूँ,तुम्हारी महान रक्षा में आ गया हूँ । तुमसे मेरा सम्बन्ध स्थापित हो गया हैं,परन्तु फिर भी यह संसार-संग्राम बड़ा विकट है । पाप की प्रबल शक्तियाँ मुझे समय समय पर अपना भय दिखलाती हैं, मुझे संत्रस्त करती रहती हैं । उस समय,
हे इंद्र !
मैं सब सुध बुध भूल जाता हूँ,तुम्हारी रक्षा,शक्ति सब भूल जाता हूँ,इसलिए मैं तो चाहता हूँ कि हे इंद्र ! तुम मुझमें अब अपना घर कर लो,सदा के लिए घर कर लो । अपनी दिव्य सेना के साथ, अपनी सब उग्रता और ओजस्विता के साथ मुझमें अपना घर बना लो । तभी ये आसुरी शक्तियाँ मुझे भयभीत ना कर सकेंगी ।
हे हरियोंवाले !
तुम अपनी ज्ञान-क्रिया और बलक्रिया के हरियों से इस सब संसार का धारण-पोषण कर रहे हो, तुम मुझे अब इस तरह विनष्ट मत होने दो । मुझमें अपना घर बनाओ और इस तरह मुझे विनष्ट होने से बचाओ ।
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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे
🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚
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