२२ मार्गशीर्ष 7 दिसम्बर 2015
😶 “हम स्नान करते हैं ! ” 🌞
🔥🔥 ओ३म् तस्य वयं सुमतौ यज्ञियस्याअपि भद्रे सौमनसे स्याम । 🔥🔥
🍃🍂 स सुत्रामा स्ववाँ इन्द्रो अस्मे आराच्चिद् द्वेष: सनुतर्युयोतु ।। 🍂🍃
ऋक् ० ६ । ४७ । १३; ऋक्० १० । १३१ । ७; यजु० २० । ५२
ऋषि:- गर्ग: ।। देवता- इन्द्र: ।। छन्द:- भुरिक्पक्त्ङि: ।।
शब्दार्थ- हम उस यजनीय देव की सुमति में हों, और उसकी कल्याणकारक सुमनस्कता, प्रसन्नता में भी हों। वह श्रेष्ठ रक्षक अपनी शक्ति-वाला परमेश्वर हमसे दूर ही द्वेष को बिलकुल हटा देवे।
विनय:- हम चाहते हैं कि हम पूजनीय परमेश्वर के प्यारे बनें। हम सदा उन यज्ञिय देव की सुमति में रहें, उनके कल्याणकारक सौमनस में बसें। हमें सदा उनकी श्रेष्ठ मति मिलती रहे, उनकी शुभ प्रसन्नता प्राप्त होती रहे। यह सब सुलभ है यदि हम उनका यजन करते रहें। वही एकमात्र इस संसार में हम मनुष्यों का यजनीय है। यजन किया हुआ वही हमारा ‘सुत्रामा’ है। उस जैसा श्रेष्ठ रक्षक हमारा और कौन हो सकता है? क्योंकि वही है जो अपनी निजी शक्ति रखता है। संसार में अन्य सभी उसी की शक्ति पाकर शक्तिमान् हुए हैं। एक वही है जोकि 'स्ववान्’ है, परन्तु उस सुत्रामा प्रभु का यजन करना आसान काम नहीं है। उसके यजन में जो सबसे बड़ा बाधक है, वह हमारा 'द्वेष’ है। तनिक-से भी द्वेष को अपने हृदय में स्थान देकर हम उसका पूजन नहीं कर सकते। जिसके लिए यह पृथिवीतल, सब संसार द्वेषरहित हो गया है वही इन्द्र प्रभु का यजन कर सकता है। इसलिए वे इन्द्र ही हमपर कृपा करें, हमसे द्वेष को सर्वथा हटाकर हमें बिलकुल द्वेषरहित कर दें। अहा! सर्वथा द्वेषरहित हो जाना, कभी भी कहीं भी द्वेष न रहना, यह कैसी सुन्दर अवस्था है। कैसी आनन्दमय अवस्था है। उस अवस्था में पहुँचकर तो इन्द्र की सुमति हमपर बरसती है और उसके सौमनस में हम स्नान करते हैं।
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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे
🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚
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