ओ३म्
हमारे हिन्दू समाज मे यह भ्रान्ति फैली हुई है की राम शिव के उपासक थे ??? जैसा की रामायण के नाम पर रामचरितमानस दिखा कर स्वर्गीय रामानन्द सागर ने भी यही दिखाया की राम ने गुरूकुल मे शिव ( पार्वती का पति ) की उपासना व आराधना की | यही नही सीता माता की खोज करते समय समुद्र तट पर शिव की उपासना और रामेश्वरम शब्द की व्याख्या भी करा दी | हालाकि रामानन्द सागर ने रामेश्वरम मन्दिर का निर्माण श्रीराम जी ने किया है यह नही दिखाया केवल उपासना को दिखाया है | यह पूरा मामला रामायण के नाम पर रामचरितमानस के कारण है | बस यही से पोपजी ने अपना अक्ल लगा पुराण की रचना की और श्रीराम जी के जाने के बाद उन्हे फिर से बुला उनसे मन्दिर का निर्माण कर यह गलतफहमी पूरे देश मे फैला दिया की रामेश्वरम ज्योतिं लिंग की स्थापना श्रीराम जी ने किया है |
धन्य हो पोपजी ऐसा करते समय तनिक भी लज्जा ना आई अपने ही महापुरूषो को बदनाम किया केवल अपने स्वार्थ वश | तनिक भी राष्ट्र भक्ति अन्दर नही बची थी क्या ????
सच्चाई :– मर्यादापुरूषोत्तम श्रीराम जी मूर्तिपूजक नही थे यह बात महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती जी ने अपने अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश मे स्पष्ट रूप मे प्रमाणित कर दिया है |
फिर भी विस्तृत जानकारी हेतू दोनो प्रसंगो की जानकारी दे रहा हूँ बाल्यकाल और सीता खोज मे श्रीराम मे मूर्तिपूजन नही किया था |
रामायण, बाल्यकांड सर्ग - १०/१५
सर्वे वेदविदः शूराः ………. सर्वे समुदिता गुणैः ||
चारो ही राजकुमार वेद के जानमेवाले , शूरवीर, परोपकारी, ज्ञानी, और सर्वगुण सम्पन्न थे |
जब चारो ही राजकुमार वेद के ज्ञाता थे और पौराणिक भी इस बात को स्वीकार करते है की वेद मे ईश्वर निराकार है , तो फिर वेद का ज्ञाता मूर्तिपूजक कैसे हो सकता है ???
रामायण, बाल्यकांड सर्ग १४/ ०२- ०३
कौसल्या सुप्रजा राम पूर्वा सन्धया ………..जेपतुः परमं जपम् ||
हे कौसल्यानन्दन ! नरशार्दूल राम ! प्रातः काल होने को है उठो, और प्रातः कृत्य ( शौच स्नान, सन्धया ) आदी कर डालो | दोनो राजकुमार ( राम और लक्ष्मण ) परमोदार महर्षि के वचन सुनकर उठ बैठे, फिर स्नान और आचमन कर संध्या कर वे गायत्री का जप करने लगे |
संध्या वंदना करने को महर्षि दयानन्द जी ने सत्यार्थ प्रकाश मे भी बताया है और पंच महायज्ञ विधि मे विस्तृत वर्णन भी किया है | इस पद्धति मे कही भी मूर्ति की आवश्यकता नही है क्योकी जब ईश्वर निराकार है तो उसकी मूर्ति कौन बना सकता है ???
रामायण, बाल्यकांड सर्ग - ०१/१४
वेदवेदाडत़्गत्त्वज्ञो धनुर्वेदे च निष्ठितः ||
ये सभी बाल्यकाल काल के प्रमाण है जो श्रीराम के मूर्तिपूजक न होने के प्रमाण है |
रामायण, युद्धकांड सर्ग - ६९/०७
एतत्तु दृश्यते तीर्थं सेतुबन्ध …….. अत्र राक्षसराजोअ यमाजगाम विभीषणः ||
यह समुद्र का दूसरा किनारा ( उत्तर तट ) दे दे रहा है जो सेतुबन्ध के नाम से प्रसिद्ध है | यह वह स्थान है जहाँ सर्वव्यापक देवो के देव महादेव ( ईश्वर का नाम ) परमात्मा ने हमारे ऊपर कृपा की थी ( जिसके सहाय व प्रेरणा से हम समुद्र पर पुल बाँध तुझे ले आये ) यही वह स्थान है जहाँ पर राक्षसेश्र्वर विभीषण मुझसे आकर मिले थे |
इन सभी प्रमाणो से यह स्पष्ट हो चुका है की श्रीराम मूर्तिपूजक नही थे वे ईश्वर की उपासना करते थे |
अब आपके मन मे प्रश्न होगा फिर रामेश्वर मन्दिर की स्थापना किसने की ????
इसका जबाव महर्षि दयानन्द जी ने सत्यार्थ प्रकाश मे दिया है की रामेश्वर मन्दिर किसने बनाया |
वे दक्षिण भारत के राजा रामचन्द्र थे |
लेकिन शायद बाबा तुलसीदास श्रीराम मे और रामचन्द्र मे अन्तर स्पष्ट नही कर पाये और देश को अन्धकार के गर्त मे ढकेल दिया यह कह कर “ शिव द्रोही मम दास कहावा, सो नर सपनेहूँ मोहे न पावा ||
धन्यवाद
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