१९ मार्गशीर्ष
😶 “ सब-कुछ देनें में समर्थ! ” 🌞
🔥🔥 ओ३म् ईशे ह्य१ग्रिरमृतस्य भूरेरीशे राय: सुवीर्यस्य दातो:। 🔥🔥
🍃🍂 मा त्वा वयं सहसावत्रवीरा माप्सव: परि षदाम मादुव:।। 🍂🍃
ऋक् ७ । ४ । ६ ।
ऋषि:- वसिष्ठ: ।। देवता- अग्रि: ।। छन्द:- स्वराट्पडि:क्त ।।
शब्दार्थ- परमेश्वर निश्चय से बहुत प्रकार के अमरपन के, अध्यात्मिक ऐश्वर्य के देनें में समर्थ है और सुन्दर वीरतासहित धन के, भौतिक ऐश्वर्य के,देने में ईशे समर्थ है,परन्तु
हे सर्वशक्तिमन् ! बलवन् !
हम तेरी वीरतारहित,कायर होकर मत उपासना करें कुरूप,विकृत होकर उपासना करें और असेवक होकर मत उपासना करें ।
विनय:- हे अग्रे !
हम तुम्हारी बहुत सी विफल उपासना करते हैं । तुम तो सर्वशक्तिमान हो, हमें सब-कुछ दे सकते हैं । हमें प्रभूत,अमृत,विविध प्रकार का आध्यात्मिक ऐश्वर्य प्रदान करने में समर्थ हो, सुवीरता आदि सहित सब प्रकार का भौतिक धन देने में समर्थ ही, परन्तु हम ही हैं जो तुम्हारी आराधना करने के अयोग्य हैं, अतएव तुम सर्वदाता से भू हम कुछ प्राप्त नहीं कर सकते । हम कितने मूर्ख हैं कि निवीर्य होकर,विकारयुक्त होकर और सेवा-रहित होकर तुम्हारा भजन करना चाहते हैं !भला,हम कायर लोग,
हे सहसावन् !
तुम्हारी क्या उपासना कर सकतें हैं ?
हम विकारयुक्त मलिन ह्रदयोंवाले तुम्हारी क्या उपासना कर सकते हैं ? हम सेवारहित स्वार्थी पुरष तुम्हारी उपासना से क्या लाभ प्राप्त करेंगें ? अत: हमने आज से निश्चय कर लिया है कि अब हम वीर्यहीन , विकृत और असेवक होकर कभी तुम्हारी उपासना में नहीं बेठेंगें । हम सब कमजोरियों को हटाकर,निर्भय वीर होकर तुम्हारें सच्चे उपासक बनेंगें । अब हम प्रात:- सायं तुम्हारा भजन किया करेंगें । सचमुच तभी हम तुम्हारे पास बैठने के योग्य होंगें, तुम्हारी उपासना करने के अधिकारी बनेंगें और तभी उपासना द्वारा तुमसे अमृतत्व आदि आध्यात्मिक ऐश्वर्यो को, वीरता आदि सद्गुणों को तथा अन्य भौतिक ऐश्वर्यों को भी प्राप्त कर सकेंगें ।
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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे
🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚
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