॥ सामवेद ॥
॥ ओ३म् ॥ अग्निम् वो वृद्धन्तमध्वराणां पुरुतमम् । अच्छा नप्त्रे सहस्वते ॥
॥ सामवेद ॥ पूर्वार्चिक: ॥ आग्नेयकाण्डम् ॥ प्रथमोSध्याय: ॥ प्रथमप्रपाठकस्य प्रथमोSर्ध: ॥ तृतीया दशति: ॥ मन्त्र : १ ॥
अर्थ :- अपने भक्तों को प्रगति मार्गपर आगे लेचलनेवाले प्रभु भक्तों को हिंसारहित उत्तम कर्मों का अनुष्ठान कराने के लिए समृद्ध बनाते है । अपने भक्तों से उत्तम श्रेष्ठ कार्य करानेवाले वह सर्वान्तर्यामी निर्मल शुद्ध प्रभु ही है । वे प्रभु अपने भक्तों का पतन कभी नहीं होनेदेते ; वे प्रभु अपने भक्तों को भी निर्मल शुद्ध और बलवान बनाते है ।
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