सामवन्दना : मां हृदय हर्ष
ओ३म् पावकवर्चा: शुक्रवर्चा अनूनवर्चा उदियर्षि भानुना।
पुत्रो मातरा विचरन्नुपावसि पृणक्षि रोदसी उभे ।। साम १८१७ ।।
सन्तान उच्च बन जाय भले, पर पितर न अपने विसराये ।
सन्तान मनुज का मान वही, मां हृदय रहे जो हर्षाये ।।
माता पिता और गुरुजन ने,
बड़े किये प्रिय पुत्र स्वजन ने,
…किया सुपावन तेज बढ़ाया
की पूर्ण न्यूनता परिजन ने ।
रवि प्रतिभा सी उँचाई दी, उन्नति के तारे चमकाये ।
सन्तान मनुज का मान वही, मां हृदय रहे जो हर्षाये ।।
माता का साथ निभाता हो,
तज दूर नहीं जो जाता हो,
कितना ही उँचा उठ जाये
इनके चरण में आता हो ।
अपना रस रक्त दिया जिसने, प्रिय पुत्र न उसको ठुकराये ।
सन्तान मनुज का मान वही, मां हृदय रहे जो हर्षाये ।।
धरती रवि की क्षमता सारी,
माता पिता ने सुत पर वारी,
जब सुत ने प्रेम प्रशस्त किया
तब रम्य खिली यह फुलवारी ।
प्रिय जनों के आलिंगन से, जी जननी का भर भर आये ।
सन्तान मनुज का मान वही, मां हृदय रहे जो हर्षाये ।।
राजेन्द्र आर्य
संगरू
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