The Ugly Duckling की कहानी आपने पढ़ी-सुनी तो होगी ही। अरे वही, जहां बत्तख के चूजों के बीच हंस का चूजा मिक्स होता है और कुरूप कहके उसे सभी दुतकारते हैं । बाद में जा कर उसे पता चलता है कि वो हंस है, बत्तख नहीं ।
वैसे ही कबूतरों के अंडों में एक बाज का अंडा मिक्स हुआ । निकला चूजा बाज का जिसे सभी कबूतर दुतकारते थे । वो बेचारा सहम कर बैठता था ।
एक दिन बिल्ली आई और सभी कबूतरों ने आँखें बंद कर ली । बाज ने नहीं, उसने बिल्ली से आँख भिड़ाई और पंख फड़फड़ाकर उसे चोंच और पंजे भी मारे । घायल बिल्ली भागी लेकिन बाद में उसने उत्पात मचाना शुरू किया । सारे कबूतर बाज को कोसने लगे कि यह सब तेरे वजह से हुआ है । आँख ही मूँद लेता तो कुछ पता भी न चलता । अब तूने बिल्ली को भड़काया है । क्या जरूरत थी ! बाज शांत रहा पेड़ की डाली पर चोंच- नाखून को तेज करता रहा । बिल्ली दूर से देखती रही, लेकिन दूर से ही गुर्राती रही, पास न आई । पर उसके गुर्राहट से डरे कबूतर बाज को ही दुगने ज़ोर से कोसने लगे ।
एक इंग्लिश मुहावरा है - elephant in the room । काफी इंट्रेस्टिंग अर्थ है - कमरे में हाथी है जिसे कमरे में मौजूद हर व्यक्ति अनदेखा कर रहा है और यूं बात कर रहा है जैसे हाथी वहाँ है ही नहीं । मतलब कोई ऐसी बड़ी समस्यासे है जिसके बारे में कोई भी बोलना नहीं चाहता ।
बाबरी टूटने के बाद कुछ ऐसे ही हो रहा है । पगलाए कबूतरों जैसे स्यूडो सेक्युलर, वामी और आदर्श लिब्रल यही धुन गाते रहते हैं कि इसके कारण रक्तपात हुआ । बदले की भावना से पाकिस्तान और बांगलादेश में मंदिर ढहा दिये गए और हिन्दू मारे दिये गए ।
क्या वाकई बाबरी के कारण यह हुआ? मूर्ख हो या हमें मूर्ख समझ रहे हो? यहाँ भारत के भी गैर बीजेपी राज्यों में जहां मुस्लिमों की संख्या उपद्रव करने के काबिल है क्या वहाँ हिंदुओं को परेशान नहीं किया जाता? पाकिस्तान और बंगला देश में तो बकरे की अम्मा कब तक खैर मनाए? और क्या कश्मीर में पंडितों को बाबरी के पहले नहीं भगाया गया था?
और एक चीज देखनेलायक है कि ये हिंदुओं को ही गरियाते हैं । बातें दोनों के बारे में करते हैं लेकिन हिंदुओं के सामने ही । इनके जो भी मत होते हैं, केवल हिंदुओं के लिए ही होते हैं ।
एक पुरानी फिल्म थी - खोटे सिक्के । उसमें एक किरदार है - हवालदार किशन चंद । दूसरे विश्व युद्ध में अपने तथाकथित पराक्रमों की कहानियाँ बयान करता रहता है । लेकिन जब गाँववालों को खूंखवार डाकू से लड़ने की बात आती है, यह फटटू साबित होता है तथा यह बात छुपाने के लिए वो हमेशा उन लड़कों को कोसते रहता है जो गाँववालों को ट्रेनिंग देने की पेशकश करते हैं ।
ऐसे ही यह कई कबूतर किशनचंद फड़फड़ाते रहते हैं और कमरे मैं मौजूद हाथी का संज्ञान लेने से इंकार करते रहते हैं । लेकिन जरा ध्यान से देखिये - वे अंधे नहीं होते और कोई भी कदम ऐसा नहीं रखते जो हाथी से टकरा जाये ।
क्या किया जाये इनका, कोई बताए?
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