सबसे प्रीतिपूर्वक धर्मानुसार यथायोग्य वर्तना चाहिए। अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करनी चाहिए। प्रत्येक को अपनी ही उन्नति से संतुष्ट न रहना चाहिए किन्तु सबकी उन्नति में ही अपनी उन्नति समझनी चाहिए। सब मनुष्यों को सामाजिक सर्वहितकारी नियम पालने में परतन्त्र रहना चाहिए और प्रत्येक हितकारी नियम में सब स्वतन्त्र रहें।
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