Tuesday, August 18, 2015

‘धार्मिक अंधविश्वासों का कारण सद्ग्रन्थों का स्वाध्याय न करना’ -मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून। AUGUST...

‘धार्मिक अंधविश्वासों का कारण सद्ग्रन्थों का स्वाध्याय न करना’ -मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।
AUGUST 17, 2015 RISHWA ARYA LEAVE A COMMENT
अंधविश्वास को किसने जन्म दिया है? विचार करने पर ज्ञात होता है कि अविद्या और अज्ञान से अन्धविश्वास उत्पन्न होता है। अन्धविश्वास दूर करने का उपाय क्या है, इस पर विचार करने पर ज्ञात होता है कि ज्ञान व विद्या से अन्धविश्वास दूर होते हैं। ज्ञान व अविद्या कहां मिलती है? इसका उत्तर है कि सदग्रन्थों का स्वाध्याय करने से ज्ञान व विद्या की प्राप्ति होती है। अतः अन्धविश्वास से बचने वा रक्षा के लिये सदग्रन्थों का स्वाध्याय आवश्यक है। सद्ग्रन्थ कौन से हैं और कौन से ग्रन्थ सद्ग्रन्थ नहीं है, इसका निर्धारण साधारण लोग नहीं कर सकते अपितु छल-कपट-स्वार्थ-अविद्या रहित शुद्ध हृदय वाले विद्वान ही कर सकते हैं। विद्वानों की अनेक श्रेणियां हैं। पुराण व अन्य मत-मतान्तरों के ग्रन्थों के अध्ययन से अज्ञान व अविद्या उत्पन्न होने से अन्धविश्वास बढ़ते हैं। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हम समाज व देश विदेश में होने वाली नाना घटनाओं में पाते रहते हैं। साधारण मनुष्यों के स्वाध्याय का सबसे उत्तम ग्रन्थ कौन सा है? इसका उत्तर है कि जिसमें अज्ञान, अविद्या व अन्धविश्वास से युक्त भ्रान्तिपूर्ण बातें न हों तथा इसके विपरीत ज्ञान व विद्या उत्पन्न करने वाली बातें हो उसे ही हम सद्ज्ञान युक्त ग्रन्थ की संज्ञा दे सकते हैं। ऐसे वेद, ज्योतिष, दर्शन, उपनिषद, स्मृति आदि अनेक ग्रन्थ हैं परन्तु संसार में सबसे उत्तम व सरल ग्रन्थ एकमात्र “सत्यार्थ प्रकाश” ही है।

प्रश्न किया जा सकता है कि सत्यार्थ प्रकाश ही अन्धविश्वासों से मुक्त ग्रन्थ है, इसका क्या प्रमाण है? इसका प्रथम उत्तर तो यह है कि यह एक सत्यान्वेषी महापुरूष महर्षि दयानन्द सरस्वती का लिखा हुआ ग्रन्थ है जिन्होंने अपना सारा जीवन सत्य की खोज, योग व ईश्वरोपासना तथा अध्ययन व अध्यापन में अर्पित किया तथा जो समाज, देश व मनुष्यमात्र सहित प्राणीमात्र के कल्याण की भावना से भरे हुए थे। यह महर्षि दयानन्द ने अपना सारा जीवन सच्चे ईश्वर, मृत्यु से बचने के उपायों, धर्म, समाज, देशहित की सभी बातों की खोज में लगाया और वह उसमें सफल हुए थे। वह इस कार्य में इसलिए सफल हो सके कि उन्हें वेद और वैदिक व्याकरण के सच्चे गुरू प्रज्ञाचक्षु स्वामी विरजानन्द सरस्वती मिले जिनका सारा जीवन ही सत्य की खोज व भ्रान्तिपूर्ण विषयों से सम्बन्धित सत्य के निर्णय में व्यतीत हुआ था। दोनों गुरू शिष्य ने मिलकर 3 वर्ष तक सच्चे ईश्वर, जीवात्मा, प्रकृति के स्वरूप तथा धर्म कर्म विषयक सभी विषयों पर गम्भीरता से चिन्तन किया। उनका मार्गदर्शक ईश्वरीय ज्ञान वेद था। वेद ईश्वरीय ज्ञान कैसे है? इसका एक उत्तर तो यह है कि यह संसार की सबसे प्राचीनतम पुस्तक होने के साथ ही सृष्टि के आरम्भ में चार ऋषियों अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा को सीधे ईश्वर से इसका ज्ञान मिला था। सृष्टि के आरम्भ में अमैथुनी सृष्टि में बड़ी संख्या में युवा स्त्री-पुरुष उत्पन्न हुए थे। माता-पिता आरम्भ में होते नहीं हैं, अतः सृष्टिकर्त्ता ईश्वर बिना माता-पिता के अमैथुनी सृष्टि करता है जो अण्डज व जरायुज न होकर उद्भिज सृष्टि के अनुरूप होती है। इन उत्पन्न मनुष्यों को अपने जीवन के कर्तव्यों को जानने, समझने व करने के लिए भाषा सहित ज्ञान की आवश्यकता थी। ज्ञान व भाषा वर्तमान में सभी को माता-पिता व आचार्यों से मिलती है। सृष्टि के आरम्भ में यह तीनों ही नहीं थे। केवल एक चेतन सत्ता ईश्वर थी जिसने इस संसार को बनाया था। दूसरी कार्य प्रकृति वा सृष्टि थी जिससे यह संसार बना था परन्तु जड़ व ज्ञानहीन होने से यह मनुष्यों को ज्ञान देने में सर्वथा असमर्थ होती है।

यह संसार ज्ञान व शक्ति के समन्वय तथा तप-पुरूषार्थ का परिणाम है जिसमें प्रकृति की भूमिका उपादान कारण के रूप में होती है। संसार को बनाने हेतु जिस ज्ञान की आवश्यक थी उसमें सब सत्य विद्यायें सम्मिलित थी। संसार की विशालता को देखकर उस चेतन व ज्ञानवान सर्वज्ञ शक्ति की विशालता व सर्वव्यापकता के भी दर्शन होते हैं। ज्ञानवान व सर्वव्यापक होने से उस शक्ति ईश्वर को सृष्टि के आरम्भ में उत्पन्न मनुष्यों को ज्ञान देने में कोई कठिनाई नहीं थी। अतः उसने मनुष्यों की आत्माओं में अपने सर्वान्तर्यामी स्वरूप से प्रेरणा द्वारा ज्ञान को स्थापित कर दिया। उस ज्ञान के कारण मनुष्य परस्पर बोलने लगे व आपस में सभी प्रकार के व्यवहार होने आरम्भ हो गये। सृष्टि को बनाने वाला ईश्वर सर्वज्ञ अर्थात् सर्वज्ञानमय होने के कारण उसका दिया हुआ वेद भी सब सत्य विद्याओं से युक्त है। इसमें अज्ञान का लेश भी नहीं है। इन तथ्यों का साक्षात्कार विद्यासम्पन्न तथा योग सिद्ध विद्वान समाधि अवस्था में करत


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