२८ मार्गशीर्ष 13 दिसम्बर 2015
😶 “ तू ही है ! ” 🌞
🔥🔥 ओ३म् मन्ये त्वा यज्ञियं यज्ञियानां मन्ये त्वा च्यवनमच्युतानाम् । 🔥🔥
🍃🍂 मन्ये त्वा सत्त्वनामिन्द्र केतुं मन्ये त्वा वृषभं चर्षणीनाम् ।। 🍂🍃
ऋ० ८ । ९६ । ४
ऋषि:- तिरश्चीर्द्युतानो वा मरुत: ।। देवता- इन्द्र: ।। छन्द:- पक्त्ङि।।
शब्दार्थ- हे इन्द्र!
मैं तुझे यज्ञार्हों का यज्ञार्ह मानता हूँ, तुझे च्युत न होनेवालों का भी च्यावयिता मानता हूँ। तुझे बलशाली प्राणियों में बहुत ऊँचा उठा हुआ, झण्डा देखता हूँ और तुझे मनुष्यों का सब कामनाओं का देनेवाला, बरसनेवाले अनुभव करता हूँ।
विनय:- हे इन्द्र!
मैंने तुझे जाना है, पहचाना है, मैं तुझे यज्ञियों-का-यज्ञिय करके देख रहा हूँ। इस संसार में जो ठीक यज्ञ चल रहे हैं, उन असंख्यात यज्ञों द्वारा बेशक असंख्यात देवों का यजन किया जा रहा है, किन्तु वे सब-के-सब यज्ञ और यजनीय अन्त में जिनका यजन कर रहे हैं वह एक देवों का देव तू ही है। वह यज्ञ ही नहीं जिसमें अंतिम ध्येय तू नहीं हैं और मैं देखता हूँ कि अच्युतों का भी च्यवन तू है । संसार के लोग जिन्हें बहुत ध्रुव और स्थायी समझते है उन्हें तू क्षणभर में च्युत कर सकता है । अपने को अचल समझनेवाले बड़े-बड़े अभिमानी सम्राटों के सिंहासनों को तू पलक मारते में धूलि में मिला देता है,बड़े-बड़े स्थिर पहाड़ों को तू एक भूकम्प से पृथ्वी के समतल कर देता है और लाखों वर्षों की उम्रवाले सम्पूर्ण ग्रहों को तू कभी एक टक्कर से चकनाचूर कर देता है । तेरी शक्ति की हम जीव लोग कल्पना तक नहीं कर सकते । हम प्राणियों में जो थोड़ी-बहुत बल राशी,सत्व दिखाई देता है,उस बल-राशि में तू हमसे ऊँचा उठा हुआ है,केत्तू-रोप है । तू हमारा ‘सत्त्वों'का केत्तू है । तू बल का आदर्श है । संसार में जो असंख्यात प्राणियों की प्रतिक्षण असंख्यात इच्छाएँ पूर्ण हो रही हैं,उन्हें तू ही ऊपर से बरसा रहा है । अज्ञानी लोग समझते है कि हमारी इच्छा पूर्ण करने वाला यह पुरुष है, या वह पुरुष है, दुसरे लोग समझते हैं कि हमारी इच्छा-पूर्ति करने वाला हमारा ज्ञान है, हमारा बल है या धन है, परन्तु हे इन्द्र! मैं तो अनुभव करता हूँ कि सब मनुष्यों की सब इच्छापूर्ति करने वाला तू ही है, एकमात्र तू ही है।
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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे
🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚
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