१९ मार्गशीर्ष 4 दिसम्बर 2015
😶 “ तेरे भरोसे ! ” 🌞
🔥🔥 ओ३म् त्वे असुर्यं वसवो।न्यृण्वन् क्रतुं हि ते मित्रमहो जुषन्त । 🔥🔥
🍃🍂 त्वं दस्यूँरोकसो अग्न आज उरु ज्योतिर्जनयत्रायीय ।। 🍂🍃
ऋक्० ७ । ५ । ६
ऋषि:- वसिष्ठ: ।। देवता- वैश्वानर: ।। छन्द:- पक्त्ङि ।।
शब्दार्थ- वसु तुझसे (आश्रित हो) प्राणवत्व को, सामर्थ्य को प्राप्त कर रहे हैं, क्योंकि वे तेरे कर्म का हे मित्र तेजवाले! सेवन करते हैं। हे अग्ने! तू आर्यों, श्रेष्ठों के लिए विस्तृत ज्योति को प्रकाशित करता हुआ दस्युओं, दूसरों का उपक्षय करनेवालों को घर से खदेड़ देता है, निकाल देता है।
विनय:- हे अग्ने!
तुझमें आश्रय लेकर ये पृथिव्यादि वसु अपने असुर्य को, प्राणवत्व को, सामर्थ्य को प्राप्त कर रहे हैं, तुझमें ही आश्रय पाकर वसु ब्रह्मचारी लोग भी अपने प्राणवत्व और प्रज्ञवत्व (बल और ज्ञान) को प्राप्त कर रहे हैं। ये वसु इस सामर्थ्य को इसलिए पा रहे हैं, बल्कि तेरे आश्रय को भी इसलिए पा रहे हैं, चूँकि ये तेरे ‘क्रतु’ का सेवन करते हैं। इस संसार में जो तेरा महान् कर्म चल रहा है उसका ये सेवन करते हैं, उसके अनुकूल आचरण करते हैं। तेरे महान् संकल्प व ज्ञान के अनुसार ये अपना व्यवहार, कर्म करते हैं, परन्तु जो लोग तेरे 'क्रतु’ का सेवन नहीं करते वे तेरे इस घर से बहिष्कृत हो जाते हैं, विनष्ट हो जाते हैं।
हे अग्ने!
तुम तो 'मित्रमह:’ हो। तुम्हारा तेज मित्र है, स्नेह करनेवाला है। जो लोग तुम्हारे इस मित्र तेज से मैत्री करते हैं वे संसार में 'आर्य’ कहलाते हैं, पर जो इस स्नेह करनेवाले तेरे तेज से द्वेष करते हैं, जिन्हें यह तेरा तेज अच्छा नहीं लगता, वे ही 'दस्यु’ नाम से पुकारे जाते हैं। अपने स्वार्थमय क्षुद्र प्रकाश में मस्त रहनेवालों, दूसरे 'दस्यु’ लोगों को तेरी विस्तृत ज्योति प्राप्त नहीं होती। इस प्रकार, हे मित्रमह:! तू आर्यों के लिए महान् ज्योति देता हुआ दस्युओं को निकाल रहा है, इस प्रकार तेरे क्रतु का सेवन करनेवालों को अपना सहारा देता हुआ, ऐसा न करनेवालों को इस परम अवलम्बन से वञ्चित रख रहा है और इस प्रकार तू तेरा सहारा लेनेवालों को प्राण व बल देता हुआ दूसरों को विनष्ट कर रहा है।
🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂
ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे
🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚
from Tumblr http://ift.tt/1HLoh6b
via IFTTT
No comments:
Post a Comment