यज्ञ व योग करने की सरलतम विधि..
( क ) यज्ञ करने की सरलतम विधि-
१. तांबें या लोहे का हवन कुण्ड लें,
२. उसमें कुछ आम की लकडी के टुकडों द्वारा गायत्री मन्त्र बोलते हुए अग्नि प्रज्जवलित करें,
३. गायत्री मंत्र बोल कर शुद्ध सामग्री ( नजदीक की आर्य समाज से या MDH हवन सामग्री) व शुद्ध घी से कम से कम बीस मिन्ट तक आहूतियां डालें |
नोट-ये हवन यज्ञ विधि उन सज्जन लोगों के लिए जो घर में दैनिक हवन या साप्ताहिक हवन करना चाहते हैं और वैदिज विधि और वेद मन्त्र का ज्ञान नहीं हैं । आप आर्य समाज से पुरोहित को बुलाकर भी हवन कर सकते है और सिख सकते हैं और पास के आर्य समाज मन्दिर में जाकर दैनिक हवन यज्ञ में जाकर विधि जान सकते हैं इसके इलावा आस्था भजन चैनल पर प्रात: 5-6 बजे तक सन्ध्या उपासना व यज्ञ को विधिपूर्वक दिखाआ जाता है-उसे देख कर भी यज्ञ करना सीख सकते हैं |यज्ञ व योग श्रेष्ठतम कर्म हैं और अनेक प्रकार के शारीरिक व मानसिक रोगों को दूर करने वाले हैं |प्रात: सायं यज्ञ व योग करना सब मनुष्यों का परम कर्तव्य है| जो धन व समय मूर्तियों की पूजा व तीर्थ यात्राओं आदि पर नष्ट किया जाता है यदि वही धन व समय यज्ञ व योग में लगाआ जाये तो मनुष्य जीवन को सफल बनाआ जा सकता है और सबको एकसूत्र में भी पिरोअा जा सकता है |
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( ख )योग अथवा ईश्वर पूजा की सरलतम विधि-
ध्यान मुद्रा में बैठ कर कम से कम आधे घंटे तक ओ३म् अथवा गायत्री मंत्र का अर्थ सहित जप करें,ध्यान में सफलता के लिये निरन्तरता व अहिंसा सत्य आदि यम नियमों का पालन करना आवश्यक है |
निराकार सर्वव्यापक सच्चिदानंद ईश्वर को प्राप्त करने या खोजने का अर्थ है-अष्टांग योग के निरन्तर अभ्यास के द्वारा ईश्वर से ज्ञान बल व आनन्द की प्राप्ति कर मोक्ष पद का अधिकारी बनना |सर्वव्यापक होने से ईश्वर सबको प्राप्त ही है परन्तु अविद्या के कारण जीवात्मा को उसकी अनुभूति नहीं होती,योगाभ्यास प्राप्त करने का प्रयास है और प्राप्त होना अनुभूति का प्रयाय है |
ऋषि मुनियों के देश भारत ( आर्यावर्त्त ) में यज्ञ व योग को छोड कर शराब, मांस, तम्बाकू, वेश्यायों व पाषाण पूजा की दुकानें होना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है | इन वेदविरुद्ध बातों का समर्थन करने वाली सरकारें,लोग व संस्थाएं घोर पाप के भागी व कठोर दण्ड के पात्र हैं |
यज्ञ व योगादि धर्मयुक्त कार्यो के अनुष्ठान में द्वन्दों को सहन करना ही तप कहलाता हैं।अर्थात सुख दुःख ,लाभ हानि ,मान अपमान ,सर्दी गर्मी को सह कर भी यज्ञ योग व वैदिक धर्म का प्रचार प्रसार करते रहना चाहिये-यही वेद का ईश्वर का आदेश है उपदेश है
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