Thursday, December 10, 2015

यजुर्वेद ७-३२ (7-32) आ घा॒ ये अ॒ग्निमि॑न्ध॒ते स्तृ॒णन्ति॑ ब॒र्हिरा॑नु॒षक् । येषा॒मिन्द्रो॒ युवा॒...

यजुर्वेद ७-३२ (7-32)

आ घा॒ ये अ॒ग्निमि॑न्ध॒ते स्तृ॒णन्ति॑ ब॒र्हिरा॑नु॒षक् । येषा॒मिन्द्रो॒ युवा॒ सखा॑ । उ॑पया॒मगृ॑हीतो स्यग्नी॒न्द्राभ्यान्त्वैष ते॒ योनि॑रग्नी॒न्द्राभ्यां॑ त्वा ॥

भावार्थ:- राजधर्म में सब काम सभा के आधीन होने से विचार-सभाओं में प्रवृत्त राजमार्गी जनों में से दो, तीन वा बहुत सभासद् मिलकर अपने विचार से जिस अर्थ को सिद्ध करें, उसी के अनुकूल राजपुरुष और प्रजाजन अपना वर्ताव रक्खें।।

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