यजुर्वेद ९-२१ (9-21)
आयु॑र्य॒ज्ञेन॑ कल्पताम्प्रा॒णो य॒ज्ञेन॑ कल्पताञ्चक्षु॑र्य॒ज्ञेन॑ कल्पता श्रोत्रँ॑ य॒ज्ञेन॑ कल्पताम्पृ॒ष्ठँ य॒ज्ञेन॑ कल्पताँय॒ज्ञो य॒ज्ञेन॑ कल्पताम् । प्र॒जाप॑तेः प्र॒जाऽअ॑भूम स्व॑र्देवा ऽअगन्मामृता॑ ऽअभूम ॥
भावार्थ:- मैं ईश्वर सब मनुष्यों को आज्ञा देता हूँ कि तुम लोग मेरे तुल्य धर्मयुक्त गुण, कर्म और स्वभाव वाले पुरूष ही की प्रजा होओ, अन्य किसी मूर्ख, क्षुद्राशय पुरूष की प्रजा होना स्वीकार कभी मत करो। जैसे मुझ को न्यायधीश मान मेरी आज्ञा में वर्त और अपना सब कुछ धर्म के साथ संयुक्त करके इस लोक और परलोक के सुख को नित्य प्राप्त होते रहो, वैसे जो पुरूष धर्मयुक्त न्याय से तुम्हारा निरन्तर पालन करे, उसी को सभापति राजा मानो।।
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