सफलता विज्ञान विचार :-
सरल से सरल काम को भी सीखना पड़ता है, चाहे बार बार देखकर ही सीखें या फिर परम्परा से ज्ञान लें।
और कार्य को सीखने में आरम्भ में असफलता ही हाथ लगती है फिर कहीं जाकर धीरे धीरे सफल होना शुरू होता है फिर अभ्यस्त हो जाता है फिर इतना प्रवीन हो जाता है कि किसी और को भी सिखाने में वह समर्थ होता है।
मैं जब आरम्भ में दाढ़ी बनाने लगा तब मुझे सिखाने वाला कोई न था, कई बार अपना गाल छीला..एक बार तो होंठ भी इतना कट गया कि टांके लगाने की नौबत आ गयी पर नही लगवाए तो ठीक होने में कई सप्ताह लग गये, सबने मना किया तेरे बसकी नही पर नही माना अब प्रवीन हो चूका हूँ मुझसे मेरे अनुज ने सीखी।
तात्पर्य यह है कि सीधे एक ही झटके में किसी को किसी भी काम में सफलता नही मिलती।
पूरा जीवन संघर्ष है…व्यक्ति को हर क्षेत्र में सफल होने के लिए बार बार प्रयास करने पड़ते हैं सहस्रों बार विफल होता है तब कहीं जाकर सफलता के दर्शन होते हैं…इसलिए व्यक्ति को कभी भी छोटी हो या बड़ी असफलता से हौंसला नही हारना चाहिए…बल्ब का आविष्कार करने वाला ९९९ बार असफल हुआ था और फिर सफल हुआ…सफल होने के लिए अदम्य साहस,धीरज और आत्मअवलोकन की निरंतर जरूरत रहती है…
अवश्य असफलता सफलता नामक श्रृंखला की पहली कड़ी है.. इसी से फिर सफलता की नवीन कड़ियां जन्म लेती हैं…आरम्भिक असफलता ही प्रबुद्ध सफलता का सबसे प्रथम आधार होती है… कोई भी व्यक्ति बिना असफल हुए सफल नही हो सकता…
मैंने असफलताओं से सीखना आरम्भ कर दिया है..अब असफल होने पर मेरा चित्त आहत नही होता, बल्कि असफलता माता के समान बताती है कि तुमने यहाँ चूक करदी तो तुम्हारी ये स्थिति हुयी…
सो मैं तो दृढ़ संकल्पित हूँ असफलताओं से हार न मानने को पर क्या आपने असफलताओं से कभी न हार मानने का दृढ़ संकल्प किया है…????
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