श्रूयतां धर्म सर्वस्वं श्रुत्वा चैवाव धार्यताम् । आत्मन: प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् ।। अर्थात धर्म का सर्वस्व ( सार) सुनो, सुनकर धारण करो ।अपनी आत्मा के प्रतिकूल व्यवहार किसी से न करो ।यही धर्म का सार है ।वैदिक धर्म प्रचारिणी सभा (रजि०)
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