Friday, December 4, 2015

तू सूर्य है हरिः सुपर्णो दिवमारुहो$र्चिषा१२, ये त्वा दिप्सन्ति दिवमुत्पतन्तम्११। ...

तू सूर्य है

हरिः सुपर्णो दिवमारुहो$र्चिषा१२, ये त्वा दिप्सन्ति दिवमुत्पतन्तम्११।

अव तां जहि हरसा जातवेदो१२, $बिभ्युदुग्रो $अर्चिषा दिवमारोह सूर्य १३।।
(अथर्ववेद १९.६५.१)


हे पूर्व क्षितिज में उदित तेजोमय सूर्य ! तू हरि है , भूतल की समस्त मलिनताओं का हरण कर सकनेवाला है ।"सुपर्ण" है, सुन्दर पंखोंवाला है । तू मध्य आकाश की ओर आरोहण प्रारंभ कर दे । उस आरोहण में विघ्न बनकर यदि कोई तुझे हिसिंत करना चाहें , तो ऊन्हें अपने तेज से नष्ट कर दे। हे जातवेदः ! हे सर्वप्रकाशक ! भयभीत न होता हुआ तू अपनी अनुपम ज्योति के साथ ऊध्र्वाकाश में पहुँच जा ।

हे मनुष्य ! सुर्य की अन्योत्कि से वेद तूझे हि उदबोधन दे रहा है । तू साक्षात् सूर्य है , ग्रहोपग्रहों के बीच में सूर्य के समान तू प्राणियों में श्रेष्ठ है । तू “हरि ” है , सूर्य के समान जगत् के मालिन्य को हरकर उसे शुद्ध - पवित्र बनाने की क्षमता तुझमें है । जगत् में जो छल - छिद्र , हिंसा -उपद्रव , चोरी -जारी , असत्य - अन्याय आदि कालुष्य हैं , उन सबको तू हर। तू “सुपर्ण” है , उन्नती के गगन में उड़के लिए मन , बुद्धी आदि सुंदर पंख तेरे पास विद्यमान हैं । तू उँची उडा़न भर और क्षणभर में लक्ष को प्राप्त कर ले । पर यह उड़ने का मार्ग बहुत आसान नही है। राग , व्देष , निन्दा , उपहास आदि अनेक विघ्न तेरी उडा़न में बाधा डालना चाहेंगे । किन्तु यदि तुझे यह स्मरण रहेगा कि तू सूर्य है और तुझे उत्कर्ष के ऊध्र्वा काश में पहुँचकर हि विश्राम लेना है , तो तू कभी इन शत्रुओं , संकटों और विपदाओं से परास्त नही होगा। सब मानवीय और दैवी विपत्तियों को तू अपने तेज से झुलसाता चल । तू “जातवेदाः” है , प्रकाशक है, प्रकाशवान् है , ज्ञानवान् है । भयभीत मत हो , उत्साह धारण कर , आरोहण करता हुआ अपनी प्रखर ज्योति - सहित उन्नती के सर्वोच्च गगन में पहुँच जा ।

Pandit Lekhram Vedic Mission

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