|•| सावत्री सार |•|
*ओ३म् – गुणगण रक्षण आदि सुहायो, ब्रह्मनाम निज ओ३म् कहायो |
*भूः – तुमहु प्राण प्रभु प्राण सहारे,
*भुवः – सब संकट के मोचन हारे |
*स्वः – तुम सुख-सम्पत् के हो दानी, परमानन्दधाम विज्ञानी |
*सवितुः – जग रचते सुन्दर तुम स्वामी, हो प्रकाश मम अन्तर्यामी |
*देवस्य – सद्दगुण दिव्य शक्ति के दाता, तुम हो सकल जगत् विख्याता |
*वरेण्यम् – वरण योग्य तव नाथ ! प्यारा,
*भर्गः – ऐश्वर्य, जग व्यापन हारा |
*तत् धीममहि – उसे वरूं नाचूं गाऊँ, उस ही को ध्याऊँ अरू पाऊँ |
*यः – जो विज्ञान रूप है प्यारा, शरणागत का एक सहारा |
*नः – उससे आज विनती है मेरी,
*धियः – नशे कुमति करे न देरी | अटल भक्ति मेरी मति धारे, गहे प्रेम, अभिमान बिसारे | शुभ कर्मों में रूचि विकसावे, सुखद समर्पण भाव जगावे |
*प्रचोदयात् – इस विधि यह ऐश्वर्य तिहारो, मति गति को हो प्रेरण हारो ||
ओ३म्…!
आर्यसमाज अमर रहे ||
ओ३म् का झण्डा ऊचा रहे ||
मूल कवि– स्वामी आत्मानन्द सरस्वती
S• Media लेखक– आर्यन “द फ्यूहरर”
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