Saturday, December 5, 2015

|•| सावत्री सार |•| *ओ३म् – गुणगण रक्षण आदि सुहायो, ब्रह्मनाम निज ओ३म् कहायो | *भूः...

|•| सावत्री सार |•|

*ओ३म् – गुणगण रक्षण आदि सुहायो, ब्रह्मनाम निज ओ३म् कहायो |

*भूः – तुमहु प्राण प्रभु प्राण सहारे,

*भुवः – सब संकट के मोचन हारे |

*स्वः – तुम सुख-सम्पत् के हो दानी, परमानन्दधाम विज्ञानी |

*सवितुः – जग रचते सुन्दर तुम स्वामी, हो प्रकाश मम अन्तर्यामी |

*देवस्य – सद्दगुण दिव्य शक्ति के दाता, तुम हो सकल जगत् विख्याता |

*वरेण्यम् – वरण योग्य तव नाथ ! प्यारा,

*भर्गः – ऐश्वर्य, जग व्यापन हारा |

*तत् धीममहि – उसे वरूं नाचूं गाऊँ, उस ही को ध्याऊँ अरू पाऊँ |

*यः – जो विज्ञान रूप है प्यारा, शरणागत का एक सहारा |

*नः – उससे आज विनती है मेरी,

*धियः – नशे कुमति करे न देरी | अटल भक्ति मेरी मति धारे, गहे प्रेम, अभिमान बिसारे | शुभ कर्मों में रूचि विकसावे, सुखद समर्पण भाव जगावे |

*प्रचोदयात् – इस विधि यह ऐश्वर्य तिहारो, मति गति को हो प्रेरण हारो ||

ओ३म्…!
आर्यसमाज अमर रहे ||
ओ३म् का झण्डा ऊचा रहे ||
मूल कवि– स्वामी आत्मानन्द सरस्वती
S• Media लेखक– आर्यन “द फ्यूहरर”


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