|| वेदों का प्रकाश ||
प्रश्न:–
किनके आत्मा में और कब वेदों का प्रकाश हुआ ?
उत्तर:–
“अग्रेर्वा ऋग्वेदा वायोर्यजुर्वेद: सूर्यात्सामवेद: ||” (शत० ११/५/८/३)
अर्थ:–
प्रथम सृष्टि की आदि में परमात्मा ने अग्नि, वायु, आदित्य तथा अंगिरा इन ऋषियों के आत्मा में एक-एक वेद का प्रकाश किया ||
प्रश्न:–
“यो वै ब्रह्माणं विदधाति पूर्वं यो वै वेदांश्च प्रहिणोति तस्मै ||” (श्वेताश्व ६/१८)
यह उपनिषद् का वचन है— इस वचन से ब्रह्माजी के हृदय में वेदों का उपदेश किया है | फिर आग्न्यादि ऋषियों के आत्मा में क्यों कहा ?
उत्तर:–
ब्रह्मा जी के आत्मा में अग्नि आदि के द्वारा स्थापित कराया |
देखो ! मनुस्मृति में क्या लिखा है—
“अग्निवायुरविभ्यस्तु त्रयं ब्रह्म सनातनम् | दुदोह यज्ञसिध्दयर्थमृग्यजु: समालक्षणम् ||” (मनु० १/२३)
अर्थ:–
जिस महात्मा ने आदि सृष्टि में मनुष्यों को उत्पन्न करके अग्नि आदि चारों महर्षियों के द्वारा चारों वेद ब्रह्मा को प्राप्त कराये और उस ब्रह्मा ने अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा से ऋग्, यजु:, साम और अथर्वेद का ग्रहण किया ||
उपर्युक्त प्रश्न-उत्तर का सार यह है कि सृष्टि के प्रारम्भ में परमेश्वर ने चार महर्षियों अग्नि, वायु, आदित्य और अंगिरा को क्रमशः ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्वेद नामक एक-एक वेद का ज्ञान दिया पश्चात् चारो महर्षियों ने अपने-अपने वेद ज्ञान को ब्रह्मा नामक महर्षि को दिया ||
ओ३म्…!
आर्यसमाज अमर रहे ||
ओ३म् का झण्डा ऊचा रहे ||
आधार ग्रन्थ– सत्यार्थ प्रकाश सप्तम: समुल्लासः ||
S• Media लेखक– आर्यन “द फयूहरर”
from Tumblr http://ift.tt/1NVL69U
via IFTTT
No comments:
Post a Comment