“कृष्ण ऐतिहासिक पुरुष है इसमे संदेह करने की कोई गुंजाईश नही दिखती और वे अवतार के रुप मे पूजित भी बहुत दिनों से चले आ रहे है . उनका संबंध फसल और गाय से था, यह भी विदित बात है . प्राचीन ग्रंथों मे उनके साथ जो प्रेम की कथाएं नहीं मिलती , उससे भी यही प्रमाणित होता है कि वे कोरे प्रेमी और हल्के जीव नही , बल्कि देश और धर्म के बहुत बड़े नेता थे . अवश्य ही, गोपाल-लीला , रास और चीर-हरण की कथाएं तथा उनका रसिक रुप बाद के भ्रांत कवियों और आचारच्युत् भक्तों की कल्पनाएं है, जिन्हें इन लोगों ने कृष्ण-चरित में जबरदस्ती ठूंस दिया . शकों के ह्रास काल मे जिस प्रकार महादेव का रुपान्तर लिंग मे हुआ , उसी प्रकार गुप्तों के अवनति-काल मे वासुदेव का रुपान्तर व्याभिचारी गोपाल मे हुआ . ”
…….रामधारी सिंह दिनकर रचित ‘संस्कृति के चार अध्याय’ नामक पुस्तक की पृष्ठ संख्या ९९ से उधृत !!
नोट :- मै इस पुस्तक के अधिकांश बातों से सहमत नही हूं , क्योंकि इसे पढ़ने के बाद आपको पता चल जाएगा कि रामधारी सिंह दिनकर जी भी विद्वानों की उस श्रेणी मे से है जो हमारी सभ्यता और संस्कृति को अति विकृत रुप मे दिखाने वाले पश्चिमी विद्वानों के मानस पुत्र कहे जाते हैं . फिर भी बहुत जगह सही बातों का समावेश किया है जिसमे से भगवान कृष्ण के बारे मे कहा गया यह एक अंश है जिसमे अवतारवाली बात को छोड़कर अन्य स्वीकारने योग्य है .
सबसे बड़ी बात है कि दिनकर साहब हमारे प्रथम प्रधानमंत्री नेहरु जी के भक्त है और मुझे लगता है कि वे नेहरु जी को ही खुश करने के लिए अनुमानों के आइने मे 'संस्कृति के चार अध्याय’ की रचना करके अपनी करोड़ो वर्ष पुरानी संस्कृति के इतिहास को पश्चिमी विद्वानों के मानस पुत्र कहे जाने वालों के कल्पनाओं के सहारे तोड़-मरोड़ कर पेश किया है !
आजकल मै इस पुस्तक का स्वाध्याय कर रहा हूं , नवीन जानकारी से अवगत कराता रहुंगा !
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