भजन बीन नर है पशू के समान
जैसो फिरत है ढोर हरायो
खात फिरत है घास परायो
जवने धनीको नाम लजायो मुढ मुरख मस्ताना
भजन बीन जीवन पसु के समान
काल बचन दे बाहिर आयो
आ कर लोभ मे चित लगायो
धिक धिक हर को गुन नही गायो बे बचनी नादान
अझानी तो क्या फल पाव
तेरी मेरी मे जनम गुमावे
हीरला हाथ फिर कहासे आवे नीकल गये जब प्राण
प्रेमसें हरका गुन जो गावे
ग्यानी हो कर ध्यान लगावे
“"दास सतार”“ वोही फल पावे जो भजते भगवान
भजन बीना जीवन पशु के समान
राजु कारेथा
from Tumblr http://ift.tt/1NVL6GM
via IFTTT
No comments:
Post a Comment