गतांक से आगे
विक्रान्त वृत्ति पातंजलि योगशास्त्र सूत्र ३
तदा द्रष्टु: स्वरूपे अवस्थानाम् ।।३।।
जब चित्त वृत्तियों को निरोध होजाता है तो क्या होता है?
उत्तर:- तब द्रष्टा की स्व रूप में स्थिति होती है।
यहाँ द्रष्टा दोनो पुरुषो को कहा जा सकता है,पुरुष यानि जीवात्मा और पुरुष विशेष ईश्वर को।
जब वृत्तियाँ नही रहती तो आत्मा की चेतन शक्ति वा सत्ता चित्त से हटकर स्व अर्थात् अपने रूप में तदन्तर ईश्वर स्वरूप में स्थित हो ज
जाती है।
ये विवेक ख्याति के पश्चात् आती है।
जीवात्मा और परमात्मा चेतन होने से सजातीय है अतः चित्त से हटने के उपरांत सरलता से ही जीव परम पुरुष की निर्लेप गोद में ठहर जाता है और ईश्वर की भांति ही उसके सानिध्य में उसके आनंद का भोग करता है।
और जो जड चित्त है उसकी वृत्तियाँ भी अपने मूल चित्त में सिमटकर विलीन हो जाती हैं।
शरीर रहते ये स्थिति प्राप्त करनी होती है,जिससे जीवित ही व्यक्ति मोक्ष को उपलब्ध हो जाता और देह छूटने पर निरंतर मोक्ष का अनुभव करता है;जिसने जीते जी ये स्थिति प्राप्त नही की उसका मृत्यु के पश्चात् मोक्ष सम्भव नहीं।।३।।
निरोध होने पर तो आत्मा स्वरूप में स्थित हो जाता है,परन्तु जब निरोध नही होता तो किस स्थिति में होता है; इस प्रश्न के उत्तर में अगले सूत्र की रचना हुयी।।ॐ।।
क्रमशः
व्याख्या की प्रतिलिपि करके आगे बढ़ाने में सहयोग करें कृपया सबसे अनुरोध है।। ॐ।।
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