|| वैदिक वीर गर्जना–२ ||
¶ ऋग्वेद १०/४८/५
“अहमिन्द्रो न परा जिग्य इद्धनं न मृत्युवेSव तस्थे कदाचन |”
अर्थ:–
सुनो, मेरा परिचय सुनो ! मैं इन्द्र हूँ, बाँका वीर हूँ, धन-दौलत का प्रलोभन व मृत्यु मुझे परास्त नहीं कर सकते ||
¶ यजुर्वेद २०/७
“बाहू मे बलमिन्द्रय्ँहस्तौ मे कर्म वीर्यम् | आत्मा क्षत्रमुरो मम ||”
अर्थ:–
मेरी भुजाओं में इन्द्र का–सा बल है, हाथों में कर्म और सामर्थ्य है | मेरी आत्मा दुःखियों का कष्ट दूर करने वाली है, मेरी छाती स्वयं चोटें खाकर दूसरों को बचाने वाली है ||
¶ अथर्वेद ११/१०/१
“उतिष्ठत सं नह्यध्वमुदाराः केतुभि: सह | सर्पा इतरजना रक्षांस्यमित्राननु धावत ||”
अर्थ:–
उठो वीरो ! कमर कस लो, झण्डे, धर्म ध्वज या राष्ट्रध्वज हाथों में पकड़ लो | जो भुजंग हैं, लम्पट हैं, देशद्रोही हैं, राक्षस हैं, शत्रु हैं, उनको परास्त करके देवत्व की विजय व असुरत्व की पराजय करो ||
हे मेरे भारतीय वीरो ! पुनः वेद मार्ग पर लोटो ||
ओ३म्…!
जय आर्य ! जय आर्यावर्त !!
S• Media लेखक– आर्यन “द फयूहरर”
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