वेद –
केवल वेद ही हमारे धर्मग्रन्थ हैं ।
वेद संसार के प्राचीनतम ग्रन्थ हैं ।
वेद का ज्ञान सृष्टि के आदि में परमात्मा ने
अग्नि , वायु , आदित्य और अंगिरा – इन चार ऋषियों को समाधि की अवस्था में एक साथ दिया था ।
वेद पढने-सुनने का अधिकार सभी मनुष्यों को है।
वेद चार हैं —-
१. ऋग्वेद – इसमें तिनके(तृण) से लेकर ब्रह्म–पर्यन्त सब पदार्थो का ज्ञान दिया हुआ है ।
इसमें १०,५५२ अथवा १०५८९ मन्त्र हैं ।
मण्डल –१०.
सूक्त-१०२८
शाखा –२०
ब्राह्मण - ऐतरेय
उपवेद – आयुर्वेद
मूलवेद - शाकल शाखा
मन्त्र-उच्चारण - शीघ्र-वृत्ति
२. यजुर्वेद – इसमें कर्मकाण्ड है । इसमें अनेक प्रकार के यज्ञों का वर्णन है ।
इसमें १,९७५ मन्त्र हैं।
अध्याय – ४०
शाखा - १००
ब्राह्मण – शतपथ
उपवेद - धनुर्वेद
मूलवेद - माध्यन्दिनी शाखा
मन्त्र-उच्चारण - मध्यम-वृत्ति
३. सामवेद – यह उपासना का वेद है।
इसमें १,८७५ मन्त्र हैं ।
ब्राह्मण – ताण्ड्य या छान्दोग्य ब्रह्मण ।
शाखा - ९९९
उपवेद - गान्धर्ववेद
मन्त्र-उच्चारण - विलम्बित-वृत्ति
मूलवेद - कौथुमी शाखा
४. अथर्ववेद –इसमें मुख्यतः विज्ञान–परक मन्त्र हैं ।
इसमें ५,९७७ मन्त्र हैं ।
काण्ड - २०
सूक्त-७३१
शाखा - 8
ब्राह्मण – गोपथ
उपवेद - अर्थवेद
मन्त्र-उच्चारण - शीघ्र-वृत्ति
मूलवेद - शौनक शाखा
उपवेद – चारों वेदों के चार उपवेद हैं । क्रमशः – आयुर्वेद , धनुर्वेद , गान्धर्ववेद और अर्थवेद (स्थापत्यवेद) ।
उपनिषद – प्रामाणिक उपनिषदों की कुल संख्या ११ ही हैं । इनके नाम हैं — ईश , केन , कठ , प्रश्न , मुण्डक , माण्डूक्य , तैत्तिरीय , ऐतरेय , छान्दोग्य , बृहदारण्यक और श्वेताश्वतर ।
ब्राह्मणग्रन्थ – इनमें वेदों की व्याख्या है ।
चारों वेदों के प्रमुख ब्राह्मणग्रन्थ ये हैं —
ऐतरेय , शतपथ , ताण्ड्य और गोपथ ।
(उपांग)– दर्शन छह हैं – न्याय , वैशेषिक , सांख्य , योग , मीमांसा और वेदान्त
स्मृति – प्रक्षिप्त श्लोकों को छोङकर मनुस्मृति ही प्रमाणिक स्मृति है ।
वेदों के छह वेदांग – शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरूक्त+निघंटु, छन्द, ज्योतिष ।
वेदों के छह उपांग (दर्शनशास्त्र) – जिन को छः दर्शन या छः शास्त्र भी कहते हैं ।
१. महर्षि कपिल का सांख्य दर्शन
२. महर्षि गौतम का न्याय दर्शन
३. महर्षि पतंजलि का योग दर्शन
४. महर्षि कणाद का वैशेषिक दर्शन
५. महर्षि व्यास का वेदान्त दर्शन
६. महर्षि जैमिनि का मीमांसा दर्शन
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