Saturday, August 6, 2016

नमस्ते मित्रो, गंगा के तट पर एक सन्यासी ईश्वर के ध्यान में बैठा हुआ था तभी उन्हें गंगा के जल में...

नमस्ते मित्रो,
गंगा के तट पर एक सन्यासी ईश्वर के ध्यान में बैठा हुआ था तभी उन्हें गंगा के जल में किसी वस्तु के गिरने की आवाज सुनाई दी । सन्यासी ने आंखे खोल कर देखा कि एक औरत रोते हुए गंगा के जल में कुछ बहाकर और एक कपडे के टुकडे को धोकर वापिस रख रही है सन्यासी ने उत्सुकता वश औरत से पूछा माता आप रो क्यों रही है और आपने गंगा के जल में क्या वस्तु बहाई है और यह कपडे के टुकडे को धोकर वापिस क्यों ले जा रही है सन्यासी की बात सुनकर वह औरत बोली महाराज मैं एक विधवा औरत हूं और जिसे मैं गंगा में बहाकर आ रही हूं वह मेरा इकलौता बेटा था । गरीबी के कारण उसकी मौत हो गई । विधवा औरत का मुंह देखना लोग पाप समझते है इसलिए मेरे बेटे का दाहसंस्कार करने कोई व्यक्ति नहीं आया और गरीबी के कारण मेरे पास कफन के लिए पैसे नहीं थे इसलिए मैने अपनी साडी को फाड कर कफन बनाया और अब इस कफन के कपडे को धोकर वापिस अपनी साडी में जोड लूंगी जिससे मेरा तन ढक जाएगा ।
मित्रो,
उस औरत की बात सुनकर और अज्ञानता, अंध विश्वास , गरीबी के कारण अपने देश के लोगों की दुर्दशा देखकर वह सन्यासी दो दिन तक भूखा प्यासा रहकर रोता रहा ।
मित्रो,
क्या आप जानते है कि अपने देश के लोगों के कष्ट और गरीबी पर रोने वाला वह सन्यासी कौन था । वह सन्यासी था गुरूवर महर्षि दयानंद सरस्वती ।
मेरे देवता के बराबर जहां में कहीं देवता ना कोई और होगा,
जमाने में होंगे बहुत लोग पैदा , देव दयानंद सा ना कोई और होगा ।
मुझे गर्व है कि मैं उसी महर्षि देव दयानंद सरस्वती के बताए मार्ग पर चल रहा हूं । ओ३म


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