वेदानुसार विद्यार्थी अनुशासन – २
गुरु शिष्य को गर्भ में धारण करे
डा. अशोक आर्य
वेद में विद्यार्थी क लिए जिस अनुशासन का वर्णन किया गया है , आज का विद्यारती उसे पुराणी बातें मानाने लगा है | वह पुराणी लकीरों पर चलना नहीं चाहता | वास्तव में ज का विद्यार्थी केवल अपने अधिकारों की और देखता है , कर्तव्यों की उसे चिंता ही नहीं है | यह सब मेकाले की दी हुई शिक्षा पद्धति का ही परिणाम है | जब तक देश में गुरुकुल शिक्षा पद्धति रही तब तक गुरु शिष्य का उत्तम समन्वय होने के कारविद्यार्थी कुमारों को इस प्रकार ण विद्यार्थी अनुशासन से अलग नहीं होता था किन्तु मेकाले ने जी विष भारत के विद्यार्थियोंमें भरा , उसका परिणाम आज हमारे सामने है | आज हम इस त्रुटी से दु:खी तो हैं किन्तु इस का समाधान खोजने की नहीं सोचते | जब इस के समाधान पर विचार करते हैं तो एक दम वेद की शिक्षाएं हमारे सामने आती हैं | देखें यजुर्वेद इओस सम्बन्ध में क्या कह रहा है ? :-
आधत्त पितरो गर्भ कुमारं पुष्करस्रजम् |
यथेह पुरुषोSसत् || यजुर्वेद २.३३. ||
यजुर्वेद का यह मन्त्र उपदेश करते हुए हमें मार्ग दर्शन कर रहा है और बता रहा है कि ईश्वर की आज्ञानुसार सकल जगत् के सब स्त्री तथा पुरुषों में जितने भी विद्वान् लोग हैं , वह सब विद्यार्थी कुमारों को इस प्रकार अपने गर्भ में धारण करें , जिस प्रकार स्त्री अपने गर्भ को धारण करती है |
मन्त्र स्पष्ट संकेत कर रहा है कि गुरु को चाहिए कि वह अपने शिष्यों को अपने गर्भ में धारण करे | हम जानते हैं कि एक महिला माता बनने के लिए अपने गर्भ में संतान का किस प्रकार पालन करती है ? उस की गर्भस्थ संतान नो महीने तक उसके गर्भ में रहती है | इन नो महीने में उस माता का जीवन संकटों से भरा होता है | वह प्रतिक्षण इस गर्भस्थ शिशु को संभालती है | इस शिशु को कोई कष्ट न हो इस के लिए स्वयं कष्टों में रहती है |
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इस अवस्था में वह न ठीक से चल सकती है , न ठीक से लेट अथवा सो सकती है, न ठीक से किसी से बात ही कर पाती है और न ही ठीक से खा ही पाती है | वह बहुत कमजोर हो जाती है , अशक्त सी हो जाती है | उसे बहुत धीरे और सम्भल कर चलना होता है , ताकि उसकी संतान जो आने वाली है सुरक्षित रहे | ऊंचे स्थान पर नहीं जा सकती , संकरे स्थान पर भी वह कष्ट अनुभव करती है तथा उबड़ खाबड़ स्थान पर वह किसी की सहायता के बिना चल ही नहीं पाती | कई बार तो एक छोटी सी ठोकर उसकी मृत्यु का कारण बन जाती है अथवा उसका गर्भस्थ शिशु नष्ट हो जाता है अथवा गिर जाता है | गर्भस्थ शिशु के गिरने से भी माता के जीवन को संकट में डाल देता है और अनेक बार तो इस अवस्था में माता की भी मृत्यु हो जाती है |
इसलिए ही गुरु के लिए मन्त्र आदेश देता है कि गुरु अपने शिष्य को अपने गर्भ में इस प्रकार धारण करे , जिस प्रकार माता अपनी संतान को एक लम्बे समय तक अपने गर्भ में रखते हुए उस की सुरक्षा का हर संभव यात्न करती है | गुरु भी बालक को अपने गर्भ के समान ही अपने पास रखे तथा उसके सुखों की कामना करते हुए इस प्रकार के उपाय करे कि उसका शिष्य अपने आप को सुरक्षित अनुभव करे तथा किसी भी संकट के समय गुरु के चरणों में जाकर अपनी समस्या गुरु के सामने रखे और उसका समाधान गुरु से प्राप्त करे | इस प्रकार गुरुकुल में रहते हुए बालक अपनत्व की भावना से रहे तथा उत्तम शिक्षाओं को ग्रहण करे | जब गुरु से बालक को मातृवत् स्नेह मिलेगा तो निश्चय ही बालक गुरु आज्ञा में रहेगा तथा सब प्रकार के अनुशासन का पालन करेगा |
हम यह भी जानते हैं कि गर्भ में रहते हुए बालक बढ़ता रहता है | इस प्रकार ही गुरुकुल में रहते हुए गुरु से बालक को निरंतर शिक्षा मिलाती रहती है | गुरु के इन उपदेशों से बालक का ज्ञान , बालक की बुद्धि, बालक के आचार विचार भी बढ़ाते रहते हैं , वृद्धि को प्राप्त होते रहते हैं | इससे ही शिष्यों की अच्छी अच्छी तथा श्रेष्ट विद्या तथा गुरु की दी गई शिक्षा से उस ब्रह्मचारी अथवा उस शिष्य की श्रेष्ठ विद्या से निरंतर वृद्धि व उत्तम पालन का कार्य गुरु द्वारा गुरुकुल में रहने वाले बालकों का होता है |
गुरु चाहता है कि उसके शिष्य पुरुषार्थी बनें | वह चाहता है कि उसके शिष्य पुरषार्थ करते हुए सदा सुखी रहें | गुरु अपने शिष्यों को पुरुषार्थी व सुखी बनाने के लिए अत्यधिक पुरुषार्थ करते हुए उन्हें मेधावी बनाने के लिए सदा यत्न करता है | एक उत्तम
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माता की संतान सदा उत्तम ही होती है | इस प्रकार ही एक उत्तम गुरु की संतान ( शिष्य ) भी मेधावी , पुरुषार्थी तथा कर्मशील रहते हुए अपने कर्म तथा अपने पुरुषार्थ के कारण अपने माता पिता के साथ ही साथ अपने गुरु का नाम भी अमर करने का कारण बनाते हैं | इस प्रकार का अनुष्ठान , इस प्रकार का पुरुषार्थ गुरु को सदा ही करते रहना चाहिए | जब गुरु सदा इस प्रकार का पुरुषार्थ करेंगे तो निश्चय ही इस देश की भावी संतान आज्ञाकारी , पुरुषार्थी, माता – पिता तथा गुरु जनों का सम्मान करने वाले , देश की उन्नति व रक्षा चाहते हुए पुरुषार्थ करने वाले होंगे, तथा सदा अनुशासन प्रिय होगी | |
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