🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺शौचास्त्वांगजुगुप्सा परैरसंसर्गः ||~~योगदर्शन~साधनपाद~सूत्र~40~~~~~~~पद्य में भाव~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~जब योगी अंदर बाहर से, शुद्ध विमल हो जाता है| तन से वह सम्बन्ध न रखता, मन ईश्वर में लगाता है| पांच नियम में शुचिता पहला, जिसका फल बतलाया है| निरासक्त जो विचरे जग में, सफल करे निज काया है||👏
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