Thursday, November 22, 2018

*प्रश्न :- धर्म तो श्रद्धा और भावना का विषय है फिर उसमें तर्क करने की क्या आवश्यक्ता है ?**उत्तर :-*...

*प्रश्न :- धर्म तो श्रद्धा और भावना का विषय है फिर उसमें तर्क करने की क्या आवश्यक्ता है ?*

*उत्तर :-* यस्तर्केणानुसन्धते स धर्मम् वेद नेतरः ।। ( मनुस्मृति 12/106)

जो तर्क के द्वारा अनुसंधान करता है उसी को धर्म का तत्व बोधित होता है ।धर्म का ज्ञान सत्य जाने बिना प्राप्त नहीं होता।मानो तो देव ,ना मानो तो पत्थर ।ऐसा कहने वालो से एक बार पूछो की मै आपको दस का नोट सौ रुपए मान कर देता हूं ।आप दस के नोट को सौ रुपए मान कर रख लो।क्या आपका कहा मानकर वह दस रुपए का नोट सौ रुपए का मान कर रख लेगा ।कदापि नहीं मानेगा वो। वह उसे दस का ही नोट मानेगा।इसलिए कोई भी चीज केवल मान लेने से नहीं बल्कि सत्य मानने और होने से ही होती हैं।जैसे पत्थर की मूर्ति को भगवान मान लेने से वह भगवान नहीं कहलाएगी।वह पत्थर की मूर्ति जड़ ही कहलाएगी ।चेतन नहीं।और ईश्वर का स्वरूप चेतन है ।मूर्ति में ईश्वर अवश्य है क्युकी ईश्वर सर्वव्यापक है परन्तु पूजा और उपासना ईश्वर की वहा हो सकती जहां आत्मा और पमात्मा दोनों ही विराजमान हो।मूर्ति में ईश्वर तो है परन्तु आत्मा नहीं है क्युकी मूर्ति तो जड़ पदार्थ है ।मूर्ति प्रकृति के अंश से बनी है ।लेकिन आपके हृदय -मन मंदिर में आत्मा भी है और परमातमा भी है ।अत:अपने मन में आत्मा द्वारा योग विधि द्वारा हृदय में बसने वाले परमात्मा की पूजा करो।

किसी पदार्थ में श्रद्धा तो उस पदार्ध को यथार्थरूप में जानने पर ही होती है । तो यदि तर्क से धर्म के शुद्ध विज्ञान को न जाना तो श्रद्धा किस पर करोगे ? कटी पतंग की भांती इधर उधर उड़ना ठीक नहीं है ।

सत्य जानकर उस पर विशवास करना ही *श्रद्धा* कहलाती है ।

और सत्य जाने बिना विश्वाश कर लेने को *अंधश्रद्धा* कहते है ।

लोगो ने धर्म व ईश्वर के सम्बन्ध में अंधश्रद्धा को श्रद्धा समझ कर मानना प्रारम्भ कर दिया है ।

जैसे मुसलमानो की कब्रो , साईं जैसे पीरो, मजारो को भगवान् की तरह पूजना *अंधश्रद्धा* व उनकी सच्चाई जानकार की ये सभी तो दुस्ट मुसलमानो की कब्रे है , उन कब्रो का तिरस्कार करना ही *श्रद्धा* है ।

हनुमान व गणेश को बन्दर हाथी , शिवजी को भंगेडी, क्रष्ण को रसिया मान लेना *अंधश्रद्धा* , इन्हें महापुरुष मानना श्रद्धा है।

पुराणों की जादू चमत्कारों की झूठी कथाओं को सच मानना *अंधश्रद्धा* व वेदज्ञान को जान परख कर धर्म का आधार मानना *श्रद्धा* है ।

श्रद्धा और विश्वास के साथ सत्य का होना नितांत आवश्यक हैं ।क्युकी ज्ञान -विज्ञान से रहित आस्था ही अंधविश्वास कहलाती हैं।

और धर्म को अनुसन्धान बुद्धि विवेक से जाने 🙏🏼🙏🏼

ओ३म् .राहुल क्रांतिकारी आरय।


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