Saturday, October 31, 2015

आज का सुविचार (1 नवम्बर 2015, रविवार, कार्तिक कृष्ण ६) पाप-विद्धम्’ व्यवस्था घोर अक्षम है।...

आज का सुविचार (1 नवम्बर 2015, रविवार, कार्तिक कृष्ण ६)

पाप-विद्धम्’ व्यवस्था घोर अक्षम है। `पाप-विद्धम्’ व्यक्ति भी अक्षम है। आज दुःखद तथ्य है कि सेमीनार, मन्दिर, मसजिद, गिरजे, दुर्गोत्सव, दशहरा उत्सव आदि व्यवस्था को `पाप-विद्धम्’ कर अक्षम करते हैं। इन सबमें ठेकेदारों से लिया `पाप’ पैसा लगता है- भिलाईनगर इसका जीता-जागता फलता-फूलता उदाहरण है। इसकी सारी पार्टियां विदाई से लेकर सारे धर्म संस्थान तथा सारे ठेकेदार संस्थान उत्तरोत्तर `पाप-विद्धम्’ व्यक्तिगत एवं सरकारी के ज्वलंत तथा जीते-जागते यथार्थ हैं। मैं जीता-जागता गवाह हूं कि इस व्यवस्था का सर्वाधिक सक्षम समझे जाने वाले वास्तविक अक्षम व्यक्ति सर्वाधिक `पाप-विद्ध’ हैं। तथा वह जिन्दा है ही नहीं, उनके भेष में दवाइयां, अंधविश्वास महा जिन्दे हैं। तुम अपनी क्षमता बचाना चाहते हो तो `अपाप-विद्धम्’ रहो। (~स्व.डॉ.त्रिलोकीनाथ जी क्षत्रिय)


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🌞ओ३म् 🌞 🌺 नमस्ते जी, सुप्रभातम् 🌺 🌻वेदामृतम् 🌻 ऋतस्य पथि वेधा अपायि । (ऋग्वेद ६/४४/८) सत्य...

🌞ओ३म् 🌞

🌺 नमस्ते जी, सुप्रभातम् 🌺

🌻वेदामृतम् 🌻

ऋतस्य पथि वेधा अपायि ।
(ऋग्वेद ६/४४/८)

सत्य मार्ग पर चलनेवाले की रक्षा ईश्वर करता है ।

🌹🌹 सुभाषितम्🌹🌹

॥ क्षमा ॥
सोsस्य दोषो न मन्तव्य: क्षमा हि परमं बलम् । क्षमा गुणो ह्यशक्तानां शक्तानां भूषणं क्षमा ॥
(महाभारत उद्योग पर्व ३३/४९)

क्षमा करने को दोष नही मानना चाहिये, क्योंकि क्षमा निश्चय ही उत्कृष्ट बल है । क्षमा निर्बलों का गुण है और बलवानों का आभूषण ।

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

🌞 आज का पंचाग 🌞

आज ३१ अक्तूबर को लोहपुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म दिवस है, उनके जीवन से प्रेरणा लेकर हम सब भी “ एक भारत श्रेष्ठ भारत” बनाने का संकल्प लेकर “ राष्ट्रीय एकता दिवस ” को उत्साहपूर्वक मनाएं।

तिथि……..पञ्चमी
वार………..शनिवार
नक्षत्र …….मृगशीर्षा
योग……….शिव

(समय मान जयपुर का है)
सूर्योदय ———– ६-३९
सूर्यास्त ———–१७-४१
चन्द्रोदय ——–२१-२५
चन्द्रास्त ———१०+१८
सूर्य राशि ———तुला
चन्द्र राशि——-मिथिन

सृष्टि संवत् -१,९६,०८,५३,११६
कलियुगाब्द……………५११६
विक्रमी संवत्…………..२०७२
अयन…………….दक्षिणायन
ऋतु……………………शरद
मास पूर्णिमांत——कार्तिक

विक्रमी संवत् (गुजरात)-२०७१
मास अमांत( गुजरात)….आश्विन
पक्ष………………… कृष्ण

आंग्ल मतानुसार ३१अक्टूबर सन् २०१५ ईस्वी ।

🌻आज का दिन आपके लिए शुभ एवं मंगलमय हो ।🌻


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#आज वल्लभ भाई पटेल की जयंती (31 अक्टूबर) ‘राष्ट्रीय एकता...





#आज वल्लभ भाई पटेल की जयंती (31 अक्टूबर) ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में मनाई जाती है। जिवन परिचय…..“सरदार वल्लभभाई पटेल” जन्म- 31 अक्टूबर, 1875, गुजरात; !! जीवन परिचय !! सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 ई. में नाडियाड, गुजरात में हुआ था। उनका जन्म लेवा पट्टीदार जाति के एक समृद्ध ज़मींदार परिवार में हुआ था। वे अपने पिता झवेरभाई पटेल एवं माता लाड़बाई की चौथी संतान थे। सोमभाई, नरसीभाई और विट्ठलदास पटेल उनके अग्रज थे। पारम्परिक हिन्दू माहौल में पले-बढ़े सरदार पटेल ने करमसद में प्राथमिक विद्यालय और पेटलाद स्थित उच्च विद्यालय में शिक्षा प्राप्त की, लेकिन उन्होंने अधिकांश ज्ञान स्वाध्याय से ही अर्जित किया। 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह हो गया। 22 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की और ज़िला अधिवक्ता की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए, जिससे उन्हें वक़ालत करने की अनुमति मिली। सन 1900 में उन्होंने गोधरा में स्वतंत्र ज़िला अधिवक्ता कार्यालय की स्थापना की और दो साल बाद खेड़ा ज़िले के बोरसद नामक स्थान पर चले गए। व्यावसायिक शुरुआत एक वकील के रूप में सरदार पटेल ने कमज़ोर मुक़दमे को सटीकता से प्रस्तुत करके और पुलिस के गवाहों तथा अंग्रेज़ न्यायाधीशों को चुनौती देकर विशेष स्थान अर्जित किया।1908 में पटेल की पत्नी की मृत्यु हो गई। उस समय उनके एक पुत्र और एक पुत्री थी। इसके बाद उन्होंने विधुर जीवन व्यतीत किया। वक़ालत के पेशे में तरक़्क़ी करने के लिए कृतसंकल्प पटेल ने मिड्ल टेंपल के अध्ययन के लिए अगस्त,1910 में लंदन की यात्रा की। वहाँ उन्होंने मनोयोग से अध्ययन किया और अंतिम परीक्षा में उच्च प्रतिष्ठा के साथ उत्तीर्ण हुए। सत्याग्रह से जुड़ाव सन 1917 में मोहनदास करमचन्द गांधी से प्रभावित होने के बाद सरदार पटेल ने पाया कि उनके जीवन की दिशा बदल गई है। वे गाँधीजी के सत्याग्रह (अंहिसा की नीति) के साथ तब तक जुड़े रहे, जब तक वह अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ भारतीयों के संघर्ष में क़ारगर रहा। लेकिन उन्होंने कभी भी खुद को गाँधीजी के नैतिक विश्वासों व आदर्शों के साथ नहीं जोड़ा। उनका मानना था कि उन्हें सार्वभौमिक रूप से लागू करने का गाँधी का आग्रह, भारत के तत्कालीन राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक परिप्रेक्ष्य में अप्रासंगिक है। फिर भी गाँधीजी के अनुसरण और समर्थन का संकल्प करने के बाद पटेल ने अपनी शैली और वेशभूषा में परिवर्तन कर लिया। उन्होंने गुजरात क्लब छोड़ दिया और भारतीय किसानों के समान सफ़ेद वस्त्र पहनने लगे तथा भारतीय खान-पान को पूरी तरह से अपना लिया। बारदोली सत्याग्रह का नेतृत्व सन 1917 से 1924 तक सरदार पटेल ने अहमदाबाद के पहले भारतीय निगम आयुक्त के रूप में सेवा प्रदान की और 1924 से 1928 तक वे इसके निर्वाचित नगरपालिका अध्यक्ष भी रहे। 1918 में उन्होंने अपनी पहली छाप छोड़ी, जब भारी वर्षा से फ़सल तबाह होने के बावज़ूद बम्बई सरकार द्वारा पूरा सालाना लगान वसूलने के फ़ैसले के विरुद्ध उन्होंने गुजरात के कैरा ज़िले में किसानों और काश्तकारों के जनांदोलन की रूपरेखा बनाई। 1928 में पटेल ने बढ़े हुए करों के ख़िलाफ़ बारदोली के भूमिपतियों के संघर्ष का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। बारदोली सत्याग्रह के कुशल नेतृत्व के कारण उन्हें 'सरदार’ की उपाधि मिली और उसके बाद देश भर में राष्ट्रवादी नेता के रूप में उनकी पहचान बन गई। उन्हें व्यावहारिक, निर्णायक और यहाँ तक कि कठोर भी माना जाता था तथा अंग्रेज़ उन्हें एक ख़तरनाक शत्रु मानते थे। जेलयात्रा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1929 के लाहौर अधिवेशन में सरदार पटेल, महात्मा गाँधी के बाद अध्यक्ष पद के दूसरे उम्मीदवार थे। गाँधीजी ने स्वाधीनता के प्रस्ताव को स्वीकृत होने से रोकने के प्रयास में अध्यक्ष पद की दावेदारी छोड़ दी और पटेल पर भी नाम वापस लेने के लिए दबाव डाला। इसका प्रमुख कारण मुसलमानों के प्रति पटेल की हठधर्मिता थी। अंतत: जवाहरलाल नेहरू अध्यक्ष बने। 1930 में नमक सत्याग्रह के दौरान पटेल को तीन महीने की जेल हुई। मार्च,1931 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के करांची अधिवेशन की अध्यक्षता की। जनवरी, 1932 में उन्हें फिर गिरफ़्तार कर लिया गया। जुलाई, 1934 में वह रिहा हुए और1937 के चुनावों में उन्होंने कांग्रेस पार्टी के संगठन को व्यवस्थित किया। 1937-1938 में वे कांग्रेस के अध्यक्ष पद के प्रमुख दावेदार थे। एक बार फिर गाँधीजी के दबाव में पटेल को अपना नाम वापस लेना पड़ा और जवाहरलाल नेहरू निर्वाचित हुए। अक्टूबर, 1940 में कांग्रेस के अन्य नेताओं के साथ पटेल भी गिरफ़्तार हुए और अगस्त, 1941में रिहा हुए। गाँधीजी से मतभेद द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, जब जापानी हमले की आशंका हुई, तो सरदार पटेल ने गाँधीजी की अहिंसा की नीति को अव्यावहारिक बताकर ख़ारिज कर दिया। सत्ता के हस्तान्तरण के मुद्दे पर भी उनका गाँधीजी से इस बात पर मतभेद था कि उपमहाद्वीप का हिन्दू भारत तथा मुस्लिम पाकिस्तान के रूप में विभाजन अपरिहार्य है। पटेल ने ज़ोर दिया कि पाकिस्तान दे देना भारत के हित में है। 1945-1946 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए सरदार पटेल प्रमुख उम्मीदवार थे। लेकिन महात्मा गाँधी ने एक बार फिर हस्तक्षेप करके जवाहरलाल नेहरू को अध्यक्ष बनवा दिया। कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में नेहरू को ब्रिटिश वाइसरॉय ने अंतरिम सरकार के गठन के लिए आमंत्रित किया। इस प्रकार, यदि घटनाक्रम सामान्य रहता, तो सरदार पटेल भारत के पहले प्रधानमंत्री होते। देशी रियासतों के विलय में भूमिका स्वतंत्र भारत के पहले तीन वर्ष सरदार पटेल उप-प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, सूचना मंत्री और राज्य मंत्री रहे। इस सबसे भी बढ़कर उनकी ख्याति भारत के रजवाड़ों को शान्तिपूर्ण तरीक़े से भारतीय संघ में शामिल करने तथा भारत के राजनीतिक एकीकरण के कारण है। 5 जुलाई, 1947 को सरदार पटेल ने रियासतों के प्रति नीति को स्पष्ट करते हुए कहा कि- “रियासतों को तीन विषयों 'सुरक्षा’, 'विदेश’ तथा 'संचार व्यवस्था’ के आधार पर भारतीय संघ में शामिल किया जाएगा।” धीरे-धीरे बहुत-सी देसी रियासतों के शासक भोपालके नवाब से अलग हो गये और इस तरह नवस्थापित रियासती विभाग की योजना को सफलता मिली। भारत के तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भारतीय संघ में उन रियासतों का विलय किया, जो स्वयं में संप्रभुता प्राप्त थीं। उनका अलग झंडा और अलग शासक था। सरदार पटेल ने आज़ादी के ठीक पूर्व (संक्रमण काल में) ही पी.वी. मेनन के साथ मिलकर कई देसी राज्यों को भारत में मिलाने के लिये कार्य आरम्भ कर दिया था। पटेल और मेनन ने देसी राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हें स्वायत्तता देना सम्भव नहीं होगा। इसके परिणामस्वरूप तीन रियासतें-हैदराबाद, कश्मीर और जूनागढ़ को छोडकर शेष सभी राजवाड़ों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। 15 अगस्त, 1947 तक हैदराबाद, कश्मीर और जूनागढ़ को छोड़कर शेष भारतीय रियासतें 'भारत संघ’ में सम्मिलित हो चुकी थीं, जो भारतीय इतिहास की एक बड़ी उपलब्धि थी। जूनागढ़ के नवाब के विरुद्ध जब बहुत विरोध हुआ तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और इस प्रकार जूनागढ भी भारत में मिला लिया गया। जब हैदराबाद के निज़ाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो सरदार पटेल ने वहाँ सेना भेजकर निज़ाम का आत्मसमर्पण करा लिया। राजनीतिक योगदान भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को वैचारिक एवं क्रियात्मक रूप में एक नई दिशा देने के कारण सरदार पटेल ने राजनीतिक इतिहास में एक गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त किया। वास्तव में वेआधुनिक भारत के शिल्पी थे। उनके कठोर व्यक्तित्व में विस्मार्क जैसी संगठन कुशलता, कौटिल्य जैसी राजनीति सत्ता तथा राष्ट्रीय एकता के प्रति अब्राहम लिंकन जैसी अटूट निष्ठा थी। जिस अदम्य उत्साह असीम शक्ति से उन्होंने नवजात गणराज्य की प्रारम्भिक कठिनाइयों का समाधान किया, उसके कारण विश्व के राजनीतिक मानचित्र में उन्होंने अमिट स्थान बना लिया। भारत के राजनीतिक इतिहास में सरदार पटेल के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। सरदार पटेल के ऐतिहासिक कार्यों और किये गये राजनीतिक योगदान निम्नवत हैं- देशी राज्यों के एकीकरण की समस्या को सरदार पटेल ने बिना खून-खराबे के बड़ी खूबी से हल किया। देशी राज्यों में राजकोट, जूनागढ़, वहालपुर, बड़ौदा, कश्मीर, हैदराबाद को भारतीय महासंघ में सम्मिलित करने में सरदार पटेल को कई पेचीदगियों का सामना करना पड़ा। जब चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई नेजवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखा कि वे तिब्बत को चीन का अंग मान लें तो पटेल ने नेहरू से आग्रह किया कि वे तिब्बत पर चीन का प्रभुत्व क़तई न स्वीकारें अन्यथा चीन भारत के लिए खतरनाक सिद्ध होगा। जवाहरलाल नेहरू नहीं माने, बस इसी भूल के कारण हमें चीन से पिटना पड़ा और चीन ने हमारी सीमा की 40 हज़ार वर्ग गज भूमि पर कब्जा कर लिया। सरदार पटेल के ऐतिहासिक कार्यों में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निमाण करवाना भी शामिल है । उनके मन में गोआ को भी भारत में विलय करने की इच्छा कितनी बलवती थी, इसके लिए निम्नलिखित उदाहरण ही काफ़ी है- जब एक बार सरदार पटेल भारतीय युद्धपोत द्वारा बम्बई से बाहर यात्रा पर थे तो गोआ के निकट पहुंचने पर उन्होंने कमांडिंग अफसरों से पूछा कि- “इस युद्धपोत पर तुम्हारे कितने सैनिक हैं।” जब कप्तान ने उनकी संख्या बताई, तो पटेल ने फिर पूछा- “क्या वह गोआ पर अधिकार करने के लिए पर्याप्त हैं।” सकारात्मक उत्तर मिलने पर पटेल बोले- “अच्छा चलो जब तक हम यहाँ हैं, गोआ पर अधिकार कर लो।” किंकर्तव्यविमूढ़ कप्तान ने उनसे लिखित आदेश देने की विनती की, तब तक सरदार पटेल चौंके, फिर कुछ सोचकर बोले- “ठीक है चलो हमें वापस लौटना होगा।” लक्षद्वीप समूह को भारत के साथ मिलाने में भी पटेल की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। इस क्षेत्र के लोग देश की मुख्यधारा से कटे हुए थे और उन्हें भारत की आज़ादी की जानकारी 15 अगस्त, 1947 के कई दिनों बाद मिली। हालांकि यह क्षेत्र पाकिस्तान के नजदीक नहीं था, लेकिन पटेल को लगता था कि इस पर पाकिस्तान दावा कर सकता है। इसलिए ऐसी किसी भी स्थिति को टालने के लिए पटेल ने लक्षद्वीप में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिएभारतीय नौसेना का एक जहाज़ भेजा। इसके कुछ घंटे बाद ही पाकिस्तानी नौसेना के जहाज लक्षद्वीप के पास मंडराते देखे गए, लेकिन वहाँ भारत का झंडा लहराते देख उन्हें वापस कराची लौटना पड़ा। महात्मा गाँधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल और जवाहरलाल नेहरू सरदार पटेलभारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कई बार जेल के अंदर-बाहर हुए, हालांकि जिस चीज के लिए इतिहासकार हमेशा सरदार वल्लभ भाई पटेल के बारे में जानने के लिए इच्छुक रहते हैं, वह थी उनकी और जवाहरलाल नेहरू की प्रतिस्पर्द्धा। सब जानते हैं कि 1929 के लाहौर अधिवेशन में सरदार पटेल ही गाँधी जी के बाद दूसरे सबसे प्रबल दावेदार थे, किन्तु मुस्लिमों के प्रति सरदार पटेल की हठधर्मिता की वजह से गाँधीजी ने उनसे उनका नाम वापस दिलवा दिया। 1945-1946 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए भी पटेल एक प्रमुख उम्मीदवार थे, लेकिन इस बार भी गाँधीजी के नेहरू प्रेम ने उन्हें अध्यक्ष नहीं बनने दिया। कई इतिहासकार यहाँ तक मानते हैं कि यदि सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनने दिया गया होता तो चीन और पाकिस्तान के युद्ध में भारत को पूर्ण विजय मिलती, परंतु गाँधीजी के जगजाहिर नेहरू प्रेम ने उन्हें प्रधानमंत्री बनने से रोक दिया। नेहरूजी से संबंध जवाहरलाल नेहरू कश्मीरी ब्राह्मण थे, जबकि सरदार पटेलगुजरात के कृषक समुदाय से ताल्लुक रखते थे। दोनों ही गाँधीजी के निकट थे। नेहरू समाजवादी विचारों से प्रेरित थे। पटेल बिजनेस के प्रति नरम रुख रखने वाले खांटी हिन्दू थे। नेहरू से उनके सम्बंध मधुर थे, लेकिन कई मसलों पर दोनों के मध्य मतभेद भी थे। कश्मीर के मसले पर दोनों के विचार भिन्न थे। कश्मीर मसले पर संयुक्त राष्ट्र को मध्यस्थ बनाने के सवाल पर पटेल ने नेहरू का कड़ा विरोध किया था। कश्मीर समस्या को सरदर्द मानते हुए वे भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय आधार पर मामले को निपटाना चाहते थे। इस मसले पर विदेशी हस्तक्षेप के वे ख़िलाफ़ थे। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के चुनाव के पच्चीस वर्ष बाद चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने लिखा था- “निस्संदेह बेहतर होता, यदि नेहरू को विदेश मंत्री तथा सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनाया जाता। यदि पटेल कुछ दिन और जीवित रहते तो वे प्रधानमंत्री के पद पर अवश्य पहुँचते, जिसके लिए संभवत: वे योग्य पात्र थे। तब भारत में कश्मीर, तिब्बत, चीन और अन्यान्य विवादों की कोई समस्या नहीं रहती।” भारत के लौह पुरुष सरदार पटेल को भारत का लौह पुरुष कहा जाता है। गृहमंत्री बनने के बाद भारतीय रियासतों के विलय की ज़िम्मेदारी उनको ही सौंपी गई थी। उन्होंने अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए छह सौ छोटी बड़ी रियासतों का भारत में विलय कराया। देशी रियासतों का विलय स्वतंत्र भारत की पहली उपलब्धि थी और निर्विवाद रूप से पटेल का इसमें विशेष योगदान था। नीतिगत दृढ़ता के लिए 'राष्ट्रपिता’ ने उन्हें 'सरदार’ और 'लौह पुरुष’ की उपाधि दी थी। बिस्मार्क ने जिस तरह जर्मनी के एकीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, उसी तरह वल्लभ भाई पटेल ने भी आज़ाद भारत को एक विशाल राष्ट्र बनाने में उल्लेखनीय योगदान दिया। बिस्मार्क को जहाँ “जर्मनी का आयरन चांसलर” कहा जाता है, वहीं पटेल “भारत के लौह पुरुष” कहलाते हैं। कश्मीर एवं हैदराबाद सरदार पटेल और पंडित जवाहरलाल नेहरू सरदार पटेल को भारत के गृह मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान कश्मीर के संवेदनशील मामले को सुलझाने में कई गंभीर मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। उनका मानना था कि कश्मीर मामले को संयुक्त राष्ट्र में नहीं ले जाना चाहिए था। वास्तव में सयुक्त राष्ट्र में ले जाने से पहले ही इस मामले को भारत के हित में सुलझाया जा सकता था। हैदराबाद रियासत के संबंध में सरदार पटेल समझौते के लिए भी तैयार नहीं थे। बाद में लॉर्ड माउंटबेटन के आग्रह पर ही वह 20 नवंबर, 1947 को निज़ाम द्वारा बाह्म मामले भारत रक्षा एवं संचार मंत्रालय, भारत सरकार को सौंपे जाने की बात पर सहमत हुए। हैदराबाद के भारत में विलय के प्रस्ताव को निज़ाम द्वारा अस्वीकार कर दिए जाने पर अतंतः वहाँ सैनिक अभियान का नेतृत्व करने के लिए सरदार पटेल ने जनरल जे. एन. चौधरी को नियुक्त करते हुए शीघ्रातिशीघ्र कार्यवाई पूरी करने का निर्देश दिया। सैनिक हैदराबाद पहुँच गए और सप्ताह भर में ही हैदराबाद का भारत में विधिवत् विलय कर लिया गया। एक बार सरदार पटेल ने स्वयं श्री एच. वी. कामत को बताया था कि- “यदि जवाहरलाल नेहरू और गोपालस्वामी आयंगर कश्मीर मुद्दे पर हस्तक्षेप न करते और उसे गृह मंत्रालय से अलग न करते तो मैं हैदराबाद की तरह ही इस मुद्दे को भी आसानी से देश-हित में सुलझा लेता।” हैदराबाद के मामले में भी जवाहरलाल नेहरू सैनिक कार्यवाही के पक्ष में नही थे। उन्होंने सरदार पटेल को यह परामर्श दिया- “इस प्रकार से मसले को सुलझाने में पूरा खतरा और अनिश्चितता है।” वे चाहते थे कि हैदराबाद में की जाने वाली सैनिक काररवाई को स्थगित कर दिया जाए। इससे राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय जटिलताएँ उत्पन्न हो सकती हैं। प्रख्यात कांग्रेसी नेता प्रो.एन. जी. रंगा की भी राय थी कि विलंब से की गई कार्यवाही के लिए नेहरू, मौलाना और माउंटबेटन जिम्मेदार हैं। रंगा लिखते हैं कि हैदराबाद के मामले में सरदार पटेल स्वयं अनुभव करते थे कि उन्होंने यदि जवाहरलाल नेहरू की सलाहें मान ली होतीं तो हैदराबाद मामला उलझ जाता; कमोबेश वैसी ही सलाहें मौलाना आजाद एवं लॉर्ड माउंटबेटन की भी थीं। सरदार पटेल हैदराबाद के भारत में शीघ्र विलय के पक्ष में थे, लेकिन जवाहरलाल नेहरू इससे सहमत नहीं थे। लॉर्ड माउंटबेटन की कूटनीति भी ऐसी थी कि सरदार पटेल के विचार और प्रयासों को साकार रूप देने में विलंब हो गया। सरदार पटेल के राजनीतिक विरोधियों ने उन्हें मुस्लिम वर्ग के विरोधी के रूप में वर्णित किया; लेकिन वास्तव में सरदार पटेल हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए संघर्षरत रहे। इस धारणा की पुष्टि उनके विचारों एवं कार्यों से होती है। यहाँ तक कि गाँधीजी ने भी स्पष्ट किया था कि- “सरदार पटेल को मुस्लिम-विरोधी बताना सत्य को झुठलाना है। यह बहुत बड़ी विडंबना है।” वस्तुत: स्वतंत्रता-प्राप्ति के तत्काल बाद 'अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय’ में दिए गए उनके व्याख्यान में हिन्दू-मुस्लिम प्रश्न पर उनके विचारों की पुष्टि होती है।[8] सम्मान और पुरस्कार सन 1991 में सरदार पटेल को मरणोपरान्त 'भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।अहमदाबाद के हवाई अड्डे का नामकरण 'सरदार वल्लभभाई पटेल अन्तराष्ट्रीय हवाई अड्डा’ रखा गया है।गुजरात के वल्लभ विद्यानगर में 'सरदार पटेल विश्वविद्यालय’ है। उनकी स्मृति में स्टच्यू ओफ यूनिटि का निर्माण भी हो रहा है । निधन सरदार पटेल जी का निधन 15 दिसंबर, 1950 को मुंबई,महाराष्ट्र में हुआ था।


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#आज वल्लभ भाई पटेल की जयंती (31 अक्टूबर) ‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में मनाई जाती...

#आज वल्लभ भाई पटेल की जयंती (31 अक्टूबर)
‘राष्ट्रीय एकता दिवस’ के रूप में मनाई जाती है।

जिवन परिचय…..“सरदार वल्लभभाई पटेल”
जन्म- 31 अक्टूबर, 1875, गुजरात;


!! जीवन परिचय !!

सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1875 ई. में नाडियाड, गुजरात में हुआ था। उनका जन्म लेवा पट्टीदार जाति के एक समृद्ध ज़मींदार परिवार में हुआ था। वे अपने पिता झवेरभाई पटेल एवं माता लाड़बाई की चौथी संतान थे। सोमभाई, नरसीभाई और विट्ठलदास पटेल उनके अग्रज थे। पारम्परिक हिन्दू माहौल में पले-बढ़े सरदार पटेल ने करमसद में प्राथमिक विद्यालय और पेटलाद स्थित उच्च विद्यालय में शिक्षा प्राप्त की, लेकिन उन्होंने अधिकांश ज्ञान स्वाध्याय से ही अर्जित किया। 16 वर्ष की आयु में उनका विवाह हो गया। 22 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की और ज़िला अधिवक्ता की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए, जिससे उन्हें वक़ालत करने की अनुमति मिली। सन 1900 में उन्होंने गोधरा में स्वतंत्र ज़िला अधिवक्ता कार्यालय की स्थापना की और दो साल बाद खेड़ा ज़िले के बोरसद नामक स्थान पर चले गए।

व्यावसायिक शुरुआत

एक वकील के रूप में सरदार पटेल ने कमज़ोर मुक़दमे को सटीकता से प्रस्तुत करके और पुलिस के गवाहों तथा अंग्रेज़ न्यायाधीशों को चुनौती देकर विशेष स्थान अर्जित किया।1908 में पटेल की पत्नी की मृत्यु हो गई। उस समय उनके एक पुत्र और एक पुत्री थी। इसके बाद उन्होंने विधुर जीवन व्यतीत किया। वक़ालत के पेशे में तरक़्क़ी करने के लिए कृतसंकल्प पटेल ने मिड्ल टेंपल के अध्ययन के लिए अगस्त,1910 में लंदन की यात्रा की। वहाँ उन्होंने मनोयोग से अध्ययन किया और अंतिम परीक्षा में उच्च प्रतिष्ठा के साथ उत्तीर्ण हुए।

सत्याग्रह से जुड़ाव

सन 1917 में मोहनदास करमचन्द गांधी से प्रभावित होने के बाद सरदार पटेल ने पाया कि उनके जीवन की दिशा बदल गई है। वे गाँधीजी के सत्याग्रह (अंहिसा की नीति) के साथ तब तक जुड़े रहे, जब तक वह अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ भारतीयों के संघर्ष में क़ारगर रहा। लेकिन उन्होंने कभी भी खुद को गाँधीजी के नैतिक विश्वासों व आदर्शों के साथ नहीं जोड़ा। उनका मानना था कि उन्हें सार्वभौमिक रूप से लागू करने का गाँधी का आग्रह, भारत के तत्कालीन राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक परिप्रेक्ष्य में अप्रासंगिक है। फिर भी गाँधीजी के अनुसरण और समर्थन का संकल्प करने के बाद पटेल ने अपनी शैली और वेशभूषा में परिवर्तन कर लिया। उन्होंने गुजरात क्लब छोड़ दिया और भारतीय किसानों के समान सफ़ेद वस्त्र पहनने लगे तथा भारतीय खान-पान को पूरी तरह से अपना लिया।

बारदोली सत्याग्रह का नेतृत्व

सन 1917 से 1924 तक सरदार पटेल ने अहमदाबाद के पहले भारतीय निगम आयुक्त के रूप में सेवा प्रदान की और 1924 से 1928 तक वे इसके निर्वाचित नगरपालिका अध्यक्ष भी रहे। 1918 में उन्होंने अपनी पहली छाप छोड़ी, जब भारी वर्षा से फ़सल तबाह होने के बावज़ूद बम्बई सरकार द्वारा पूरा सालाना लगान वसूलने के फ़ैसले के विरुद्ध उन्होंने गुजरात के कैरा ज़िले में किसानों और काश्तकारों के जनांदोलन की रूपरेखा बनाई। 1928 में पटेल ने बढ़े हुए करों के ख़िलाफ़ बारदोली के भूमिपतियों के संघर्ष का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। बारदोली सत्याग्रह के कुशल नेतृत्व के कारण उन्हें 'सरदार’ की उपाधि मिली और उसके बाद देश भर में राष्ट्रवादी नेता के रूप में उनकी पहचान बन गई। उन्हें व्यावहारिक, निर्णायक और यहाँ तक कि कठोर भी माना जाता था तथा अंग्रेज़ उन्हें एक ख़तरनाक शत्रु मानते थे।

जेलयात्रा

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 1929 के लाहौर अधिवेशन में सरदार पटेल, महात्मा गाँधी के बाद अध्यक्ष पद के दूसरे उम्मीदवार थे। गाँधीजी ने स्वाधीनता के प्रस्ताव को स्वीकृत होने से रोकने के प्रयास में अध्यक्ष पद की दावेदारी छोड़ दी और पटेल पर भी नाम वापस लेने के लिए दबाव डाला। इसका प्रमुख कारण मुसलमानों के प्रति पटेल की हठधर्मिता थी। अंतत: जवाहरलाल नेहरू अध्यक्ष बने। 1930 में नमक सत्याग्रह के दौरान पटेल को तीन महीने की जेल हुई। मार्च,1931 में उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के करांची अधिवेशन की अध्यक्षता की। जनवरी, 1932 में उन्हें फिर गिरफ़्तार कर लिया गया। जुलाई, 1934 में वह रिहा हुए और1937 के चुनावों में उन्होंने कांग्रेस पार्टी के संगठन को व्यवस्थित किया। 1937-1938 में वे कांग्रेस के अध्यक्ष पद के प्रमुख दावेदार थे। एक बार फिर गाँधीजी के दबाव में पटेल को अपना नाम वापस लेना पड़ा और जवाहरलाल नेहरू निर्वाचित हुए। अक्टूबर, 1940 में कांग्रेस के अन्य नेताओं के साथ पटेल भी गिरफ़्तार हुए और अगस्त, 1941में रिहा हुए।

गाँधीजी से मतभेद

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, जब जापानी हमले की आशंका हुई, तो सरदार पटेल ने गाँधीजी की अहिंसा की नीति को अव्यावहारिक बताकर ख़ारिज कर दिया। सत्ता के हस्तान्तरण के मुद्दे पर भी उनका गाँधीजी से इस बात पर मतभेद था कि उपमहाद्वीप का हिन्दू भारत तथा मुस्लिम पाकिस्तान के रूप में विभाजन अपरिहार्य है। पटेल ने ज़ोर दिया कि पाकिस्तान दे देना भारत के हित में है। 1945-1946 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए सरदार पटेल प्रमुख उम्मीदवार थे। लेकिन महात्मा गाँधी ने एक बार फिर हस्तक्षेप करके जवाहरलाल नेहरू को अध्यक्ष बनवा दिया। कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में नेहरू को ब्रिटिश वाइसरॉय ने अंतरिम सरकार के गठन के लिए आमंत्रित किया। इस प्रकार, यदि घटनाक्रम सामान्य रहता, तो सरदार पटेल भारत के पहले प्रधानमंत्री होते।

देशी रियासतों के विलय में भूमिका

स्वतंत्र भारत के पहले तीन वर्ष सरदार पटेल उप-प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, सूचना मंत्री और राज्य मंत्री रहे। इस सबसे भी बढ़कर उनकी ख्याति भारत के रजवाड़ों को शान्तिपूर्ण तरीक़े से भारतीय संघ में शामिल करने तथा भारत के राजनीतिक एकीकरण के कारण है। 5 जुलाई, 1947 को सरदार पटेल ने रियासतों के प्रति नीति को स्पष्ट करते हुए कहा कि- “रियासतों को तीन विषयों 'सुरक्षा’, 'विदेश’ तथा 'संचार व्यवस्था’ के आधार पर भारतीय संघ में शामिल किया जाएगा।” धीरे-धीरे बहुत-सी देसी रियासतों के शासक भोपालके नवाब से अलग हो गये और इस तरह नवस्थापित रियासती विभाग की योजना को सफलता मिली।

भारत के तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भारतीय संघ में उन रियासतों का विलय किया, जो स्वयं में संप्रभुता प्राप्त थीं। उनका अलग झंडा और अलग शासक था। सरदार पटेल ने आज़ादी के ठीक पूर्व (संक्रमण काल में) ही पी.वी. मेनन के साथ मिलकर कई देसी राज्यों को भारत में मिलाने के लिये कार्य आरम्भ कर दिया था। पटेल और मेनन ने देसी राजाओं को बहुत समझाया कि उन्हें स्वायत्तता देना सम्भव नहीं होगा। इसके परिणामस्वरूप तीन रियासतें-हैदराबाद, कश्मीर और जूनागढ़ को छोडकर शेष सभी राजवाड़ों ने स्वेच्छा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। 15 अगस्त, 1947 तक हैदराबाद, कश्मीर और जूनागढ़ को छोड़कर शेष भारतीय रियासतें 'भारत संघ’ में सम्मिलित हो चुकी थीं, जो भारतीय इतिहास की एक बड़ी उपलब्धि थी। जूनागढ़ के नवाब के विरुद्ध जब बहुत विरोध हुआ तो वह भागकर पाकिस्तान चला गया और इस प्रकार जूनागढ भी भारत में मिला लिया गया। जब हैदराबाद के निज़ाम ने भारत में विलय का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो सरदार पटेल ने वहाँ सेना भेजकर निज़ाम का आत्मसमर्पण करा लिया।

राजनीतिक योगदान

भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को वैचारिक एवं क्रियात्मक रूप में एक नई दिशा देने के कारण सरदार पटेल ने राजनीतिक इतिहास में एक गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त किया। वास्तव में वेआधुनिक भारत के शिल्पी थे। उनके कठोर व्यक्तित्व में विस्मार्क जैसी संगठन कुशलता, कौटिल्य जैसी राजनीति सत्ता तथा राष्ट्रीय एकता के प्रति अब्राहम लिंकन जैसी अटूट निष्ठा थी। जिस अदम्य उत्साह असीम शक्ति से उन्होंने नवजात गणराज्य की प्रारम्भिक कठिनाइयों का समाधान किया, उसके कारण विश्व के राजनीतिक मानचित्र में उन्होंने अमिट स्थान बना लिया। भारत के राजनीतिक इतिहास में सरदार पटेल के योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
सरदार पटेल के ऐतिहासिक कार्यों और किये गये राजनीतिक योगदान निम्नवत हैं-

देशी राज्यों के एकीकरण की समस्या को सरदार पटेल ने बिना खून-खराबे के बड़ी खूबी से हल किया। देशी राज्यों में राजकोट, जूनागढ़, वहालपुर, बड़ौदा, कश्मीर, हैदराबाद को भारतीय महासंघ में सम्मिलित करने में सरदार पटेल को कई पेचीदगियों का सामना करना पड़ा। जब चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई नेजवाहरलाल नेहरू को पत्र लिखा कि वे तिब्बत को चीन का अंग मान लें तो पटेल ने नेहरू से आग्रह किया कि वे तिब्बत पर चीन का प्रभुत्व क़तई न स्वीकारें अन्यथा चीन भारत के लिए खतरनाक सिद्ध होगा। जवाहरलाल नेहरू नहीं माने, बस इसी भूल के कारण हमें चीन से पिटना पड़ा और चीन ने हमारी सीमा की 40 हज़ार वर्ग गज भूमि पर कब्जा कर लिया।

सरदार पटेल के ऐतिहासिक कार्यों में सोमनाथ मंदिर का पुनर्निमाण करवाना भी शामिल है ।

उनके मन में गोआ को भी भारत में विलय करने की इच्छा कितनी बलवती थी, इसके लिए निम्नलिखित उदाहरण ही काफ़ी है-
जब एक बार सरदार पटेल भारतीय युद्धपोत द्वारा बम्बई से बाहर यात्रा पर थे तो गोआ के निकट पहुंचने पर उन्होंने कमांडिंग अफसरों से पूछा कि- “इस युद्धपोत पर तुम्हारे कितने सैनिक हैं।” जब कप्तान ने उनकी संख्या बताई, तो पटेल ने फिर पूछा- “क्या वह गोआ पर अधिकार करने के लिए पर्याप्त हैं।” सकारात्मक उत्तर मिलने पर पटेल बोले- “अच्छा चलो जब तक हम यहाँ हैं, गोआ पर अधिकार कर लो।” किंकर्तव्यविमूढ़ कप्तान ने उनसे लिखित आदेश देने की विनती की, तब तक सरदार पटेल चौंके, फिर कुछ सोचकर बोले- “ठीक है चलो हमें वापस लौटना होगा।”

लक्षद्वीप समूह को भारत के साथ मिलाने में भी पटेल की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। इस क्षेत्र के लोग देश की मुख्यधारा से कटे हुए थे और उन्हें भारत की आज़ादी की जानकारी 15 अगस्त, 1947 के कई दिनों बाद मिली। हालांकि यह क्षेत्र पाकिस्तान के नजदीक नहीं था, लेकिन पटेल को लगता था कि इस पर पाकिस्तान दावा कर सकता है। इसलिए ऐसी किसी भी स्थिति को टालने के लिए पटेल ने लक्षद्वीप में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिएभारतीय नौसेना का एक जहाज़ भेजा। इसके कुछ घंटे बाद ही पाकिस्तानी नौसेना के जहाज लक्षद्वीप के पास मंडराते देखे गए, लेकिन वहाँ भारत का झंडा लहराते देख उन्हें वापस कराची लौटना पड़ा।

महात्मा गाँधी, सरदार वल्लभ भाई पटेल और जवाहरलाल नेहरू

सरदार पटेलभारतीय स्वतंत्रता संग्राम में कई बार जेल के अंदर-बाहर हुए, हालांकि जिस चीज के लिए इतिहासकार हमेशा सरदार वल्लभ भाई पटेल के बारे में जानने के लिए इच्छुक रहते हैं, वह थी उनकी और जवाहरलाल नेहरू की प्रतिस्पर्द्धा। सब जानते हैं कि 1929 के लाहौर अधिवेशन में सरदार पटेल ही गाँधी जी के बाद दूसरे सबसे प्रबल दावेदार थे, किन्तु मुस्लिमों के प्रति सरदार पटेल की हठधर्मिता की वजह से गाँधीजी ने उनसे उनका नाम वापस दिलवा दिया। 1945-1946 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए भी पटेल एक प्रमुख उम्मीदवार थे, लेकिन इस बार भी गाँधीजी के नेहरू प्रेम ने उन्हें अध्यक्ष नहीं बनने दिया। कई इतिहासकार यहाँ तक मानते हैं कि यदि सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनने दिया गया होता तो चीन और पाकिस्तान के युद्ध में भारत को पूर्ण विजय मिलती, परंतु गाँधीजी के जगजाहिर नेहरू प्रेम ने उन्हें प्रधानमंत्री बनने से रोक दिया।

नेहरूजी से संबंध

जवाहरलाल नेहरू कश्मीरी ब्राह्मण थे, जबकि सरदार पटेलगुजरात के कृषक समुदाय से ताल्लुक रखते थे। दोनों ही गाँधीजी के निकट थे। नेहरू समाजवादी विचारों से प्रेरित थे। पटेल बिजनेस के प्रति नरम रुख रखने वाले खांटी हिन्दू थे। नेहरू से उनके सम्बंध मधुर थे, लेकिन कई मसलों पर दोनों के मध्य मतभेद भी थे। कश्मीर के मसले पर दोनों के विचार भिन्न थे। कश्मीर मसले पर संयुक्त राष्ट्र को मध्यस्थ बनाने के सवाल पर पटेल ने नेहरू का कड़ा विरोध किया था। कश्मीर समस्या को सरदर्द मानते हुए वे भारत और पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय आधार पर मामले को निपटाना चाहते थे। इस मसले पर विदेशी हस्तक्षेप के वे ख़िलाफ़ थे। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री के चुनाव के पच्चीस वर्ष बाद चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने लिखा था- “निस्संदेह बेहतर होता, यदि नेहरू को विदेश मंत्री तथा सरदार पटेल को प्रधानमंत्री बनाया जाता। यदि पटेल कुछ दिन और जीवित रहते तो वे प्रधानमंत्री के पद पर अवश्य पहुँचते, जिसके लिए संभवत: वे योग्य पात्र थे। तब भारत में कश्मीर, तिब्बत, चीन और अन्यान्य विवादों की कोई समस्या नहीं रहती।”

भारत के लौह पुरुष

सरदार पटेल को भारत का लौह पुरुष कहा जाता है। गृहमंत्री बनने के बाद भारतीय रियासतों के विलय की ज़िम्मेदारी उनको ही सौंपी गई थी। उन्होंने अपने दायित्वों का निर्वहन करते हुए छह सौ छोटी बड़ी रियासतों का भारत में विलय कराया। देशी रियासतों का विलय स्वतंत्र भारत की पहली उपलब्धि थी और निर्विवाद रूप से पटेल का इसमें विशेष योगदान था। नीतिगत दृढ़ता के लिए 'राष्ट्रपिता’ ने उन्हें 'सरदार’ और 'लौह पुरुष’ की उपाधि दी थी। बिस्मार्क ने जिस तरह जर्मनी के एकीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, उसी तरह वल्लभ भाई पटेल ने भी आज़ाद भारत को एक विशाल राष्ट्र बनाने में उल्लेखनीय योगदान दिया। बिस्मार्क को जहाँ “जर्मनी का आयरन चांसलर” कहा जाता है, वहीं पटेल “भारत के लौह पुरुष” कहलाते हैं।

कश्मीर एवं हैदराबाद

सरदार पटेल और पंडित जवाहरलाल नेहरू

सरदार पटेल को भारत के गृह मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान कश्मीर के संवेदनशील मामले को सुलझाने में कई गंभीर मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। उनका मानना था कि कश्मीर मामले को संयुक्त राष्ट्र में नहीं ले जाना चाहिए था। वास्तव में सयुक्त राष्ट्र में ले जाने से पहले ही इस मामले को भारत के हित में सुलझाया जा सकता था। हैदराबाद रियासत के संबंध में सरदार पटेल समझौते के लिए भी तैयार नहीं थे। बाद में लॉर्ड माउंटबेटन के आग्रह पर ही वह 20 नवंबर, 1947 को निज़ाम द्वारा बाह्म मामले भारत रक्षा एवं संचार मंत्रालय, भारत सरकार को सौंपे जाने की बात पर सहमत हुए। हैदराबाद के भारत में विलय के प्रस्ताव को निज़ाम द्वारा अस्वीकार कर दिए जाने पर अतंतः वहाँ सैनिक अभियान का नेतृत्व करने के लिए सरदार पटेल ने जनरल जे. एन. चौधरी को नियुक्त करते हुए शीघ्रातिशीघ्र कार्यवाई पूरी करने का निर्देश दिया। सैनिक हैदराबाद पहुँच गए और सप्ताह भर में ही हैदराबाद का भारत में विधिवत् विलय कर लिया गया। एक बार सरदार पटेल ने स्वयं श्री एच. वी. कामत को बताया था कि- “यदि जवाहरलाल नेहरू और गोपालस्वामी आयंगर कश्मीर मुद्दे पर हस्तक्षेप न करते और उसे गृह मंत्रालय से अलग न करते तो मैं हैदराबाद की तरह ही इस मुद्दे को भी आसानी से देश-हित में सुलझा लेता।”
हैदराबाद के मामले में भी जवाहरलाल नेहरू सैनिक कार्यवाही के पक्ष में नही थे। उन्होंने सरदार पटेल को यह परामर्श दिया- “इस प्रकार से मसले को सुलझाने में पूरा खतरा और अनिश्चितता है।” वे चाहते थे कि हैदराबाद में की जाने वाली सैनिक काररवाई को स्थगित कर दिया जाए। इससे राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय जटिलताएँ उत्पन्न हो सकती हैं। प्रख्यात कांग्रेसी नेता प्रो.एन. जी. रंगा की भी राय थी कि विलंब से की गई कार्यवाही के लिए नेहरू, मौलाना और माउंटबेटन जिम्मेदार हैं। रंगा लिखते हैं कि हैदराबाद के मामले में सरदार पटेल स्वयं अनुभव करते थे कि उन्होंने यदि जवाहरलाल नेहरू की सलाहें मान ली होतीं तो हैदराबाद मामला उलझ जाता; कमोबेश वैसी ही सलाहें मौलाना आजाद एवं लॉर्ड माउंटबेटन की भी थीं। सरदार पटेल हैदराबाद के भारत में शीघ्र विलय के पक्ष में थे, लेकिन जवाहरलाल नेहरू इससे सहमत नहीं थे। लॉर्ड माउंटबेटन की कूटनीति भी ऐसी थी कि सरदार पटेल के विचार और प्रयासों को साकार रूप देने में विलंब हो गया।
सरदार पटेल के राजनीतिक विरोधियों ने उन्हें मुस्लिम वर्ग के विरोधी के रूप में वर्णित किया; लेकिन वास्तव में सरदार पटेल हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए संघर्षरत रहे। इस धारणा की पुष्टि उनके विचारों एवं कार्यों से होती है। यहाँ तक कि गाँधीजी ने भी स्पष्ट किया था कि- “सरदार पटेल को मुस्लिम-विरोधी बताना सत्य को झुठलाना है। यह बहुत बड़ी विडंबना है।” वस्तुत: स्वतंत्रता-प्राप्ति के तत्काल बाद 'अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय’ में दिए गए उनके व्याख्यान में हिन्दू-मुस्लिम प्रश्न पर उनके विचारों की पुष्टि होती है।[8]

सम्मान और पुरस्कार

सन 1991 में सरदार पटेल को मरणोपरान्त 'भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।अहमदाबाद के हवाई अड्डे का नामकरण 'सरदार वल्लभभाई पटेल अन्तराष्ट्रीय हवाई अड्डा’ रखा गया है।गुजरात के वल्लभ विद्यानगर में 'सरदार पटेल विश्वविद्यालय’ है।
उनकी स्मृति में स्टच्यू ओफ यूनिटि का निर्माण भी हो रहा है ।

निधन

सरदार पटेल जी का निधन
15 दिसंबर, 1950 को मुंबई,महाराष्ट्र में हुआ था।


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अथ चतुर्थसमुल्लासारम्भः अथ समावर्त्तनविवाहगृहाश्रमविधिं वक्ष्यामः वेदानधीत्य वेदौ वा वेदं वापि...

अथ चतुर्थसमुल्लासारम्भः
अथ समावर्त्तनविवाहगृहाश्रमविधिं वक्ष्यामः
वेदानधीत्य वेदौ वा वेदं वापि यथाक्रमम्।
अविप्लुतब्रह्मचर्यो गृहस्थाश्रममाविशेत्॥1॥मनु॰॥

जब यथावत् ब्रह्मचर्य आचार्यानुकूल वर्त्तकर, धर्म से चारों, तीन वा दो, अथवा एक वेद को साङ्गोपाङ्ग पढ़ के जिस का ब्रह्मचर्य खण्डित न हुआ हो, वह पुरुष वा स्त्री गृहाश्रम में प्रवेश करे॥1॥
तं प्रतीतं स्वधर्मेण ब्रह्मदायहरं पितुः।
स्रग्विणं तल्प आसीनमर्हयेत् प्रथमं गवा॥2॥मनु॰॥
जो स्वधर्म अर्थात् यथावत् आचार्य और शिष्य का धर्म है उससे युक्त पिता जनक वा अध्यापक से ब्रह्मदाय अर्थात् विद्यारूप भाग का ग्रहण और माला का धारण करने वाला अपने पलङ्ग पर बैठे हुए आचार्य का प्रथम गोदान से सत्कार करे। वैसे लक्षणयुक्त विद्यार्थी को भी कन्या का पिता गोदान से सत्कृत करे॥2॥
गुरुणानुमतः स्नात्वा समावृत्तो यथाविधि।
उद्वहेत द्विजो भार्यां सवर्णां लक्षणान्विताम्॥3॥मनु॰॥
गुरु की आज्ञा ले स्नान कर गुरुकुल से अनुक्रमपूर्वक आ के ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य अपने वर्णानुकूल सुन्दर लक्षणयुक्त कन्या से विवाह करे॥3॥
असपिण्डा च या मातुरसगोत्रा च या पितुः।
सा प्रशस्ता द्विजातीनां दारकर्मणि मैथुने॥4॥मनु॰॥
जो कन्या माता के कुल की छः पीढ़ियों में न हो और पिता के गोत्र की न हो तो उस कन्या से विवाह करना उचित है॥4॥इसका यह प्रयोजन है कि—
परोक्षप्रिया इव हि देवाः प्रत्यक्षद्विषः॥शतपथ॰॥
यह निश्चित बात है कि जैसी परोक्ष पदार्थ में प्रीति होती है वैसी प्रत्यक्ष में नहीं। जैसे किसी ने मिश्री के गुण सुने हों और खाई न हो तो उसका मन उसी में लगा रहता है। जैसे किसी परोक्ष वस्तु की प्रशंसा सुनकर मिलने की उत्कट इच्छा होती है, वैसे ही दूरस्थ अर्थात् जो अपने गोत्र वा माता के कुल में निकट सम्बन्ध की न हो उसी कन्या से वर का विवाह होना चाहिये।
निकट और दूर विवाह करने में गुण ये हैं—
(1) एक—जो बालक बाल्यावस्था से निकट रहते हैं, परस्पर क्रीडा, लड़ाई और प्रेम करते, एक दूसरे के गुण, दोष, स्वभाव, बाल्यावस्था के विपरीत आचरण जानते और नङ्गे भी एक दूसरे को देखते हैं उन का परस्पर विवाह होने से प्रेम कभी नहीं हो सकता।
(2) दूसरा—जैसे पानी में पानी मिलने से विलक्षण गुण नहीं होता, वैसे एक गोत्र पितृ वा मातृकुल में विवाह होने में धातुओं के अदल-बदल नहीं होने से उन्नति नहीं होती।
(3) तीसरा—जैसे दूध में मिश्री वा शुण्ठ्यादि औषधियों के योग होने से उत्तमता होती है वैसे ही भिन्न गोत्र मातृ पितृ कुल से पृथक् वर्त्तमान स्त्री पुरुषों का विवाह होना उत्तम है।
(4) चौथा—जैसे एक देश में रोगी हो वह दूसरे देश में वायु और खान पान के बदलने से रोग रहित होता है वैसे ही दूर देशस्थों के विवाह होने में उत्तमता है।
(5) पांचवें—निकट सम्बन्ध करने में एक दूसरे के निकट होने में सुख दुःख का भान और विरोध होना भी सम्भव है, दूर देशस्थों में नहीं और दूरस्थों के विवाह में दूर-दूर प्रेम की डोरी लम्बी बढ़ जाती है निकटस्थ विवाह में नहीं।
(6) छठे—दूर-दूर देश के वर्त्तमान और पदार्थों की प्राप्ति भी दूर सम्बन्ध होने में सहजता से हो सकती है, निकट विवाह होने में नहीं। इसलिये—
दुहिता दुर्हिता दूरे हिता भवतीति॥निरु॰॥
कन्या का नाम दुहिता इस कारण से है कि इसका विवाह दूर देश में होने से हितकारी होता है निकट रहने में नहीं।
(7) सातवें—कन्या के पितृकुल में दारिद्र्य होने का भी सम्भव है क्योंकि जब-जब कन्या पितृकुल में आवेगी तब-तब इस को कुछ न कुछ देना ही होगा।
(8) आठवां—कोई निकट होने से एक दूसरे को अपने-अपने पितृकुल के सहाय का घमण्ड और जब कुछ भी दोनों में वैमनस्य होगा तब स्त्री झट ही पिता कुल में चली जायेगी। एक दूसरे की निन्दा अधिक होगी और विरोध भी, क्योंकि प्रायः स्त्रियों का स्वभाव तीक्ष्ण और मृदु होता है, इत्यादि कारणों से पिता के एकगोत्र माता की छः पीढ़ी और समीप देश में विवाह करना अच्छा नहीं।
….सत्यार्थप्रकाश:चतुर्थसमुल्लास
[स्वामी दयानंद सरस्वती]


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Friday, October 30, 2015

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आज का सुविचार (31 अक्टूबर 2015, शनिवार, कार्तिक कृष्ण ५) अपापविद्धम्- अपाप से युक्त होकर सिद्ध हो...

आज का सुविचार (31 अक्टूबर 2015, शनिवार, कार्तिक कृष्ण ५)

अपापविद्धम्- अपाप से युक्त होकर सिद्ध हो जाओ। दो व्यवस्थाएं होती हैं 1) पाप-विद्धम्, 2) अपाप-विद्धम। तीन तरह के आदमी होते हैं 1) निरक्षर, 2) साक्षर, 3) नाक्षर। निरक्षर वह है जो अक्षर नहीं पढ़ सकता। सारा प्राणी जगत् निरक्षर है। हर मानव मूलतः निरक्षर नहीं है। जब भौतिक अक्षर नहीं थे, तो अक्षर ज्यादा सशक्त थे। श्रुती अक्षर थे। इन्द्रियों के माध्यम से दुनिया पढ़ना पढ़कर यथावत निर्णय लेना, आचरण करना हर मानव में स्वनिर्मित है। वह मानव निरक्षर हैं जो जगत् पढ़ कर निर्णय न ले। यथार्थवादी निरक्षर हैं। व्यंगवादी निरक्षर हैं। व्यंग मे यथार्थ लिख रहे हैं अनिर्णय अवस्था रहते। परिणामतः भ्रष्टाचार बढता जा रहा है। मैंने शेर देखा, मैंने शेर लिखा, उसके भयानक पंजे, भयानक जबड़े, उसका झपटना लिखा और शेर ने मुझे खा लिया। यह यथार्थवाद की भयावह नियति है। इससे हटकर भी एक स्थिति है- गुरु दत्तचित्त शिष्यों को पढ़ा रहे थे, शिष्य शब्द-अर्थ-व्युत्पत्ति पूछ रहे थे। गुरु दत्तचित्त समझा रहे थे। वहां व्याघ्र आ गया.. शिष्य चिल्लाया व्याघ्र.. गुरु समझाने लगे- व्याघ्र जो भयानक झपट्टा मारकर खा जाए उसे…। और व्याघ्र ने गुरु को खा लिया। शिष्य सब भाग गए थे। घटना विवेचन पाठकों पर है। (~स्व.डॉ.त्रिलोकीनाथ जी क्षत्रिय)


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ऋषि दयानन्द जी ने 10 अध्याय ज्ञान चर्चा में और केवल 4 अध्याय खण्डन में लिखा है। हमें भी मुख्यतः...

ऋषि दयानन्द जी ने 10 अध्याय ज्ञान चर्चा में और केवल 4 अध्याय खण्डन में लिखा है। हमें भी मुख्यतः ज्ञान चर्चा पर केंद्रित रहना चाहिए।

किन्तु अधिकतर आर्य मुख्यतः खण्डन पर केन्द्रित रहते हैं।

माता चाहे जड पूजक ही क्यों न हो, आप उसकी आलोचना करके उसका अपमान नहीं कर सकते। आप Theoretical knowledge प्राप्तकर स्वयं को विद्वान् और माता को मूर्ख मानने की भूल नही कर सकते। 🙏ं


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Thursday, October 29, 2015

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१४ कार्तिक 30 अक्टूबर 2015 😶 “ परमा प्रिया सच्चिदानन्दरूपिणी परमात्मा देवता !...

१४ कार्तिक 30 अक्टूबर 2015

😶 “ परमा प्रिया सच्चिदानन्दरूपिणी परमात्मा देवता ! ” 🌞

🔥🔥 ओ३म् बालादेकमणीयस्कमुतैकं नेव दृश्यते। 🔥🔥
🍃🍂 तत: परिष्वजीयसी देवता सा मम प्रिया ।। 🍂🍃

अथर्व० १० ।८। २५

ऋषि:- कुत्स: ।। देवता- आत्मा: ।। छन्द:- अनुष्टुप्।।

शब्दार्थ- एक बाल से भी बहुत अधिक सूक्ष्म-अणु है और एक नहीं की तरह दीखता है। उससे परे उसे आलिंगन किये हुए, उसे व्यापे हुए जो देवता है वह मुझे प्यारी है।

विनय:- मुझमें प्रेमशक्ति किस प्रयोजन के लिए है? मेरे प्रेम का असली भाजन कौन है? यह खोजता हुआ जब मैं संसार को देखता हूँ तो इस संसार में केवल तीन तत्व ही पाता हूँ, तीन तत्वों में ही यह सब कुछ समाया हुआ देखता हूँ। इनमें से पहला तत्व बाल से भी अधिक सूक्ष्म है। बाल के अग्रभाग के सैंकड़ों टुकड़े करते जाएँ तो अन्त में जो अविभाज्य टुकड़ा बचे उस अणु, परम अणुरूप का यह तत्व है। प्रकृति के इन्हीं परमाणुओं से यह सब दृश्य जगत् बना है। इससे भी सूक्ष्म दूसरा तत्व है, पर इसकी सूक्ष्मता दूसरे प्रकार की है; इसकी सूक्ष्मता की किसी भौतिक वस्तु से तुलना नहीं की जा सकती। यह तत्व ऐसा अद्भुत है कि यह नहीं के बराबर है। यह है, किन्तु नहीं-जैसा है। इस दूसरे तत्व से परे और इससे सूक्ष्म और इसे सब ओर से आलिंगन किये हुए, व्यापे हुए, एक तीसरा तत्त्व है, तीसरी देवता है। यही देवता मुझे प्रिय है। पहली प्रकृति देवता जड़ और निरानन्द होने के कारण मुझे प्रिय नहीं हो सकती। दूसरी वस्तु मैं ही हूँ, मेरी आत्मा है। मैं तो स्वयं देखनेवाला हूँ, तो मैं कैसे दीखूँगा? अतः मैं नहीं के बराबर हूँ। मैं तो प्रेम करनेवाला हूँ, अतः प्रेम का विषय नहीं बन सकता। अतएव मेरे सिवाय मेरे सामने दो ही वस्तुएँ रह जाती हैं, यह प्रकृति और वह सच्चिदानन्दरूपिणी परमात्म-देवता। इनमें से चित्स्वरूप मुझे यह चैतन्य और आनन्द से शून्य प्रकृति कैसे प्रिय हो सकती है? मेरा प्यारा तो स्वभावतः वह दूसरा देवता है जोकि मेरी आत्मा की आत्मा है, जोकि मेरी आत्मा से परिष्वक्त हुआ इसमें सदा व्यापा हुआ है और जो मुझे आनन्द दे सकता है। मैं तो स्पष्ट देख रहा हूँ कि प्रकृति के समझे जानेवाले ये बड़े-से-बड़े ऐष्वर्य तथा प्रकृति के दिव्य-से-दिव्य भोग दे सकनेवाले ये अनगिनत पदार्थ सर्वथा आनन्द और ज्ञान-प्रकाश से शून्य हैं, अतः मैं तो प्रकृति से हटके अपने उस प्यारे परमात्मा की ओर दौड़ता हूँ। मैं स्पष्ट देखता हूँ कि अपने प्रेम द्वारा उसे पा लेने पर मेरी भटकती हुई प्रेम-शक्ति अपने प्रयोजन को पा लेगी, उसे पा लेने पर मेरा सम्पूर्ण प्रेम चरितार्थ और कृतकृत्य हो जाएगा।

🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂
ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे

🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚


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आज का सुविचार (30 अक्टूबर 2015, शुक्रवार, कार्तिक कृष्ण ३) दहलीज सीमापार धन का विद्या ग्रहण हेतु...

आज का सुविचार (30 अक्टूबर 2015, शुक्रवार, कार्तिक कृष्ण ३)

दहलीज सीमापार धन का विद्या ग्रहण हेतु उपयोग सर्वोत्तम उपयोग है। विद्या जिस धन पर सवार नहीं होती है, दहलीज सीमा पार वह धन हास्यास्पद होता है। एक बार मैं भिलाई के सर्वाधिक धनियों में से एक के निवास किसी कार्य से गया। उस घर में सुसज्जित बैरे, नौकर थे। वे सज्जन घर में नहीं थे। मैने एक बैरे से एक कागज देने को कहा। वह एक पैड़ लाया, जो इम्पोर्टेड सनबोर्ड कागज का लेटरहेड था। मैंने लिखते-लिखते नाम शिक्षा जो ऊपर लिखा था पढ़ी। लिखने के बाद मैंने कहा- क्या मैं एक लेटरहेड ले सकता हूं। बैरा हस दिया बोला- साहब ये नायाब है तीन-चार ले जाइए। मैं तीन-चार कागज़ लेटरहेड के ले आया। मेरे मित्रों में भी उसके लिए छीना-झपटी मची। उस मंहगे लेटरहेड पर धन कब्र स्याही से बायी ओर एक नाम छपा था और दाहिनी ओर उसकी शिक्षा स्वर्णिम अक्षरों लिखी थी The admirer of the film star Rajendra Kumar.
धन मुर्दा-बोझ न हो अतः उसका धर्म, ज्ञान-त्याग से आवरणित होना आवश्यक है। (~स्व.डॉ.त्रिलोकीनाथ जी क्षत्रिय)


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रामायण से (१६) प्रातकाल सरऊ करि मज्जन । बैठहिं सभाँ संग द्विज सज्जन ॥ बेद पुरान बसिष्ट बखानहिं...

रामायण से (१६)
प्रातकाल सरऊ करि मज्जन ।
बैठहिं सभाँ संग द्विज सज्जन ॥
बेद पुरान बसिष्ट बखानहिं ।
सुनहिं राम जद्यपि सब जानहिं ॥
अर्थात्— प्रात: काल सरयू जी में स्नान करके ब्राह्मणों और सज्जनों के साथ सभा में बैठते हैं ।बशिष्ठ जी वेद और पुराणों की कथाएँ वर्णन करते हैं और श्रीराम जी सुनते हैं यद्यपि वे सब जानते हैं ।
#ध्यान दें—आजकल के प्रचलित पुराणों के बारे में कहा जाता है कि इन्हें द्वापरयुग के अंत में व्यासमुनि ने लिखा है । अब यह तो हो नहीं सकता है कि द्वापरयुग के अंत में लिखे गए पुराणों का व्याख्यान बशिष्ठ मुनि त्रेतायुग में कर रहे हों ।क्योंकि त्रेतायुग पहले आता है और द्वापरयुग बाद में ।
बशिष्ठ मुनि वेदका उपदेश करते हुए पुराण ( अर्थात् इतिहास ) का मेल दिखाया करते थे ।
भगवान राम यह वैदिक उपदेश पहले से जानते थे क्योंकि ब्रह्मचर्याश्रम में वे बशिष्ठ मुनि से पढ़ चुके थे ।तथापि वेद का स्वाध्याय नित्य-प्रति करना चाहिए इसलिए वे वेद का उपदेश नित्य-प्रति बशिष्ठ मुनि से सुना करते थे ।


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ओउम् भूपेश आर्य~८९५४५७२४९१ गैर तो अपने क्या होने थे, अपने भी ना अपने हैं। इसिलिए भारत माता के आज...

ओउम्
भूपेश आर्य~८९५४५७२४९१
गैर तो अपने क्या होने थे,
अपने भी ना अपने हैं।
इसिलिए भारत माता के
आज अधूरे सपने हैं।।
मोहम्मद बिन कासिम को
अरब से बुलाने वाले गैर
ना थे।
सिन्ध के राजा दाहर राय को मिटाने वाले गैर ना
थे।
दाहर की दो कन्या अरब
पहुंचाने वाले गैर ना थे।
अरब-खरब की धनराशि
रिपु को बताने वाले गैर
ना थे।।
अपनों के काले कारनामें
इतिहासों में छपने हैं।
इसिलिए भारत माता के–।।
भाई राजकोट के छवि
मन्दिर को तोडने वाले
गैर ना थे।
प्रथ्वीराज राज चौहान
की आंखें फोडने वाले
गैर ना थे।
छत्रसाल,प्रताप,शिवा को
मोडने वाले गैर ना थे।
बंदे बैरागी को अकेला
छोडने वाले गैर ना थे।
गुरु गोविन्द सिंह से
लालों से लाल अनेको
अपने हैं।
इसीलिए भारत माता के
आज अधूरे सपने हैं।।
गैर तो अपने क्या होने
थे———–।।
७०० साल यवनों की
हुकूमत रखने वाले गैर
ना थे।
अंग्रेजों की सारी बुराईयां
ढकने वाले गैर ना थे।
वैदिक संस्क्रति के विरुद्ध
चल बकने वाले गैर ना थे।
ऋषियों की बांधी मर्यादा
तोडने वाले गैर ना थे।
यूं ही रहा भारत में लोगों
पाकिस्तान अनेकों अपने हैं।
इसिलिए भारत माता के
आज अधूरे सपने हैं।
गैर तो अपने क्या होने
थे————-।।
खान पान और भेष को
बिगाडने वाले अपने हैं।
अपने शहर गांवों को उजाडने वाले अपने हैं।
खुद को मिटाने के लिए
सिंह से दहाडने वाले
अपने हैं।
अनगिन जयचन्द भारत की जड पाडने वाले अपने
हैं।
शोभाराम कोई पेश चले
ना ये तो केवल तेरी कल्पने
हैं।
इसिलिए भारत माता के
आज अधूरे सपने हैं।
गैर तो अपने क्या होने
थे—————।।


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ओउम् ——-भूपेश आर्य——– स्वास्थय व धर्म सम्बन्धी कुछ...

ओउम्
——-भूपेश आर्य——–
स्वास्थय व धर्म सम्बन्धी कुछ नियम-
🌼1.ब्रहमुहूर्त(सूर्योदय से दो घण्टा पूर्व)में जागना चाहिए।
🌼२.जागकर परमात्मा का स्मरण करना चाहिए।
🌼३.निरोग और स्वस्थ अवस्था में प्रतिदिन स्नान करना चाहिए।
🌼४.स्नान के पश्चात आचमन कर और पवित्र होकर प्रतिदिन दोनों समय सावधान हो पवित्र अदान पर गायत्री जप करते हुए यथाविधि उपासना करनी चाहिए।
🌼५.गरम भोजन करना चाहिए।गरम भोजन शीघ्र पच जाता है।
🌼६.परस्पर विरूद्ध आहार नहीं लेने चाहिए।जैसे दही और दूध,आम का अचार और खीर,एक साथ नहीं लेने चाहिए।
🌼७.सूर्यास्त के समय भोजन,अध्ययन और निद्रा का सेवन नहीं करना चाहिए।
🌼८.जो बात अपने लिए प्रतिकूल जान पडे,वह दूसरों के प्रति भी नहीं करनी चाहिए।
🌼९.यदि कोई वार्तालाप करे तो उससे मीठा ओर मधुर बोलना चाहिए।-महा०३८/७१
🌼१०.यदि कोई अपनी और देखे तो उसकी और मधुर और सौजन्यपूर्ण द्रष्टि से देखना चाहिए।
🌼११.यदि किसी पर आपत्ति आ जाये,यदि कोई बुरे मार्ग पर चलने लगे तथा किसी का काम करने का समय बीत रहा हो तो बिना पूछे भी हितैषी पुरुष को उसके लिए हितकारी बात बता देनी चाहिए।शुक्रनीति २/२२३
🌼१२.उत्तर और पश्चिम की और सिर करके न सोये।विद्वान मनुष्य को पूर्व और दक्षिण की और सिर करके सोना चाहिए।-महा०१०४/४८
१३.शारिरीक,वाचिक या मान्सिक पाप नहीं करने चाहिए।
🌼 १४.बुद्धिमान को चाहिए कि पैर तथा जांघ फैला कर नहीं बैठना चाहिए।
🌼१५.खडे होकर पेशाब नहीं करना चाहिए।-महा०१०४
(हार्टफेल के कारणों में एक कारण खडे होकर पेशाब करना भी है।)
🌼१६.रात्रि में दही नहीं खाना चाहिए।-चरक सूत्र० ८/२०
रात्रि में दही का सेवन शरीर की शोभा व कान्ति को नष्ट करता है व आयु घटाता है।
🌼१७.पैरों को भिगोकर(पैर धोकर) भोजन करने वाला मनुष्य सौ वर्ष तक जीवित रहता है।(अत: पैर धोकर भोजन करना चाहिए।)-महा० १०४/६२
🌼१८.गीले पैर करके कभी न
सोयें।पैरों को पोछकर तब सोयें।
🌼१९.दूसरों द्वारा प्रयोग में लाये हुए व वस्त्र,जूता,माला और यज्ञोपवीत को धारण नहीं करना चाहिए।
🌼२०.बिना किसी कारण के दाढी-मूंछ बढाकर नहीं रखनी चाहिए।
🌼२१.या तो सभा में जाना नहीं चाहिए,यदि चले गये तो सत्य बोलना चाहिए।अन्याय की बात पर मौन रहने वाला अथवा व्यर्थ बोलने वाला मनुष्य पापी होता है।-मनु० ८/१३
🌼२१.जब तक शरीर स्वस्थ है और म्रत्यु दूर है,तभी तक आत्मकल्याण कर लेना चाहिए,मरने पर क्या कर सकेगा?
🌼२२.एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्ति।-ऋ० १/१६४/४६
एक ही परमात्मा को विद्वान लोग अनेक नामों से पुकारते हैं।
🌼२३.वेदाहमेतं पुरुषं महान्तमादित्यवर्णं तमसा परस्तात् ।
तमेव विदित्वाति म्रत्युमेति नान्य: पन्था विद्दतेअयनाय ।। यजु० ३१/१८
मैं उस महापुरुष(परमेश्वर) को जानूं,जो सूर्य के समान देदीप्यमान और अज्ञान अन्धकार से सर्वथा रहित है।उसी को जानकर मनुष्य म्रत्यु को भी लाँघ जाता है।उसे जाने बिना म्रत्यु से छूटने का
[11:12pm, 07/09/2015] भूपेश सिंह आर्य: मोक्ष प्राप्ति का और कोई उपाय नही है।


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।।सुप्रभातम् ।। ।।ॐ आज का पंचांग ॐ ।। तिथि………..—- पूर्णिमा...

।।सुप्रभातम् ।।

।।ॐ आज का पंचांग ॐ ।।

तिथि………..—- पूर्णिमा
वार………………. मंगलवार

सूर्योदय ———–६-४५
सूर्यास्त ———–१७-५५
चन्द्रोदय ———१८-०५
चन्द्रास्त ——– नहीं है।
सूर्य राशि ——– तुला
चन्द्र राशि——– मेष

कलियुगाब्द……………५११६
विक्रम संवत्…………..२०७२

ऋतु………….. शरद
अमांवस्यांत– —- आश्विन
पूर्णिमांत………आश्विन
पक्ष……………शुक्ल
नक्षत्र……… अश्विनी
योग………. वज्र

आंग्ल मतानुसार :-
२७ अक्टूबर सन् २०१५ ईस्वी

*आज का दिन सभी के लिए मंगलमय हो।

।। सुभाषितम् ।।

सुशीलो मातृपुण्येन ,
पितृपुण्येन चातुरः।
औदार्यं वंशपुण्येन ,
आत्मपुण्येन भाग्यवान् ।।

अर्थात्:- कोई भी संतान अपनी माता के पुण्य से सुशील होता है, पिता के पुण्य से चतुर होता है , वंश के पुण्य से उदार होता है और अपने स्वयं के पुण्य होते हैं तभी वो भाग्यवान होता है , भाग्य प्राप्ति के लिए सत्कर्म आवश्यक है।


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🌹🍃🌹🍃🌹🌹🍃ओ३म्🌹🌹🌹🍃🍃🍃 भूपेश आर्य जब लोग चमडे की भांति आकाश को लपेट सकेंगे,तब परमात्मा को जाने बिना...

🌹🍃🌹🍃🌹🌹🍃ओ३म्🌹🌹🌹🍃🍃🍃

भूपेश आर्य

जब लोग चमडे की भांति आकाश को लपेट सकेंगे,तब परमात्मा को जाने बिना दु:खों का नाश होगा।

अर्थात् जैसे चमडे की भांति आकाश को लपेटना असंभव है उसी प्रकार परमात्मा को जाने बिना दु:खों का नाश असंभव है।

अन्य कोई मार्ग नहीं।-
नान्य पन्था विद्यतेअयनाय:।


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🌞|| एक किताब जो बदल देगी जीवन! ||🌞 💐💐💐🇮🇳💐💐💐 🇮🇳1. देश के लिए बलिदान होने वाला पहला क्रांतिकारी मंगल...

🌞|| एक किताब जो बदल देगी जीवन! ||🌞
💐💐💐🇮🇳💐💐💐

🇮🇳1. देश के लिए बलिदान होने वाला पहला क्रांतिकारी मंगल पांडे स्वामी दयानंद का शिष्य था। मंगल पांडे को चर्बी वाले कारतूस प्रयोग करने के कारण पानी न पिलाने वाले स्वामी दयानंद ही थे। प्रमाण: महान स्वतंत्रता सेनानी आचार्य दीपांकर की पुस्तक पढे: 1857 की क्रांति और मेरठ

🌞2. सबसे कम उम्र के क्रांतिकारी खुदीराम बोस ने मरने से पहले गीता और सत्यार्थ प्रकाश के दर्शन किए, जब जेलर ने पूछा इन किताब में क्या है, उसने बताया, गीता मुझे दोबारा जन्म लेने की प्रेरणा देती है और सत्यार्थ प्रकाश स्वदेशी राज्य की प्राप्ति का मार्ग सुझाती है। इसलिए मैं जन्म लेकर दोबारा आउंगा और आजादी प्राप्त करूंगा।

प्रमाण: खुदीराम की जीवनी तेजपाल आर्य की लिखी पढ़े।
और देश के सबसे वृद्ध क्रांतिकारी लाला लाजपत राय पर जब लाठियां बरस रही थी, उनके हाथ में तब भी सत्यार्थ प्रकाश था।

🌼3. पं. मदनमोहन मालवीय जी ने आर्यसमाज का यहां तक विरोध किया कि सनातन धर्म सभा तक बना डाली, लेकिन जब मरने लगे तो काशी के सब पंडित उनके दर्शन करने आए और बोले, महामना जी हमारा मार्गदर्शन अब कौन करेगा? तो मदनमोहन मालवीय जी ने उन्हें सत्यार्थप्रकाश देते हुए कहा,

‘‘सत्यार्थ प्रकाश आपका मार्गदर्शन करेगा।’’

प्रमाण: घोर पौराणिक लेखक अवधेश जी की पुस्तक महामना मालवीय पढ़े, जो हिन्द पॉकेट बुक्स से छपी है।

🌻4. सत्यार्थप्रकाश पढकर एक तांगा चलाने वाला दुनिया में मशालों का शहंशाह बन गया: एमडीएच मशाले और सत्यार्थ प्रकाश पढ़कर एक पिंक्चर लगानेवाला हीरो ग्रुप का अध्यक्ष बन गया: ओमप्रकाश मूंजाल

🌅5. सत्यार्थ प्रकाश पढकर होमी भाभा ने भारत में परमाणु युग की शुरूआत की और डॉक्टर कलाम ने गीता के साथ-साथ सत्यार्थप्रकाश भी अनेक बार पढा है।

गॉड पार्टिकल और हिग्स बोसोन की खोज के कारण जिन विदेशियों को नोबेल पुरस्कार मिला, जानते हो मेरे पास 1966 की एक हिन्दी पत्रिका नवनीत है, उसमें ये सिद्धांत तब के ही लिखे हैं और वह लेख लिखा हुआ है सत्येंद्रनाथ बोस का, जो आर्य समाज के सदस्य थे और वैज्ञानिक भी, अब इतने दिन बाद पुरस्कार कोई और ले गया। चलो फिर भी विज्ञान में न सही अभी समाज सेवा में कैलासजी को नोबेल मिला, वे भी सत्यार्थ प्रकाश पढने वाले ही हैं और जनज्ञान प्रकाशन की पंडिता राकेश रानी के दामाद हैं। जनज्ञान प्रकाशन ने कभी सबसे सस्ते वेद प्रकाशित किए थे।

🌲6. सत्यार्थ प्रकाश पढ़कर फीजी, गुयाना, मोरीशस में कई व्यक्ति राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री बन गए।

🌺7. सत्यार्थ प्रकाश पढ़ने वाले लाल बहादुर शास्त्री और चौधरी चरण सिंह देश के सबसे ईमानदार प्रधानमंत्री कहलाए। चरणसिंह की राजनीति कैसी भी रही हो, लेकिन जमींदारी उन्मूलन के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। नेहरूजी सहकारिता के नाम पर हिन्दुस्तान की सारी जमीन रूस को देने वाले थे, ऐसे ही जैसे उन्होंने आजाद भारत में माउंटबेटन को गवर्नर बना दिया। यदि सत्यार्थप्रकाश पढने वाले चरणसिंह न होते तो आज हमारे किसानो के आका रूस के लोग होते और देश रूस का गुलाम होता।

प्रमाण: कमलेश्वर की इंदिरा की जीवनी अंतिम सफर (संपूर्ण मूल संस्करण, क्योंकि यह संक्षिप्त भी है) पुस्तक पढे, कमलेश्वर इंदिरा जी के चहेते थेे, उनकी मौत पर दूरदर्शन से कमेंटरी उन्होंने ही की थी।

🌸8. सत्यार्थप्रकाश जिसने भी पढा, वह शेर बन गया, रामप्रसाद बिस्लिम, श्याम कृष्णवर्मा, श्यामाप्रसाद मुखर्जी, डॉक्टर हेडेगेवार के पिताश्री बलिराम पंत हेडगेवार जो आर्य समाज के पुरोहित थे आदि और आज के युग में भी शेर ही होते हैं। सुनो कहानी: सत्यार्थ प्रकाश पढ़कर साहित्यकार तेजपाल सिंह धामा ने भारत माता का नग्न चित्र बनानेवाले एमएफ हुसैन को 15 वर्ष पहले हैदराबाद में पत्रकार सम्मेलन में सबके सामने जोरदार चांटा जडा, अपमानित होकर बेचारे हुसैन देश ही छोड गए और हैदराबाद जैसे मुस्लिम शहर में रंगीला रसूल का पुनः प्रकाशन भी किया और सौ से अधिक पुस्तके आर्य समाज से संबंधित लिखी।

💐9. सत्यार्थ प्रकाश पर 2008 में प्रतिबंध के लिए जब भारत भर के मुल्ला-मौलवी एकत्र हुए और अदालत में पहुंचे तो फैसला सुनाने वाले जज ने न केवल सत्यार्थ प्रकाश के पक्ष में फैसला दिया वरन स्वयं आर्य समाजी हो गया और मुसलमानो का एक मुस्लिम वकील भी आर्य समाजी बन गया, बेचारे ने भूल से सत्यार्थप्रकाश का अध्ययन किया था ताकि गलत तथ्य निकाल सके। आर्यसमाज की ओर से यह मुकदमा विमल वधावनजी ने लडा था, विमलजी भी सत्यार्थ प्रकाश पढनेवाले ही हैं।

🌾10. सत्यार्थप्रकाश पढकर ही मुंशी प्रेमचंद भारत के सबसे लोकप्रिय लेखक बने, उनकी धर्मपत्नी ने ही ऐसा लिखा है।

👌सत्यार्थ प्रकाश से प्रेरणा लो और वेदो की ओर लोटो!


🇮🇳जयंतु भारतीय🚩🚩🚩
🙏🙏🙏🙏🏽🙏🏽🙏🏽🙏🏽🙏🙏🙏


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विष्णु गुप्ता जी को गौमाता के लिए आवाज उठाने पर दिल्ली पुलिस (बीजेपी अधीन) ने जेल में डाल दिया...

विष्णु गुप्ता जी को गौमाता के लिए आवाज उठाने पर दिल्ली पुलिस (बीजेपी अधीन)
ने जेल में डाल दिया ,विष्णु गुप्ता हिन्दुओ की सम्मान, गौमाता के लोए आवाज उठाने पर जेल में बंद कर दिए गए
—————————
हिन्दू समाज मौन बैठा देख रहा है, कोई नहीं है हिन्दुओ के लिए आवाज उठाने वाला
मार डालो इस देश में हिन्दुओ को जैसे पाकिस्तान और बांग्लादेश में मार देते है

हिन्दुओ चुप चाप देख रहे हो, तुम्हारी माता नहीं है न गाय, सिर्फ विष्णु जी की माता है वो
देखते रहो चुपचाप, जेल में तुम नहीं गए न, कायर क्या जेल में जायेगा, तुम चुपचाप बस हिन्दुओ का दमन होता, गाय का क़त्ल होता देखते रहो


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Wednesday, October 28, 2015

👏वंदेगौमातरम👏 🍀वैद्य प्रदीप कुमार 🍀 🐮🐮गौसेवक🐮🐮 👉आज के आधुनिक जीवनशैली का परिणाम है मोटापा। मोटापे का...

👏वंदेगौमातरम👏
🍀वैद्य प्रदीप कुमार 🍀
🐮🐮गौसेवक🐮🐮
👉आज के आधुनिक जीवनशैली का परिणाम है मोटापा। मोटापे का एक रूप है पेट में चर्बी, जो पूरे शरीर के बनावट को बिगाड़ देता है। यह चर्बी वाला पेट आपके सुंदर शरीर के बनावट को बदसूरत बना देता है। सच तो यह है कि इसके लिए जिम्मेदार आप खुद ही होते हैं। आपका रहन-सहन ही इसका मूल कारण होता है। आजकल समय के अभाव के कारण लोग रेडीमेड फूड, प्रोसेस्ड फूड, जंक फूड खाने के आदि हो गए है। ऑफिस से लौटने पर खाना बनाने का मन नहीं करने पर रेस्तरां में खाने चले जाते हैं, वहाँ के मसालेदार खाने का असर आपके पेट को चुकाना पड़ता है।
👉आयुर्वेद के अनुसार कार्बोनेटेड फूड, मीठा व्यंजन, सॉफ्ट ड्रिंक, तेल और मसालेदार खाना कफा और मेधा को बढ़ाते हैं जिसके कारण पेट में चर्बी जमने लगता है।
🍀🌿उपचारः🍀🌿
👉औषधी का वर्णन👈
🎎मोटापानाशक चूर्ण🎎
👉काली जीरी-150ग्राम
👉त्रिकुट चूर्ण-150ग्राम
👉सनाय-150ग्राम
👉काली मिर्च-60ग्राम
👉हीरा हींग-30ग्राम
👉छोटी हरड़-150ग्राम 7 दिन तक गोमुत्र में भीगी हुई जिसका गोमुत्र हर रोज बदला जाये।फिर गोमुत्र में से निकाल कर 15ग्राम अरण्डी के तेल में भुने।वो स्वतः ही सुख जाएँगी नमी दूर हो जायेगी और फूल जायेगी।फिर उसका चूर्ण बनाये।ध्यान रहे की गोमुत्र देसी गाय का हो।
👉सेंधा नमक आवश्यकतानुसार
👉सभी सामग्री का चूर्ण बनाकर कांच के मर्तबान में 15 दिनों तक रखने के बाद प्रयोग में लाएं।
👉मात्रा-5 से10ग्राम या वैद्यकीय सलाहनुसार ले रात को सोते समय गुनगुने या गर्म पानी से सिर्फ एक ही बार ले।
👉2-शुद्ध भिलावा -50ग्राम
👉गिलोय-100ग्राम
👉त्रिफला चूर्ण-100ग्राम
👉सभी को मिलाकर 5ग्राम की मात्रा में 10ग्राम देशी शहद के साथ मिलाकर दे।
👉👉25 ग्राम निम्बू के रस में 125ग्राम गर्म पानी मिलाकर यथासंभव मधु मिलाकर शर्बत के समान बनाकर पिए।ये ध्यान रहे की ये खाली पेट लेने के बाद 1 घंटा तक कुछ नहीं खाना पीना है।
👉उपरोक्त नुख्से प्रयोग करने पर कैेसी भी चर्बी हो कुछ ही दिनों में घट जायेगी।यह मेने खुद पर भी और बहुत मरीज़ो पर आजमाया है।यह इंजेकशन की तरह काम करता है।
👉ज्यादा जानकारी के लिए WhatsApp no 8199921614।नो चैटिंग केवल फोन।
📞वैद्य प्रदीप कुमार✒
🐮🐮गौसेवक🐮🐮


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गर्व था भारत-भूमि को कि महावीर की माता हूँ।। राम-कृष्ण और नानक जैसे वीरो की यशगाथा हूँ॥ कंद-मूल...

गर्व था भारत-भूमि को
कि महावीर की माता हूँ।।

राम-कृष्ण और नानक जैसे
वीरो की यशगाथा हूँ॥

कंद-मूल खाने वालों से
मांसाहारी डरते थे।।

पोरस जैसे शूर-वीर को
नमन ‘सिकंदर’ करते थे॥

चौदह वर्षों तक वन में
जिसका धाम था।।

मन-मन्दिर में बसने
वाला शाकाहारी राम था।।

चाहते तो खा सकते थे
वो मांस पशु के ढेरो में।।

लेकिन उनको प्यार मिला
’ शबरी’ के झूठे बेरो में॥

चक्र सुदर्शन धारी थे
गोवर्धन पर भारी थे॥

मुरली से वश करने वाले
'गिरधर’ शाकाहारी थे॥

पर-सेवा, पर-प्रेम का परचम
चोटी पर फहराया था।।

निर्धन की कुटिया में जाकर जिसने मान बढाया था॥

सपने जिसने देखे थे
मानवता के विस्तार के।।

नानक जैसे महा-संत थे
वाचक शाकाहार के॥

उठो जरा तुम पढ़ कर
देखो गौरवमयी इतिहास को।।

आदम से गाँधी तक फैले
इस नीले आकाश को॥

दया की आँखे खोल देख लो
पशु के करुण क्रंदन को।।

इंसानों का जिस्म बना है
शाकाहारी भोजन को॥

अंग लाश के खा जाए
क्या फ़िर भी वो इंसान है?

पेट तुम्हारा मुर्दाघर है
या कोई कब्रिस्तान है?

आँखे कितना रोती हैं
जब उंगली अपनी जलती है।।

सोचो उस तड़पन की हद
जब जिस्म पे आरी चलती है॥

बेबसता तुम पशु की देखो
बचने के आसार नही।।

जीते जी तन काटा जाए,
उस पीडा का पार नही॥

खाने से पहले बिरयानी,
चीख जीव की सुन लेते।।

करुणा के वश होकर तुम भी शाकाहार को चुन लेते॥

शाकाहारी बनो…!
।।.शाकाहार-अभियान.।।

कृपया ये msg सभी को भेजे…..


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"सुविचार: दिनांक : २४/१०/२०१५   - प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारम्भ में, मध्य में और अन्त में ईश्वर की..."

“सुविचार: दिनांक : २४/१०/२०१५
 
- प्रत्येक शुभ कार्य के प्रारम्भ में, मध्य में और अन्त में ईश्वर की स्तुति-प्रार्थना-उपासना करनी चाहिए। इससे एक तो वह कार्य सरलता से हो जाता है, दूसरा मिथ्याभिमान नहीं रहता, तीसरा मैं और मेरा भाव नष्ट हो जाता है, यह एक शिष्ट व्यवहार है। 
 
पूज्य स्वामी सत्यपति जी”
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—~~~**★उम्मुल किताब★**~~~– अर्थात् —~~~***★ पवित्र वेद...

—~~~**★उम्मुल किताब★**~~~–
अर्थात्
—~~~***★ पवित्र वेद ★***~~~—

आर्ष साहित्य में ईश्वरीय सविधान को श्रुति कहा जाता है जिसे कुरान ने उम्मुल किताब ( अर्थात किताबो की जननी ) कहा गया है । यह ईश्वरीय ज्ञान कुरान इंजील तौरेत जबूर इन सब की जननी है । अथर्ववेद में अल्लाह ने उस उम्मुल किताब का नाम दिया है जिसे वेद माता कहा गया है । वेद को उम्मुल किताब इसी लिए कहा गया है की यही वेद ही दुनिया के आधुनिक व् नवींन ज्ञान विज्ञानं का आधार है अर्थात उसे जन्म देने वाला है । सब विद्वान एक मत होकर मानते है की दुनिया के पुस्तकालय में वेद सबसे प्राचीन है । ईश्वर ने सृष्टि के आरम्भ में आदम ( इन्सान ) को सम्पूर्ण ज्ञान अर्थात उम्मुल किताब अर्थात वेद का ज्ञान दिया जिसका वर्णन कुरान में इस तरह है ।

इल्लमा आदमल असमाआ कुल्लहा
अर्थात आदम को संसार के सभी वस्तुओ के नाम सिखाये ।
यहाँ अल्लाह मिया का स्पष्ट उपदेश है की आदम को सृष्टि के आरम्भ में सम्पूर्ण ज्ञान दिया गया था । जैसा की वैदिक मान्यता है की सृष्टि के आदि ही ईश्वर ने सम्पूर्ण ज्ञान आदम ( मनुष्य ) को दे दिया था । इसलिए ईश्वर अर्थात अल्लाह के बार बार इल्हाम अर्थात ज्ञान देने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता । आर्य जाति ही वह जाति है जो अल्लाह के उस सम्पूर्ण और एक मात्र इल्हाम को आज तक अनुसरण करती आई है । वरना प्रत्येक मत सम्प्रदाय ने उस ईश्वर के असली इल्हाम वेद के स्थान पर भिन्न भिन्न मजहबी विचारधारा को इल्हाम का नाम दे दिया है । इसलिए हे आदम के वंशजो लौट आओ उम्मुल किताब अर्थात वेद की ओर ।
–~~**★ आ अब लौट चलें ★**~~–
–~~**★ पवित्र वेदों की ओर ★**~~–
–~~**★ प्यारे वेदों की ओर ★**~~–
–~~**★ न्यारे वेदों की ओर ★**~~–
–~~**★ अपने वेदों की ओर ★**~~–
–~~**★ पवित्र वेदों की ओर ★**~~–
–~~**★ आ अब लौट चलें ★**~~–
—~*★ जय आर्य जय आर्यवर्त ★*~—
—~~~***★ ॥१०८॥ ★***~~~—


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😇 श्री रामचंद्रजी के कुलकी वंशावली। 1 - ब्रह्मा जी से मरीचि हुए, 2 - मरीचि के पुत्र कश्यप हुए, 3 -...

😇 श्री रामचंद्रजी के कुलकी
वंशावली।
1 - ब्रह्मा जी से मरीचि हुए,
2 - मरीचि के पुत्र कश्यप हुए,
3 - कश्यप के पुत्र विवस्वान थे,
4 - विवस्वान के वैवस्वत मनु हुए.वैवस्वत मनु के समय
जल
प्रलय हुआ था,
5 - वैवस्वतमनु के दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु था,
इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी
बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुलकी स्थापना
की |
6 - इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए,
7 - कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था,
8 - विकुक्षि के पुत्र बाण हुए,
9 - बाण के पुत्र अनरण्य हुए,
10- अनरण्य से पृथु हुए,
11- पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ,
12- त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए,
13- धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था,
14- युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए,
15- मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ,
16- सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित,
17- ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए,
18- भरत के पुत्र असित हुए,
19- असित के पुत्र सगर हुए,
20- सगर के पुत्र का नाम असमंज था,
21- असमंज के पुत्र अंशुमान हुए,
22- अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए,
23- दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए,
भागीरथ ने ही गंगा को
पृथ्वी
पर उतारा था.भागीरथ के पुत्र ककुत्स्थ थे |
24- ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए, रघु के अत्यंत
तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के
कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया, तब से
श्री राम के कुल को रघु कुल भी कहा
जाता है |
25- रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए,
26- प्रवृद्ध के पुत्र शंखण थे,
27- शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए,
28- सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था,
29- अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग हुए,
30- शीघ्रग के पुत्र मरु हुए,
31- मरु के पुत्र प्रशुश्रुक थे,
32- प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए,
33- अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था,
34- नहुष के पुत्र ययाति हुए,
35- ययाति के पुत्र नाभाग हुए,
36- नाभाग के पुत्र का नाम अज था,
37- अज के पुत्र दशरथ हुए,
38- दशरथ के चार पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न
हुए |
इस प्रकार ब्रह्मा की उन्तालिसवी
(39वीं )पीढ़ी में
श्रीराम का जन्म
हुआ | 😇
नोट : -अपने बच्चों को बार बार पढ़वाये और उन्हे हिन्दू धर्म की महता के बारे में समझायें । 😇


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Monday, October 26, 2015

ओउम् ——-भूपेश आर्य——– आत्मिक शक्ति सम्पन्न ग्रहस्थ:- जिस नर में आत्मिक...

ओउम्
——-भूपेश आर्य——–
आत्मिक शक्ति सम्पन्न ग्रहस्थ:-
जिस नर में आत्मिक शक्ति है,अन्याय से झुकना क्या जानें।
जिस दिल में ईश्वर भक्ति है,वह पाप कमाना क्या जानें।।
माँ-बाप की सेवा करते हैं,उनके दु:खों को हरते हैं।
वह मथुरा,काशी,हरिद्वार,व्रन्दावन जाने क्या जानें।।
दो काल करें सन्ध्या व हवन,नित सत्संग में जो जाते हैं।
भगवान का है विश्वास जिन्हें,दु:ख में घबराना क्या जानें।।
जो खेला है तलवारों से और अग्नि के अंगारों से।
रण भूमि में जाके पीछे,वह कदम हटाना क्या जानें।।
हो कर्मवीर और धर्मवीर वेदों का पढने वाला हो।
वह निर्बल दुखिया बच्चों पर,तलवार चलाना क्या जानें।।
मन मन्दिर में भगवान बसा,जो उसकी पूजा करता है।
मन्दिर के देवता पर जाकर,वह फूल चढाना क्या जाने।।
जिसका अच्छा आचार नहीं,और धर्म से जिसको प्यार नहीं।
जिसका सच्चा व्यवहार नहीं,नन्दलाल का गाना क्या जानें।।
~~~~~इति ओउम्~~~~~


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यजुर्वेद ८-४९ (8-49) क॑कु॒भ रू॒पँ वृ॑ष॒भस्य॑ रोचते बृ॒हच्छु॒क्रः शु॒क्रस्य॑ पुरो॒गाः सोमः॒ सोम॑स्य...

यजुर्वेद ८-४९ (8-49)

क॑कु॒भ रू॒पँ वृ॑ष॒भस्य॑ रोचते बृ॒हच्छु॒क्रः शु॒क्रस्य॑ पुरो॒गाः सोमः॒ सोम॑स्य पुरो॒गाः । यत्ते॑ सोमा॒दाभ्यन्नाम॒ जागृ॑वि॒ तस्मै॑ त्वा गृह्णामि॒ तस्मै॑ ते सोम॒ सोमा॑य॒ स्वाहा॑ ॥

भावार्थ:- सभाजन और प्रजाजनों को चाहिये कि जिसकी पुण्य प्रशंसा, सुन्दररूप, विघया, न्याय, विनय, शूरता, तेज, अपक्षपात, मित्रता, सब कामों में उत्साह, आरोग्य, बल, पराक्रम, धीरज, जितेन्द्रियता, वेदादि शास्त्रों में श्रद्धा और प्रजापालन में प्रीति हो, उसी को सभा का अधिपति राजा मानें।।

Pandit Lekhram Vedic Mission

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११ कार्तिक 27 अक्टूबर 2015 😶 “ प्राण की महामहिमा ! ” 🌞 🔥🔥 ओ३म् यथा...

११ कार्तिक 27 अक्टूबर 2015

😶 “ प्राण की महामहिमा ! ” 🌞

🔥🔥 ओ३म् यथा प्राण बलिहृतस्तुभ्यं सर्वा: प्रजा इमा: । 🔥🔥
🍃🍂 एवा तस्मै बलिं हरान् यस्त्वा शृणवत् सुश्रव: ।। 🍂🍃

अथर्व० ११ । ४ । १९

ऋषि:- भार्गवो वैदर्भि: ।। देवता- प्राण: ।। छन्द:- अनुष्टुप्।।

शब्दार्थ- हे प्राण!
जैसे ये सब प्रजाएँ, जीव तेरे लिए बलि का, कर का, भेंट का आहरण करनेवाली हैं इसी तरह उस पुरुष के लिए भी ये सब प्रजाएँ बलि, भेंट को लाती हैं, लाने लगती हैं जो प्राणोपासक पुरुष हे सुन्दर सुननेवाले, हे सुन्दर यश वाले! तुझे सुनता है।

विनय:- हे महासम्राट् प्राण!
यह देखो कि संसार-भर के सब प्राणी, सब प्रजाएँ, सब जीव तुम्हारे लिए कर ला रहे हैं, तुम्हें प्रतिदिन अन्नरूपी कर की भेंट चढ़ा रहे हैं। यदि वे ऐसा न करें तो वे जीवित ही न रह सकें। तुम ऐसे प्रतापी सम्राट् हो कि डर के मारे, अपने मर जाने के डर के मारे, संसार-भर के सब जीव नित्य तुम्हारी प्राणाग्नि में अन्न-बलि दे सकने के लिए अन्नों को जहाँ-तहाँ से ला रहे हैं, बड़े यत्न से पसीना बहाकर अन्न-धन जमा कर रहे हैं और किसी-न-किसी तरह तुम्हें संतृप्त कर रहे हैं।
हे प्राण!
तुम जीवनमात्र के सदा प्रथम उपास्य बने हुए हो। हे सुश्रव:, हे सुन्दर सुनानेवाले, हे सुन्दर यशवाले! तुम्हारा वह भक्त भी इसी प्रकार सब लोगों का उपास्य और सबकी बलियों का भाजन बन जाता है जो तुम्हारा पूर्ण उपासक हो जाता है, जो तुम्हारे सुन्दर यश को सुनता है, तुम्हारी आज्ञाओं व बातों को सुनता है और ठीक उनके अनुसार आचरण करता है। जो मनुष्य प्राण की उपासना करते हैं, प्राण की महामहिमा का श्रवण-मनन करते हैं, उनके कानों में तुम न केवल सदा अपना दिव्यज्ञान सुनाने लगते हो, किन्तु उन्हें कब क्या करना चाहिए ऐसा अपना दिव्य सन्देश भी हर समय देने लगते हो। धन्य हैं वे पुरुष जिन्हें इस प्रकार प्राण के श्रोता बनने का महासौभाग्य प्राप्त होता है। ऐसे लोग, हे प्राण! मनुष्यसमाज के प्राण बन जाते हैं। हम संसार में देखते हैं कि मनुष्यसमाज के प्राणभूत ऐसे महापुरुषों के लिए सब लोग अपना अहोभाग्य समझते हुए नानाविध भेंट लाते हैं, उनके सामने अपना घर, धन, सम्पत्ति, पुत्र, जीवन तक उपस्थित कर देते हैं, उन्हें जीवित रखने की सब-के-सब लोग चिंता करते हैं और अपने-आप मरकर भी उन्हें जीवित रखना चाहते हैं।
हे प्राण!
जब तुम्हारे श्रोता की ही इतनी महिमा है तो स्वयं तुम्हारी अपनी महिमा को हम तुच्छ लोग क्या बखान कर सकते हैं?

🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂
ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे

🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚


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ओउम भूपेश आर्य~8954572491 प्रभु रचना तेरी अजब निराली है। तू अजर अमर,अज,निराकार,परमेश्वर देह कभी न...

ओउम
भूपेश आर्य~8954572491
प्रभु रचना तेरी अजब निराली है।
तू अजर अमर,अज,निराकार,परमेश्वर देह कभी न धरै,
बिन पैर चले,बिन कान सुनै,बिन हाथ करोडों काम करै,
हर जगह पे भगवन वास तेरा,महाप्रलय तू भी ना मरे,
तू पिता है सब है पुत्र तेरे,
भोजन दे सबका पेट भरै,
डर जिसे तेरा वो निडर हुआ,
दुनिया से बिल्कुल भी ना डरै,
जिनकी लौ तुझसे लगी रहै,सुख दे उनके सब दु:ख हरै,
हाकिम तू सारी दुनिया का,
हुक्म तेरा टाले ना टले,
जो दीन गरीब तेरी आस करै,पल भर तू भव सिन्धु तरै,
दु:ख निदान जग फूल बगिया का तू ही माली है।
रचना तेरी अजब निराली है।
प्रभु रचना तेरी अजब निराली है।।
किसी पेड पर फल लटकै,
किसी के ऊपर लगै फली,
कहीं ऊंचे टीले चमक रहे,
कही मरूभूमि कर तार करी,कही ताड खडे है बेशुमार,
कही घास खडी हरी हरी,
कही घना वन कही उजाड, ,कही पे खुष्की कही तरी,
हाय हाय कही वाह वाह,
खैर हुई कही पडी मरी,
कही जन्म हुआ और कही मरण,कही गीत गवै कही चिता जली,
द्वार पै नौबत बाज रही,
कहीं घर मैं अंखिया नीर भरी,
किस तौर करूं गुणगान प्रभु,
धन्य -धन्य तेरी कारिगरी,
कही अंधेरा किसी के घर में रोज दिवाली है।
रचना तेरी अजब निराली है।
प्रभु रचना तेरी अजब निराली है।।
कोई शहंशाह बना दिया,कोई टुकडे मांगे दर दर पे,कोई साहूकार बडा
भारी,
कोई तकै आसरे घर घर के,
कोई बना दिया बेखौफ खतर,कोई वक्त गुजारे डर डर के,
कोई गुजर करे है छप्पर में,
कही महल खडे संगमरमर के,
कोई हंसे कहकहा मार मार,कोई रोवै आंसू भरभर के,
कोई हुक्म चलावै लाखों पर,
कोई जीवै सेवा कर कर के,
कोई मोज करै कोई पेट भरै,अपने सिर बोझा धर धर के,
कोई देख किसी को खुशी रहै,
कोई मिला खाक में जर जर के,
कोई है गौरा किसी की बिल्कुल कायाकाली है।
प्रभु रचना तेरी अजब निराली है।
प्रभु रचना तेरी अजब निराली है।।
कही थार पडे हैं धरती में,कहीं ऊंची शिखर पहाडों की,
कही गर्मी है तन गर्म किया,
कही शान दिखा दी जाडों की,
कहीं झील बना दी बडी बडी,
कही शोभा छोटे तालों की,
बडें समुन्दर नीर भरे,कहीं
छवि है नदी नालों की,
रेगिस्तान बडे भारी,
कहीं शोभा प्यारे बागों की,
कोयल कू कू शब्द करै,
कहीं कांव कांव है कागों की,
दिन है सूरज निकल रहा,
कहीं रात है रंगीन सितारों की,
कोई शहर विरान हुआ,
कहीं शान बुलंद बाजारों की,
कोई है गौरा किसी की बिल्कुल काया काली है।
रचना तेरी अजब निराली है।
प्रभु रचना तेरी अजब निराली है।।
कोई चलै नहीं बिन मोटर के,
कोई नंगें पैरों भाग रहा,
कहीं ढेर पडे जर जेवर के,
कोई कर्ज किसी से मांग रहा,
किसी का दुश्मन बन बैठा,
कोई प्रेम किसी से पाल रहा,
कोई छिडक कही पर नीर रहा,
कोई जला कही पर आग रहा,
धर्म से मुंह को मोड रहा,
कोई प्रभु से लगन जोड रहा,
कोई सुख निंदिया में सोय रहा,
कोई पडा फिक्र में जाग रहा,
कोई दुर्जन जन्म बिगाड रहा,
कोई सज्जन जन्म सुधार रहा,
कोई महलों की अभिलाष करै,
कोई बनी हवेली त्याग रहा,
तेरी नजर में सब दुनिया की देखाभाली है।
रचना तेरी अजब निराली है।
प्रभु रचना तेरी अजब निराली है।।
कुल जहां में तेरा जलवा है,
तुझसा जलवेगर कोई नही,
हर अफसर का तू अफसर है,
पर तेरा अफसर कोई नहीं,
सबके भीतर बहार है,
तुझसे बहार कोई नहीं,
ईश्वर तेरीे शान का दुनिया में दिलावर कोई नहीं,
करुणानिधान तुझसे महान,
धरती के ऊपर कोई नहीं,
तू ही मात पिता तू ही स्वामी सखा,
बस तेरी बराबर कोई नहीं,
रुपराम के कष्ट हरो क्यो देर लगादी है।
रचना तेरी अजब निराली है।
प्रभु रचना तेरी अजब निराली है।।
नरदेव जी का गाया हुआ ये भजन मुझे बहुत ही बढिया लगता है।
~~~~~~इति ओउम्~~~~~


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आज का सुविचार (20 अक्टूबर 2015, मंगलवार, कार्तिक शुक्ल ७) मानव हेतु सुउत्पत्ति, सुधारण, सुपालन,...

आज का सुविचार (20 अक्टूबर 2015, मंगलवार, कार्तिक शुक्ल ७)

मानव हेतु सुउत्पत्ति, सुधारण, सुपालन, सुचालन, सुसंचालन जीवन-मन्त्र संस्कार योजना है। नौकरी का जीवन-समृद्धिकरण हेतु भी संस्कार-योजनाएं हैं। इन संस्कार योजनाओं का नाम है- प्रशिक्षण, संगोष्ठियां, कार्यशालाएं तथा सेमिनार। इन्हें संस्कारवत नियमबद्ध करना एक महान उद्योग सेवा होगी। इनके स्वरूप में रचनात्मक परिवर्तन करना आवश्यक है। वर्तमान में ये पदाधारित हैं। इन्हें पांडित्याधारित करना होगा। राष्ट्रीय सेमिनार नेता आधारित होते हैं। अयोग्य सेमिनार अक्षमताकारक होते हैं। धन-समय-योग्यता की बरबादी होते हैं। इनमें रखे भव्य लंच, डिनर, हाई टी तथा भेटें इनके सार स्वरूप तथा ज्ञान-स्वरूप को खा डालते हैं। मोटी भाषा में कहा जाए तो ये सेमिनार चालू लोगों के आमोद-प्रमोद के साधन हो गए हैं। अन्तर्राष्ट्रीय सेमिनारों में सारे विश्व-विद्वानों के हेवि लंच के बाद सोते ऊँघते चित्र मेरे पास हैं। `सवितुर्वरेण्यम्’ स्वरूप से इन्हें निखारना होगा। (~स्व.डॉ.त्रिलोकीनाथ जी क्षत्रिय)


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Sunday, October 25, 2015

[10/24, 2:56 PM] ‪+91 98794 70645‬: प्रभावती कटक जो पामी , नारो ए जय हिन्द जेवो फोज नो मुखीयो बनी ,...

[10/24, 2:56 PM] ‪+91 98794 70645‬: प्रभावती कटक जो पामी , नारो ए जय हिन्द जेवो

फोज नो मुखीयो बनी , हंकारतो सौ ने एवो

देश खातर दुनिया फर्यो , रहेतो बधे ए मोखरे

अणमोल भारत देश मा , भडवीर आवा अवतरे !
[10/24, 2:56 PM] ‪+91 98794 70645‬: भगतसिंह ने भेळे सुखदेव , राजगुरु अजब हता

उठाडवा अम उंघ थी , दिनरात ए तपता हता

इंकलाब ना ए नाद संगे , गान वंदे चुळी चडे

अणमोल भारत देश मा , भडवीर आवा अवतरे !
[10/24, 2:56 PM] ‪+91 98794 70645‬: पंडीत भयो जगरानी नो , सुर ने रोज सजावतो

आजाद हो आ धरा अमणी , गोरा ने हंफावतो

जीव्यो हतो जे हठ थी , वेळा मरण वेश ए घरे

अणमोल भारत देश मा , भडवीर आवा अवतरे !
[10/24, 2:56 PM] ‪+91 98794 70645‬: अहिरवाल मा अडाभीड ए , कुंवरे तुलाराम जण्यो

गरव देखाडी गोरा ने , नजरे फरी राजा बन्यो

देश अने विदेश भमी , आजादी नो नाद आदरे

अणमोल भारत देश मा , भडवीर आवा अवतरे !
[10/24, 2:56 PM] ‪+91 98794 70645‬: लाडबाई जणे लोह ने , गुजरात नु गौरव वध्यु

जगतात ना दुंखो सुणी , सरदार ने पाणी चड्यु

खरे टाणे भारत भमी , अनेक ने ए एक करे

अणमोल भारत देश मा , भडवीर आवा अवतरे !
[10/24, 2:56 PM] ‪+91 98794 70645‬: मंगल कीधु मंगल ए पांडे , संग्राम नो खरो शंख फुंके

नागवा उत्तर मा नाग ए , नामरदो ने तो ना झुके

हणाय गयो ए हिन्द काजे , अंग्रेज सामे आखडी

अणमोल भारत देश मा , भडवीर आवा अवतरे !


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[10/24, 9:37 AM] ‪+91 88264 71857‬: (मानव कल्याण के नियम)१.सब सत्यविद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने...

[10/24, 9:37 AM] ‪+91 88264 71857‬: (मानव कल्याण के नियम)१.सब सत्यविद्या और जो पदार्थ विद्या से जाने जाते हैं उन सब का आदि मूल परमेश्वर है।
[10/24, 9:37 AM] ‪+91 88264 71857‬: २. ईश्वर सच्चिदानन्दस्वरूप,निराकार,सर्वशक्तिमान,न्यायकारी,दयालु,अजन्मा,अनन्त,निर्विकार,अनादि,अनुपम,सर्वाधार,सर्वव्यापक,सर्वान्तर्यामी,अजर,अमर,अभय,नित्यपवित्र और सृष्टि कर्ता है।
[10/24, 9:38 AM] ‪+91 88264 71857‬: ३.वेद सब सत्यविद्याओं की पुस्तक है।वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है।
[10/24, 9:38 AM] ‪+91 88264 71857‬: सत्य के ग्रहण करने और असत्य के छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिए।
[10/24, 9:38 AM] ‪+91 88264 71857‬: ५.सब काम धर्मानुसार अर्थात् सत्य और असत्य को विचार करके करने चाहिए।
[10/24, 9:39 AM] ‪+91 88264 71857‬: ६.संसार का उपकार करना आर्यसमाज का मुख्य उद्देश्य है।अर्थात् शारीरिक,आत्मिक और सामाजिक उन्नति कयना।
[10/24, 9:39 AM] ‪+91 88264 71857‬: ७.सब से प्रीतिपूर्वक,धर्मानुसास यथायोग्य बर्ताव करना चाहिए।
[10/24, 9:39 AM] ‪+91 88264 71857‬: ८.अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करनी चाहिएह
[10/24, 9:40 AM] ‪+91 88264 71857‬: ९.प्रत्येक को अपनी ही उन्नति में सन्तुष्ट नहीं रहना चाहिए।बल्कि सबकी उन्नति में ही अपनी उन्नति समझनी चाहिए।
[10/24, 9:40 AM] ‪+91 88264 71857‬: १०.सब मनुष्यों को सामाजिक सर्वहितकारी नियम पालने में परतन्त्र रहना चाहिए और प्रत्येक हितकारी नियम में सब स्वतन्त्र रहें।


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९ कार्तिक 25 अक्टूबर 2015 😶 “ हे वरुण! हमें अनृत-असत्य से मुक्त करो ! ”...

९ कार्तिक 25 अक्टूबर 2015

😶 “ हे वरुण! हमें अनृत-असत्य से मुक्त करो ! ” 🌞

🔥🔥 ओ३म् बह्वी३दं राजन् वरुणानृतमाह पूरुष:। 🔥🔥
🍃🍂 तस्मात् सहस्त्रवीर्य मुञ्च न: पर्यहस: ।। 🍂🍃

अथर्व० १९ । ४४ ।८

ऋषि:- भृगु: ।। देवता- वरुण: ।। छन्द:- अनुष्टुप्।।

शब्दार्थ- हे पापनिवारक! हे सच्चे राजा! मनुष्य यह (तुच्छ-तुच्छ) बहुत झूठ बोलता है। उस पाप से, हे अपरिमित वीर्यवाले! तू हमें सब ओर से मुक्त कर दे।

विनय:- हे सच्चे राजा, हे पापनाशक! मनुष्य बहुत अनृत बोला करता है और बड़ी तुच्छ-तुच्छ बातों पर अनृत बोला करता है। प्रातः से लेकर रात्रि तक एक दिन में ही न जाने कितनी बार असत्यभाषण करता है। हम मनुष्यों का जीवन इतना अनृतमय हो गया है कि प्रायः हम लोग यह अनुभव ही नहीं करते कि हम कितना अधिक असत्य बोलते हैं। यह अनुभव तो तब मिलता है जब मनुष्य सचमुच झूठ से घबराने लगता है और सत्य ही बोलने के लिए सदा सचिन्त रहने लगता है। उस समय मुख से निकली अपनी एक-एक वाणी पर पूरा-पूरा निरीक्षण और विवेचन करने पर उसे पता लगता है कि वह सूक्ष्म रूप में कितने अधिक असत्य बोलता है। सच तो यह है कि हममें से जो लोग अपने को सत्य बोलनेवाला समझते हैं वे भी असल में बहुत असत्य बोलते हैं। जो पूरा सत्यवादी होगा, पतंजलि, व्यास आदि ऋषि-मुनियों के कथनानुसार, उसकी वाणी में तो ऐसा तेज आ जाएगा कि वह जो कुछ कहेगा, वह सच्चा हो जाएगा। वह क्रिया और फल से समन्वित हो जाएगा।
हे सहस्रवीर्य!
इस असत्य से तुम ही हमें बचाओ। हमने आत्मनिरीक्षण करते हुए सदा देखा है कि हम सदैव तुच्छ भय, लोभ आदि के कारण ही सदैव अपनी कमज़ोरी, निर्बलता, वीर्यहीनता के कारण ही असत्य बोलते हैं, अतः हे अपरिमित वीर्यवाले! तुम हमें ऐसे वीर्य और बल से भर दो कि हम सदा निधड़क होकर सत्य ही बोलें। इस तरह हे सहस्रवीर्य! तुम हमें सदा असत्य से छुड़ाते रहो, असत्य के पाप से हमें सब ओर से मुक्त करते रहो।

🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂🍃🍂
ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे

🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚


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Saturday, October 24, 2015

8954572491~भूपेश आर्य आर्य जाति के गौरव और उनकी महारानी को कौन नहीं जानता? कयी दिन बाद आज घास की...

8954572491~भूपेश आर्य
आर्य जाति के गौरव और उनकी महारानी को कौन नहीं जानता?
कयी दिन बाद आज घास की रोटी मिल पायी थी।प्यारी बेटी चम्पा की रोटी वन बिलाव ले गया।
बालिका के इस कष्ट को महाराणा सह न सके।
हल्दी घाटी का सेनानी अधीर है उठा।सन्धि पत्र लिखने ही लगे थे कि महारानी ने कलम थाम ली,वे बोलीं-
‘प्राणेश्वर! क्या इसी दिन को देखने के लिए हम लोगों ने स्वाधीनता-व्रत लिया था ! जिस समय आपका सन्धि पत्र साही दरबार में पहुंचेगा,आपकी वीरता और साहस की स्तुति करने वाला अकबर क्या कहेगा? क्या आपको स्मरण नहीं है कि हल्दी घाटी युद्ध समाप्ति पर शक्तिसिंह ने अपनी जान की बाजी लगाकर भी हो नीला घोडा रा असवार'कहकर आपको पुकारा था ?
यदि वह जानते कि मेवाड का सूर्य विपत्तियों के बादल में छिप जायेगा,स्वाधीनता के चन्द्रमा को ग्रहण लग जायेगा तो वे कभी आपकी सहायता न करते।
प्रताप ने कहा-'राजरानी !पर जंगल में रहकर तो तुम राजरानी नहीं बन सकती।और ये नन्हें नन्हें बच्चे——–’
रानी का गला भर आया,राजपूतानी की देह में आग लग गयी,चेहरा तमतमा उठा।
उस वीर क्षत्राणी ने कहा-'मेवाड के राजमहलों पर आग लगे,यदि वें दुष्ट यवनों की पराधीनता की बेडी में जकडनें के साधन हैं।
प्राणेश ! आप मेरी परिक्षा न लें।
आप भली भांति जानते हैं कि धर्म तथा मर्यादा के पुजारियों के लिए घास की रोटी ही मीठी है,उनको पकवान नहीं चाहिए।
प्रभो! आप धर्म पथ से विचलित न हों।’
अहा ! पातिव्रत धर्म का यह उदाहरण कितना ह्रदयग्राही है।
इस सन्दर्भ में वैदिक स्वर्ग की एक और झांकी देखिये।
कर्तव्य और मोह के झूले पर चूडावत सरदार झूल रहे हैं।
वे युद्ध क्षेत्र की और कूच अवश्य कर रहे हैं पर मन नयी रानी में उलझा है।
सेवक रानी के पास प्रेम निशानी 'मुद्रा’ लेने पहुंचता है।
पर यह क्या दूसरे ही क्षण हाडी रानी का लालिमा युक्त सिर कट कर थाल में गिरता है।
रानी यह कहते कहते इस नश्वर चोले को त्याग देती है:-सरदार को चाहिए कि वे इस प्रेम निशानी को पाकर अपने कर्तव्य का द्रढता से पालन करें आपकी रानी स्वर्ग में आपकी प्रतीक्षा करेंगी।’’
हाडी रानी तुम धन्य हो !
जब तक सूर्य चन्द्र है,जब तक गंगा यमुना में जल है,तुम्हारे आत्म बलिदान की यह पुण्य गाथा अमर रहेगी।


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यजुर्वेद ८-४६ (8-46) विश्व॑कर्मन्ह॒विषा॒ वर्ध॑नेन त्रा॒तार॒मिन्द्र॑मकृणोरव॒ध्यम् । तस्मै॒ विशः॒...

यजुर्वेद ८-४६ (8-46)

विश्व॑कर्मन्ह॒विषा॒ वर्ध॑नेन त्रा॒तार॒मिन्द्र॑मकृणोरव॒ध्यम् । तस्मै॒ विशः॒ सम॑नमन्त पू॒र्वीर॒यमु॒ग्रो वि॒हव्यो॒ यथास॑त् । उ॑पया॒मगृ॑हीतो॒ सीन्द्रा॑य त्वा वि॒श्वक॑र्मणे ऽए॒ष ते॒ योनि॒रिन्द्रा॑य त्वा वि॒श्वक॑र्मणे ॥

भावार्थ:- इस संसार में मनुष्य सब जगत् की रक्षा करनेवाले ईश्वर तथा सभाध्यक्ष को न भूले, किन्तु उनकी अनुमति में सब कोई अपना-अपना वर्ताव रक्खे।

प्रजा के विरोध से कोई राजा भी अच्छी ऋद्धि को नहीं पहुँचता और ईश्वर वा राजा के बिना प्रजाजन धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष के सिद्ध करनेवाले काम भी नहीं कर सकते, इससे प्रजाजन और राजा ईश्वर का आश्रय कर एक-दूसरे के उपकार में धर्म के साथ अपना वर्ताव रखें।।

Pandit Lekhram Vedic Mission

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। ठ्ग्(ज्योतिषी) :- त्राहि माम्… त्राहि माम्… भगवन त्राहि माम्..! भगवान :- क्या है!...

। ठ्ग्(ज्योतिषी) :- त्राहि माम्… त्राहि माम्… भगवन त्राहि माम्..!
भगवान :- क्या है! क्योँ शोर मचा रहे हो ?
ठग्:- भगवन ! पृथ्वी पर कुछ मनुष्य आपकी बनाई ज्योतिष विद्या को गलत कह रहे है, इसे ठ्ग विद्या कह रहेँ है. और हमेँ ठग !
भगवान :- अरे मूर्खो ! मैनेँ कब यह ज्योतिष बनाई ? मुझे क्योँ नाहक ही इस से जोङ रहे हो !
ठग्:- भगवन अब तो आपका ही सहारा है ! सारे प्रयत्न कर के देख लिए, ज्योतिष को सही साबित करने मेँ पर कोई भी तर्क उपाय काम नहीँ कर रहा. आप ही कुछ कीजिए भगवन्, नहीँ तो एक दिन हम सबकी ठगी की दुकाने बन्द हो जाएगी !
भगवान्:- हैलो..हैलो..हैलो.. तुम लोगो की आवाज नहीँ आ रही हैलो…हैलो…हैलो…!!!

ठग - हेलो भगवान जी हेलो भगवान जी - लाइन कट गई थी - इसलिए जल्दी से सुन लो प्रभु दिवाली आने वाली है तो कुछ मूर्खो को भेज दो तो में कम से कम कुंडली मिलान में व्यवधान बता कर ही कुछ धंधा कर ले
भगवान - पहले ही मेने इतने मूर्ख भेज रखे है फिर भी अभी तक पेट नहीं भरा - चलो देखता हूँ - स्टॉक में अब कितने बचे है - कल फ़ोन करना

भगवान - हैलो चित्रगुप्त जी
चित्रगुप्त - आज्ञा प्रभु !
भगवान - अरे जरा अपना स्टाक रजिस्टर तो देखना कितने मूर्ख बचे है कुछ ज्योतिषीयो ने आर्डर दिया है।
चित्रगुप्त हंसते हुए - प्रभु आप भी कमाल करते है मूर्खो के स्टाक के लिए मुझे रजिस्टर देखने की आवश्यकता ही नहीं होती आप तो बस आज्ञा दीजीए कि कितने पार्सल करने है।
भगवान - अच्छा ठीक है ! साथ मे कुछ बुद्धिमान भी भेज देना ताकि सन्तुलन बना रहे।
चित्रगुप्त थोङी देर सोचते हुए - यह तो मुश्किल है प्रभु !
भगवान - क्यों ?
चित्रगुप्त - प्रभु बुद्धिमानो की लिस्ट मूर्खो के रजिस्टरो के बीच कहीं गलती से रख दी है अब मिल नहीं रही।

नारायण नारायण
नारद जी ने प्रवेश करते हुए कहा और बोले की प्रभु आप मूर्खो को भेजने के किस चक्कर में उलझ गए है - नारायण नारायण - आपको पता नहीं की मृत्युलोक में ज्योतिषियों ने आपके नाम पर बुद्धिमान लोगो को भी मूर्ख बना रखा है और आप अगर पहले से ही तैयार मूर्ख भेजने लगे तो मृत्युलोक ही समाप्त हो जायेगा - नारायण नारायण
(भगवान और चित्रगुप्त सोच में पड़ गए)


भगवान जी ने मौन तोड़ते हुए चित्रगुप्त से कहा - मेने कभी आपको मृत्युलोक में मूर्ख भेजने के लिया कहा था -
चित्रगुप्त - प्रोडक्शन ब्रांच में कुछ गड़बड़ हो जाने पर कभी कभी मूर्ख चले जाते है - पर उन्हें तो वहां पर पागल कहते है - मूर्ख तो नहीं कहते -
भगवान - तो फिर ज्योतिषी मूर्खो को भेजने की मांग कर के मुझे क्यों परेशान कर रहा था -
नारायण नारायण
नारद जी बोले - प्रभु मेने तो पृथ्वी पर पैदा होने वाले बच्चो को अज्ञानी तो पाया है पर मूर्ख नहीं - और बच्चे अज्ञानी होते है तो आप उनमे जिज्ञासा भर देते है तो वह रोज की हजारों बाते सीखता है - और उसे दुनिया के बारे में कुछ भी पता नहीं होने पर भी उसे मूर्ख तो नहीं कहते - नारायण नारायण
भगवान - तो फिर मृत्युलोक में मूर्ख कहाँ से आ रहे है
नारद जी - नारायण नारायण - प्रभु - बहुत से बच्चे १५-२० वर्ष की आयु में जिज्ञासा करना बंद कर देते है और फिर भीड़ के साथ चलने लगते है - नारायण नारायण - और भीड़ में तो ठग भी होते है वह उनको गलत बाते बता कर डरा डरा कर मूर्ख बना देते है - नारायण नारायण
भगवान जी - तो क्या ऐसे मूर्ख कोई काम ठीक से नहीं कर पाते
नारद जी - नारायण नारायण - नहीं प्रभु - वह सब काम सही कर लेते है पर डर और आत्मविश्वास खोने के कारण अपने दिमाग में जिज्ञासा नहीं होने देते और फिर ज्योतिषी उन्हें मूर्ख बना देते है - नारायण नारायण
भगवान जी - यह ज्योतिषी क्या है क्या वह सतयुग के ज्योतिषी है जो हवन करते समय मुझे बुलाते थे - या कोई और है
नारद जी - नारायण नारायण - भगवन वह ज्योतिषी तो खत्म हो गए अब तो नए ज्योतिषी आ गए है जो चित्रगुप्त के पोथे की बाते पहले ही बताने की बाते करते है नारायण नारायण
चित्रगुप्त - प्रभो मेरे पोथे तो सुरक्षित है उसे तो कोई नहीं देख सकता - और प्रभो ऐसे ज्योतिषियों को तो अपने व्यास जी ने चांडाल कहा था और मनु ने तो घर के बाहर तक कर दिया था - और ऐसे ज्योतिषियों को तो अब सीधे नरक में भेजा जा रहा है जैसे पहले भी आदेश दिए थे
भगवान - अगर ऐसा ही चलता रहा तो यह ज्योतिषी तो मेरे सभी जिज्ञासु बच्चो को मूर्ख बना देंगे तो मेरी श्रष्टी ही ख़त्म हो जाएगी - कुछ करो
चित्रगुप्त - अभी कुछ वर्षो पूर्व शांडिल कुल में एक बालक को भेजा था ताकि वह ऐसे कुकर्मो पर रोक लगाए -
भगवान जी - देखो उसका काम सही चल रहा है या नहीं - और ज्योतिषी अब भी मूर्ख बना रहे है या नहीं
नारद जी - नारायण नारायण - प्रभु में मृत्युलोक ही जा रहा हूँ - पता करके आप को सही सही बात बताऊंगा -
भगवान - चार माह के लिए सोने चले गए - चित्रगुप्त जी - पोथे पलटने लगे और नारद जी - खबर इकट्ठी कर रहे है -


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प्राणापाननिमेषोन्मेषजीवनमनोगतिइन्द्रियाँन्तरविकारा:। सुखदुःखेच्छाद्वेषप्रयत्नश्च आत्मनो लिंगानि।...

प्राणापाननिमेषोन्मेषजीवनमनोगतिइन्द्रियाँन्तरविकारा:। सुखदुःखेच्छाद्वेषप्रयत्नश्च आत्मनो लिंगानि। (वैशेषिक दर्शन) प्राण,अपान अर्थात श्वास लेना और छोड़ना पलक मींचना-खोलना,जीवन अर्थात प्राण का धारण करना,मन अर्थात मनन विचार,ज्ञान,गति अर्थात यथेष्ट गमन करना,जाना,इन्द्रिय अर्थात इन्द्रियों को विषयों मे चलाना उनसे विषयो का ग्रहण करना,अन्तरविकार-भूख,प्यास,ज्वर,पीड़ा आदि विकारों का होना,सुख,दुख,इच्छा,द्वेष,प्रयत्न ये सब आत्मा के लक्षण अर्थात गुण और कर्म है। जब तक आत्मा देह मे होता है तभी तक ये गुण प्रकाशित रहते हैं। जब शरीर छोड़कर चला जाता है,तब ये गुण शरीर मे नही रहते।


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शंका समाधान 📢📢📢📢📢📢 प्रश्न : वेदों में कितने ईश्वर हैं ? हमने सुना है कि वेदों में अनेक ईश्वर हैं...

शंका समाधान
📢📢📢📢📢📢

प्रश्न : वेदों में कितने ईश्वर हैं ?
हमने सुना है कि वेदों में
अनेक ईश्वर हैं ।

उत्तर : आपने गलत स्थानों से
सुना है । वेदों में स्पष्ट कहा है
कि एक और केवल एक ईश्वर
है । और वेद में एक भी ऐसा
मंत्र नहीं है जिसका कि यह
अर्थ
निकाला जा सके कि ईश्वर
अनेक हैं । और सिर्फ इतना
ही नहीं वेद इस बात का भी
खंडन करते हैं कि आपके
और ईश्वर के बीच में
अभिकर्ता (एजेंट) की तरह
काम करने के लिए पैगम्बर,
मसीहा या
अवतार की जरूरत होती है ।

प्रश्न: वेदों में वर्णित विभिन्न देवताओं या ईश्वरों के बारे में आप क्या कहेंगे ? 33 करोड़ देवताओं के बारे में क्या?

उत्तर:

1. जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है जो पदार्थ हमारे लिए उपयोगी होते हैं वो देवता कहलाते हैं । लेकिन वेदों में ऐसा कहीं नहीं कहा गया कि हमे उनकी उपासना करनी चाहिए । ईश्वर देवताओं का भी देवता है और इसीलिए वह महादेव कहलाता है , सिर्फ और सिर्फ उसी की ही उपासना करनी चाहिए ।

2. वेदों में 33 कोटि का अर्थ 33 करोड़ नहीं बल्कि 33 प्रकार (संस्कृत में कोटि शब्द का अर्थ प्रकार होता है) के देवता हैं । और ये शतपथ ब्राह्मण में बहुत ही स्पष्टतः वर्णित किये गए हैं, जो कि इस प्रकार है :

8 वसु (पृथ्वी, जल, वायु , अग्नि, आकाश, सूर्य, चन्द्रमा, नक्षत्र ), जिनमे सारा संसार निवास करता है ।

10 जीवनी शक्तियां अर्थात प्राण (प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान, नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त , धनञ्जय ), ये तथा 1 जीव ये ग्यारह रूद्र कहलाते हैं

12 आदित्य अर्थात वर्ष के 12 महीने

1 विद्युत् जो कि हमारे लिए अत्यधिक उपयोगी है

1 यज्ञ अर्थात मनुष्यों के द्वारा निरंतर किये जाने वाले निस्वार्थ कर्म ।

शतपथ ब्राहमण के 14 वें कांड के अनुसार इन 33 देवताओं का स्वामी महादेव ही एकमात्र उपासनीय है । 33 देवताओं का विषय अपने आप में ही शोध का विषय है जिसे समझने के लिए सम्यक गहन अध्ययन की आवश्यकता है । लेकिन फिर भी वैदिक शास्त्रों में इतना तो स्पष्ट वर्णित है कि ये देवता ईश्वर नहीं हैं और इसलिए इनकी उपासना नहीं करनी चाहिए ।

3. ईश्वर अनंत गुणों वाला है । अज्ञानी लोग अपनी अज्ञानतावश उसके विभिन्न गुणों को विभिन्न ईश्वर मान लेते हैं ।

4. ऐसी शंकाओं के निराकरण के लिए वेदों में अनेक मंत्र हैं जो ये स्पष्ट करते हैं कि सिर्फ और सिर्फ एक ही ईश्वर है और उसके साथ हमारा सम्पर्क कराने के लिए कोई सहायक, पैगम्बर, मसीहा, अभिकर्ता (एजेंट) नहीं होता है ।

यजुर्वेद 40.1

यह सारा संसार एक और मात्र एक ईश्वर से पूर्णतः आच्छादित और नियंत्रित है । इसलिए कभी भी अन्याय से किसी के धन की प्राप्ति की इच्छा नहीं करनी चाहिए अपितु न्यायपूर्ण आचरण के द्वारा ईश्वर के आनंद को भोगना चाहिए । आखिर वही सब सुखों का देने वाला है ।

ऋग्वेद 10.48.1

एक मात्र ईश्वर ही सर्वव्यापक और सारे संसार का नियंता है । वही सब विजयों का दाता और सारे संसार का मूल कारण है । सब जीवों को ईश्वर को ऐसे ही पुकारना चाहिए जैसे एक बच्चा अपने पिता को पुकारता है । वही एक मात्र सब जीवों का पालन पोषण करता और सब सुखों का देने वाला है ।

ऋग्वेद 10.48.5

ईश्वर सारे संसार का प्रकाशक है । वह कभी पराजित नहीं होता और न ही कभी मृत्यु को प्राप्त होता है । वह संसार का बनाने वाला है । सभी जीवों को ज्ञान प्राप्ति के लिए तथा उसके अनुसार कर्म करके सुख की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए । उन्हें ईश्वर की मित्रता से कभी अलग नहीं होना चाहिए ।

ऋग्वेद 10.49.1

केवल एक ईश्वर ही सत्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करने वालों को सत्य ज्ञान का देने वाला है । वही ज्ञान की वृद्धि करने वाला और धार्मिक मनुष्यों को श्रेष्ठ कार्यों में प्रवृत्त करने वाला है । वही एकमात्र इस सारे संसार का रचयिता और नियंता है । इसलिए कभी भी उस एक ईश्वर को छोड़कर और किसी की भी उपासना नहीं करनी चाहिए ।

यजुर्वेद 13.4

सारे संसार का एक और मात्र एक ही निर्माता और नियंता है । एक वही पृथ्वी, आकाश और सूर्यादि लोकों का धारण करने वाला है । वह स्वयं सुखस्वरूप है । एक मात्र वही हमारे लिए उपासनीय है ।

अथर्ववेद 13.4.16-21

वह न दो हैं, न ही तीन, न ही चार, न ही पाँच, न ही छः, न ही सात, न ही आठ, न ही नौ , और न ही दस हैं । इसके विपरीत वह सिर्फ और सिर्फ एक ही है । उसके सिवाय और कोई ईश्वर नहीं है । सब देवता उसमे निवास करते हैं और उसी से नियंत्रित होते हैं । इसलिए केवल उसी की उपासना करनी चाहिए और किसी की नहीं ।

अथर्ववेद 10.7.38

मात्र एक ईश्वर ही सबसे महान है और उपासना करने के योग्य है । वही समस्त ज्ञान और क्रियाओं का आधार है ।

यजुर्वेद 32.11

ईश्वर संसार के कण-कण में व्याप्त है । कोई भी स्थान उससे खाली नहीं है । वह स्वयंभू है और अपने कर्मों को करने के लिए उसे किसी सहायक, पैगम्बर, मसीहा या अवतार की जरुरत नहीं होती । जो जीव उसका अनुभव कर लेते हैं वो उसके बंधनरहित मोक्ष सुख को भोगते हैं ।

वेदों में ऐसे असंख्य मंत्र हैं जो
कि एक और मात्र एक ईश्वर
का वर्णन करते हैं और हमें
अन्य किसी अवतार, पैगम्बर
या मसीहा की शरण में जाये
बिना सीधे ईश्वर की उपासना
का निर्देश देते हैं।
🙏🙏🚩🚩🇮🇳🇮🇳💐💐


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Friday, October 23, 2015

सुन्नत (खतना) की कुप्रथा पर संत कबीर के विचार बालक कबीर का खतना करने आये काजी और तमाम मुस्लिम...

सुन्नत (खतना) की कुप्रथा पर संत कबीर के विचार

बालक कबीर का खतना करने आये काजी और तमाम मुस्लिम रिश्तेदारों से बालक कबीर का खतना और इस्लामी रीति रिवाजों को लेकर आश्चर्यचकित कर देने वाले कुछ प्रश्न (महान कवि कबीर दास) सुन्नत करवाने से मनाही नबी इब्राहिम की चलाई हुइ मर्यादा सुन्नत हर एक मुस्लमान को करनी जरूरी है शरहा अनुसार जब तक सुन्नत न हो कोई मुस्लमान नहीं गिना जाता। कबीर जी आठ साल के हो गए। नीरो जी को उनके जान-पहचान वालों ने कहना शुरू कर दिया कि सुन्नत करवाई जाये। सुन्नत पर काफी खर्च किया जाता है। सभी के जोर देने पर आखिर सुन्नत की मर्यादा को पुरा करने के लिए उन्होंने खुले हाथों से सभी सामग्री खरीदी। सभी को खाने का निमँत्रण भेजा। निश्चित दिन पर इस्लाम के मुखी मौलवी और काजी भी एकत्रित हुए। रिश्तेदार और आस पड़ौस के लोग भी हाजिर हुए। सभी की हाजिरी में कबीर जी को काजी के पास लाया गया। काजी कुरान शरीफ की आयतों का उच्चारण अरबी भाषा में करता हुआ उस्तरे को धार लगाने लगा। • उसकी हरकतें देखकर कबीर जी ने किसी स्याने की भांति उससे पूछा: यह उस्तरा किस लिए है ? आप क्या करने जा रहे हो ? • तो काजी बोला: कबीर ! तेरी सुन्नत होने जा रही है। सुन्नत के बाद तुझे मीठे चावल मिलेंगे और नये कपड़े पहनने को मिलेंगे। • पर कबीर जी ने फिर काजी से पूछा। अब मासूम बालक के मुँह से कैसे और क्यों सुनकर काजी का दिल धड़का। क्योंकि उसने कई बालकों की सुन्नत की थी परन्तु प्रश्न तो किसी ने भी नहीं किया, जिस प्रकार से बालक कबीर जी कर रहे थे। • काजी ने प्यार से उत्तर दिया: बड़ों द्वारा चलाई गई मर्यादा पर सभी को चलना होता है। सवाल नहीं करते। अगर सुन्नत न हो तो वह मुस्लमान नहीं बनता। जो मुस्लमान नहीं बनता उसे काफिर कहते हैं और काफिर को बहिशत में स्थान नहीं मिलता और वह दोजक की आग में जलता है। दोजक (नरक) की आग से बचने के लिए यह सुन्नत की जाती है • यह सुनकर कबीर जी ने एक और सवाल किया: काजी जी ! केवल सुन्नत करने से ही मुस्लमान बहिश्त (स्वर्ग) में चले जाते हैं ? क्या उनको नेक काम करने की जरूरत नहीं ? फिर कबीर दास जी ने काजी से कहाँ जो तू तुर्क(मुसलमान) तुर्कानी का जाया भी भीतर खतत्न क्यों न कराया।। अर्थ:- कबीर दास जी कहते हैं:- हे काजी यदि तू मुस्लिम होने पर अभिमान करता है और कहता है की तुझे अल्लाह ने मुसलमान बनाया है तो तु अपनी माँ के पेट से खतना क्यों नहीं करवा के आया ? तुझे धरती पर मुसलमान बनने कि जरूरत क्यो पड गई, अल्लाह ने तुझे सिधा मुस्लिम (अर्थात खतना करके) बनाके क्यो नही भेजा ????????? • यह बात सुनकर सभी मुस्लमान चुप्पी साधकर कर कभी कबीर जी की तरफ और कभी काजी की तरफ देखने लगे। काजी ने अपने ज्ञान से कबीर जी को बहुत समझाने की कोशिश की, परन्तु कबीर जी ने सुन्नत करने से साफ इन्कार कर दिया। इन्कार को सुनकर लोगों के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई। काजी गुस्से से आग-बबुला हो गया। • काजी आखों में गुस्से के अँगारे निकालता हुआ बोला: कबीर ! जरूर करनी होगी, राजा का हुक्म है, नहीं तो कौड़े मारे जायेंगे। कबीर जी कुछ नहीं बोले, उन्होंने आँखें बन्द कर लीं और समाधि लगा ली। उनकी समाधि तोड़ने और उन्हें बुलाने का किसी का हौंसला नहीं हुआ, धीरे-धीरे उनके होंठ हिलने लगे और वह बोलने लगे– राम ! राम ! और बाणी उच्चारण की: हिंदू तुरक कहा ते आए किनि एह राह चलाई ॥ दिल महि सोचि बिचारि कवादे भिसत दोजक किनि पाई ॥१॥ काजी तै कवन कतेब बखानी ॥ पड़्हत गुनत ऐसे सभ मारे किनहूं खबरि न जानी ॥१॥ रहाउ ॥ सकति सनेहु करि सुंनति करीऐ मै न बदउगा भाई ॥ जउ रे खुदाइ मोहि तुरकु करैगा आपन ही कटि जाई ॥२॥ सुंनति कीए तुरकु जे होइगा अउरत का किआ करीऐ ॥ अर्ध सरीरी नारि न छोडै ता ते हिंदू ही रहीऐ ॥३॥ छाडि कतेब रामु भजु बउरे जुलम करत है भारी ॥ कबीरै पकरी टेक राम की तुरक रहे पचिहारी ॥४॥ सन्दर्भ- राग आसा कबीर पृष्ठ 477 अर्थ:- समझदारों ने समझ लिया कि बालक कबीर जी काजी से कह रहे हैं कि हे काजी: जरा समझ तो सही कि हिन्दू और मुस्लमान कहाँ से आए हैं ? हे काजी तुने कभी यह नहीं सोचा कि स्वर्ग और नरक में कौन जायेगा ? कौन सी किताब तुने पढ़ी है, तेरे जैसे काजी पढ़ते-पढ़ते हुए ही मर गए पर परमात्मा के दर्शन उन्हें नहीं हुए। रिशतेदारों को इक्कठे करके सुन्नत करना चाहते हो, मैंने कभी भी सुन्नत नहीं करवानी। अगर मेरे खुदा को मुझे मुस्लमान बनाना होगा तो मेरी सुन्नत अपने आप हो जायेगी। हे काजी अगर मैं तेरी बात मान भी लूँ कि मर्द ने सुन्नत कर ली और वह स्वर्ग में चला गया तो स्त्री का क्या करोगे ? अगर स्त्री यानि जीवन साथी ने काफिर ही रहना है तो फिर तो हिन्दू ही होना अच्छा है। मैं तो तुझे कहता हूँ कि यह किताबे आदि छोड़कर केवल राम नाम का सिमरन कर। मैंने तो राम का आसरा लिया है इसलिए मुझे कोई चिन्ता फिक्र नहीं।


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थोडा कट्टर होना सीख ले शांति की मत भीख ले ! जीना चाहता यदि तू हिंदू अपना बदले की लीख ले!! अहिंसा...

थोडा कट्टर होना सीख ले
शांति की मत भीख ले !
जीना चाहता यदि तू हिंदू
अपना बदले की लीख ले!!
अहिंसा संग हिंसा का जोडा
हिंसा को तू समझ मत रोडा!
जीना चाहता यदि तू हिंदू
बदला लेना जान ले थोडा !!
विधर्मी सब दुश्मन हैं तेरे
एक नहीं चहुंदिशा बहुतेरे!
स्वयं की यदि रक्षा करनी है
पहचान कौन दुश्मन ;चितेरे!!
कानून हो चाहे हो संविधान
कोई न तेरा कर ले पहचान!
वोट के भूक्खड सब नेता यहां
हिंदू विरोध की पकडे हैं कमान!!
तेरे मूल्यों का कोई न मोल
तेरे साथ में न कोई है बोल!
हर कोई तेरा उपहास करता
हर परंपरा का उडाता मखौल!!
फिर भी हिंदु तू सोता है
अपने विऩाश के बीज बोता है!
अपने -पराए को नहीं पहचाना
मत कहना फिर क्यों रोता है!!
समय रहते तू हिंदू जाग ले
अपने धर्म की रक्षा में भाग ले!
वरना इस धरा से मिट जाऐगा
मत अपने सिर तू यह दाग ले!!
अपने पौरुष को पहचान हिंदू
सनातन संस्कृति को जान हिंदु!
आर्य वैदिक तेरा होना शाश्वत
सबसे बलशाली महान तू हिंदु!!
समस्त धरा पर तेरा राज था
सबसे समृद्ध तेरा समाज था!
कायरता सैक्युलर छोड महामारी
याद कर जो विश्व प्रसिद्ध अंदाज था!!
रक्षात्मक नहीं आक्रामक तू बन
स्वरक्षा का बस यही सुनो धन!
राक्षसी शक्तियां विनाश को तत्पर
केरल हो चाहे वाशिंगटन; लंदन!!
संजय कुमार वंदेमातरम्


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।।ओ३म्।। ~आर्य स्वाभिमान~ बड़ा अंतर देखे- ‘आर्य’ सत्य सनातन वैदिक धर्म, ईश्वरीय ज्ञान,...

।।ओ३म्।।
~आर्य स्वाभिमान~

बड़ा अंतर देखे-
‘आर्य’ सत्य सनातन वैदिक धर्म, ईश्वरीय ज्ञान, आज्ञा वेदों को मानते है जिसका ज्ञान सार्वभौमिक है, पूरी मानव जाति के लिए है ना कि सीमित भूभाग और विशेषाधिकार मनुष्यो के लिए और बाकी (हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, बौद्ध, जैन..) मानव कृत झूठे और कपोल कल्पित ग्रंथो को जिनमे असंभव, मिथ्या और अवैज्ञानिक अज्ञान जिनमे मानव विरोधी और परस्पर विरोधी बातों से भरा पड़ा है!

आर्य (मनु स्मृति के अनुसार) धर्म के 10 लक्षणों का पालन करता है- मनु ने धर्म के दस लक्षण गिनाए हैं:
धृति: क्षमा दमोऽस्‍तेयं शौचमिन्‍द्रियनिग्रह:।
धीर्विद्या सत्‍यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्‌।। (मनुस्‍मृति ६.९२)

[धैर्य, क्षमा, संयम, चोरी न करना, शौच (स्वच्छता), इन्द्रियों को वश मे रखना, बुद्धि, विद्या, सत्य और क्रोध न करना ; ये दस धर्म के लक्षण हैं।]

याज्ञवल्क्य ने भी धर्म के नौ (9) लक्षण गिनाए हैं:

अहिंसा सत्‍यमस्‍तेयं शौचमिन्‍द्रियनिग्रह:।
दानं दमो दया शान्‍ति: सर्वेषां धर्मसाधनम्‌।।

[अहिंसा, सत्य, चोरी न करना (अस्तेय), शौच (स्वच्छता), इन्द्रिय-निग्रह (इन्द्रियों को वश में रखना), दान, संयम (दम), दया एवं शान्ति]

…अब क्या आर्यो के अलावा इन्हें और कोई मानता है?

और मानता और पालन करता है तो वह बेशक आर्य है।

मनुष्य, पशु, पक्षी, वृक्ष आदि भिन्न-भिन्न जातियाँ है। जिन जीवों की उत्पत्ति एक समान होती है वे एक ही जाति के होते है। अत: मनुष्य एक जाति है। जाति रूप से तो मनुष्यों में कोई भेद नहीं होता है परंतु गुण, कर्म, स्वभाव व व्यवहार आदि में भिन्नता होती है।

कर्म के भेद से मनुष्य जाति (mankind) में दो भेद होते है
१ आर्य
२ दस्यु।
दो सगे भाई आर्य और दस्यु हो सकते है।

वेद (ved) में कहा है “विजानह्याय्यान्ये च दस्यव:” अर्थात आर्य और दस्युओं का विशेष ज्ञान रखना चाहिए।

निरुक्त आर्य को सच्चा ईश्वर पुत्र से संबोधित करता है। वेद मंत्रों में सत्य, अहिंसा, पवित्रता आदि गुणों को धारण करने वाले को आर्य कहा गया है और सारे संसार को आर्य बनाने का संदेश दिया गया है।

वेद कहता है “कृण्वन्तो विश्वमार्यम”अर्थात सारे संसार को आर्य बनावों।

वेद में आर्य (श्रेष्ठ मनुष्यों) को ही पदार्थ दिये जाने का विधान किया गया है – “अहं भूमिमददामार्याय” अर्थात मैं आर्यों को यह भूमि देता हूँ।
इसका अर्थ यह हुआ कि आर्य परिश्रम से अपना कल्याण करता हुआ, परोपकार(philanthropy) वृत्ति से दूसरों को भी लाभ पहुंचवेगा जबकि दस्यु दुष्ट स्वार्थी सब प्राणियों को हानि ही पहुंचाएगा। अत: दुष्ट को अपनी भूमि आदि संपत्ति नहीं दिये जाने चाहिए चाहे वह अपना पुत्र ही क्यों न हो।

आर्य कौन है ? who is arya

बाल्मीकी रामायण में समदृष्टि रखने वाले और सज्जनता से पूर्ण श्री रामचन्द्र (shri ram) जी को स्थान-स्थान पर ‘आर्य’ व“आर्यपुत्र” कहा गया है। विदुरनीति में धार्मिक को, चाणक्यनीति में गुणीजन को, महाभारत में श्रेष्ठबुद्धि वाले को व श्रीकृष्ण जी को “आर्यपुत्र” तथा गीता में वीर को ‘आर्य’ कहा गया है। 

महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने आर्य शब्द की व्याख्या (meaning of arya) में कहा है कि “जो श्रेष्ठ स्वभाव, धर्मात्मा, परोपकारी, सत्य-विद्या आदि गुणयुक्त और आर्यावर्त (aryavart) देश में सब दिन से रहने वाले हैं उनको आर्य कहते है।”

आर्य संज्ञा वाले व्यक्ति किसी एक स्थान अथवा समाज में नहीं होते, अपितु वे सर्वत्र पाये जाते है। सच्चा आर्य वह है जिसके व्यवहार से सभी(प्राणिमात्र) को सुख मिलता है, जो इस पृथ्वी पर सत्य, अहिंसा, परोपकार, पवित्रता आदि व्रतों का विशेष रूप से धारण करता है।


जय आर्य जय आर्यवर्त


~आर्य नरेंद्र कौशिक~
~नरवाना (आर्यवर्त)~

।।ओ३म्।।
…..आर्य स्वाभिमान…..


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८ कार्तिक 24 अक्टूबर 2015 😶 “ निष्काम कर्मयोग की महती महिमा ! ” 🌞 🔥🔥...

८ कार्तिक 24 अक्टूबर 2015

😶 “ निष्काम कर्मयोग की महती महिमा ! ” 🌞

🔥🔥 ओ३म् कुर्वत्रेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतँ समा:। 🔥🔥
🍃🍂 एवं त्वयि नान्यथेतोअस्ति न कर्म लिप्यते नरे ।। 🍂🍃

यजु० ४० ।२ ।

ऋषि:- दीर्घतमा: ।। देवता- आत्मा: ।। छन्द:- भुरिगनुष्टुप् ।।

शब्दार्थ- मनुष्य इस संसार में कर्मों को करता हुआ ही सौ वर्ष तक जीता रहना चाहे। इस तरह, पर्वोक्त प्रकार से त्यागपूर्व कर्म करने से तुझे नर में कर्म लिप्त नहीं होगा। इसके अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं है।

विनय:- मनुष्य को चाहिए कि वह कर्म करता हुआ ही जीना चाहे। यदि वह कर्म नहीं करता है तो उसे जीवित रहने का अधिकार नहीं है। यह जीवन कर्म करने के लिए ही दिया गया है।
हे मनुष्य!
क्या तू डरता है कि कर्म करने से तू कर्म में लिप्त हो जाएगा? नहीं, यदि तू पूर्वोक्त प्रकार से त्यागपूर्वक जगत् को भोगेगा तो तेरे ऐसे कर्म कभी तुझे बन्धनकारक नहीं होंगे।ऐसे निष्काम कर्मों का कभी तुझ ‘नर’ में लेप नहीं होगा। सचमुच ऐसे निष्काम कर्म करनेवाले ही संसार में असली नर होते हैं।अतः हे नर! तू अनासक्त होकर त्यागपूर्वक कर्मों को कर। यही कर्मलेप से बचने का उपाय है। क्या तू समझता है कि कर्म न करने से तू कर्मलेप से बच जाएगा? यदि कर्म करने से बचने के लिए तू आत्मघात भी कर डालेगा, तो भी तुझे छुटकारा नहीं मिलेगा। तुझे दूसरा जन्म लेना पड़ेगा और तुझे इस आत्मघात का पाप भी लगेगा। तू देख कि जिस समय कर्म करना आवश्यक हो उस समय कर्म न करने से अकर्म का पाप भी लगता है, अतः याद रख कि कर्म त्यागने से तो तुझे कभी निर्लेपता नहीं मिलेगी। इसका साधन तो एक ही है कि कर्म किया जाए, किन्तु निर्लेप होकर किया जाए। अतः हे मनुष्य! तू उठ और इस अकर्म की तामसिक अवस्था को त्यागकर उत्साहपूर्वक निर्लेप कर्मों को किया कर। ऐसे कर्मों को तू अपने सम्पूर्ण सौ वर्ष तक करता जा, अपने जीवन के अन्तिम क्षण तक करता जा।


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ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे

🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚


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जानिये भारत भूमिके बारे मे विदेशीयो कि राय जरुर पढना 1. अलबर्ट आइन्स्टीन - हम भारत के बहुत ऋणी...

जानिये भारत भूमिके बारे मे विदेशीयो कि राय

जरुर पढना

1. अलबर्ट आइन्स्टीन - हम भारत के बहुत ऋणी हैं, जिसने हमें गिनती सिखाई, जिसके बिना कोई भी सार्थक वैज्ञानिक खोज संभव नहीं हो पाती।

2. रोमां रोलां (फ्रांस) - मानव ने आदिकाल से जो सपने देखने शुरू किये, उनके साकार होने का इस धरती पर कोई स्थान है, तो वो है भारत।

3. हू शिह (अमेरिका में चीन राजदूत)- सीमा पर एक भी सैनिक न भेजते हुए भारत ने बीस सदियों तक सांस्कृतिक धरातल पर चीन को जीता और उसे प्रभावित भी किया।

4. मैक्स मुलर- यदि मुझसे कोई पूछे की किस आकाश के तले मानव मन अपने अनमोल उपहारों समेत पूर्णतया विकसित हुआ है, जहां जीवन की जटिल समस्याओं का गहन विश्लेषण हुआ और समाधान भी प्रस्तुत किया गया, जो उसके भी प्रसंशा का पात्र हुआ जिन्होंने प्लेटो और कांट का अध्ययन किया, तो मैं भारत का नाम लूँगा।

5. मार्क ट्वेन- मनुष्य के इतिहास में जो भी मूल्यवान और सृजनशील सामग्री है, उसका भंडार अकेले भारत में है।

6. आर्थर शोपेन्हावर - विश्व भर में ऐसा कोई अध्ययन नहीं है जो उपनिषदों जितना उपकारी और उद्दत हो। यही मेरे जीवन को शांति देता रहा है, और वही मृत्यु में भी शांति देगा।

7. हेनरी डेविड थोरो - प्रातः काल मैं अपनी बुद्धिमत्ता को अपूर्व और ब्रह्माण्डव्यापी गीता के तत्वज्ञान से स्नान करता हूँ, जिसकी तुलना में हमारा आधुनिक विश्व और उसका साहित्य अत्यंत क्षुद्र और तुच्छ जान पड़ता है।

8. राल्फ वाल्डो इमर्सन - मैं भगवत गीता का अत्यंत ऋणी हूँ। यह पहला ग्रन्थ है जिसे पढ़कर मुझे लगा की किसी विराट शक्ति से हमारा संवाद हो रहा है।

9. विल्हन वोन हम्बोल्ट- गीता एक अत्यंत सुन्दर और संभवतः एकमात्र सच्चा दार्शनिक ग्रन्थ है जो किसी अन्य भाषा में नहीं। वह एक ऐसी गहन और उन्नत वस्तु है जिस पर सारी दुनिया गर्व कर सकती है।

10. एनी बेसेंट -विश्व के विभिन्न धर्मों का लगभग ४० वर्ष अध्ययन करने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंची हूँ की हिंदुत्व जैसा परिपूर्ण, वैज्ञानिक, दार्शनिक और अध्यात्मिक धर्म और कोई नहीं। इसमें कोई भूल न करे की बिना हिंदुत्व के भारत का कोई भविष्य है। हिंदुत्व ऐसी भूमि है जिसमे भारत की जड़े गहरे तक पहुंची है, यदि हिन्दू ही यदि हिंदुत्व की रक्षा नही करेंगे, तो कौन करेगा? अगर भारत के सपूत हिंदुत्व में विश्वास नहीं करेंगे तो कौन उनकी रक्षा करेगा? भारत ही भारत की रक्षा करेगा। भारत और हिंदुत्व एक ही है।


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