Saturday, December 12, 2015

।।ओ३म्।। 🚩 दैवी सम्पत्ति🚩 १२-१२-२०१५ अभयं सत्वसंशुद्धि: ध्यानयोगव्यवस्थिति:। दानं दमश्च यज्ञश्च...

।।ओ३म्।।
🚩 दैवी सम्पत्ति🚩
१२-१२-२०१५

अभयं सत्वसंशुद्धि:
ध्यानयोगव्यवस्थिति:।
दानं दमश्च यज्ञश्च
स्वाध्यायस्तप आर्जवम्।।
(गीता अ१६-१)
अर्थः-
भय का सर्वथा अभाव
मन की पूर्णशुद्धि
तत्वज्ञान के लिये ध्यानयोग में दृढ़ स्थिति
सात्विक दान
इन्द्रियों का निग्रह
अग्निहोत्र आदि यज्ञ और श्रेष्ठ कर्म का आचरण
वेद शास्त्रो का स्वाध्याय
स्वधर्म पालन के लिए कष्ट सहन और अन्तः करण की सरलता।

नोट- इस श्लोक में और इसके बाद के दो और श्लोक में भगवान कृष्ण अर्जुन को देवी सम्पति क्या है ये बता रहे है।
सारा संसार भौतिक पदार्थो को सम्पत्ति समझ कर भागा जा रहा है परन्तु वह सम्पति अंतिम समय काम नही आती है। केवल सत्कर्म और ईश्वर की भक्ति रूपी सम्पत्ति ही जीव के काम आती है। अतः संसार को त्याग भाव से भोगना चाहिए
(मुकेशार्यः कानड़)
ओ३म्


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