ॐ
विक्रान्त वृत्ति योगशास्त्र गतांक से आगे
वृत्तियों के सारुप्य से ही चित्त के द्वारा आत्मा दुःख सुख का भोग करता है। सभी भान्त के ज्ञान का अर्जण और कर्म करने की प्रेरणा अथवा जो भी घटनाएँ चित्त भूमि पर घटती हैं उनका कारण चित्त वृत्तियाँ हैं या यूँ कहें के ये सब चित्त वृत्तियां ही हैं।
व्यापार या कार्य को ही वृत्ति कहते हैं और अंतःकरण के कार्य चित्तवृत्ति ही हैं।
ये चित्त की वृत्तियाँ
वृत्तयः पञचतय्य: क्लिष्टा अक्लिष्टाः॥५॥
वृत्तियाँ पांच प्रकार की है,क्लिष्ट और अक्लिष्ट इनके दो भेद हैं।
ये पांच प्रकार की वृत्तियाँ ही क्लेश को उत्पन्न करने का और ये ही क्लेश को दूर करने में सहयोगी होती हैं॥५॥
ॐ
प्रमाणविपर्य्ययविकल्पनिद्रास्मृतय:॥६॥
प्रमाण विपर्यय विकल्प निद्रा और स्मृति ये पाञ्च प्रकार की वृत्तियाँ हैं॥६॥
अब इनका विवरण करतें हैं।
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प्रत्यक्षानुमानागमाः प्रमाणानि॥७॥
प्रत्यक्ष,अनुमान और आगम तीन प्रमाण हैं;अन्य शेष प्रमाण इन्ही के अंतर्निहित हैं।
१ प्रत्यक्ष - जो ज्ञान ज्ञानेन्द्रियों से सीधें चित्त तक,उससे आत्मा तक पहुंचे,ये प्रत्यक्ष प्रमाण हैं।यथा- नेत्र से दर्शन किया गया,कर्ण से सुना,त्वचा से स्पर्श का ज्ञान,जिह्वा से रस और नासिका से गंध का ज्ञान होना;ये सब प्रत्यक्ष प्रमाणहैं। ये इन्द्रियों के द्वारा विषयों का साक्षात्कार या प्रत्यक्ष प्रमाण है जो अन्तःकरण से होता हुआ आत्मा को प्रत्यक्ष होता है चित्त के विषय के तदाकार होने के उपरांत। आत्मा भी वृत्ति के से स्वरूप वाला स्वयं को अनुभव करता है निरंतर चित्त के निकट होने से॥ॐ॥
शेष प्रमाणों पर अग्रिम अंक में विचार करेंगें,प्रतिलिपि करके आगे बढाकर लुप्त होते धर्म की रक्षा में सहयोग करें कृपया॥ॐ॥
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