।।ओ३म्।। श्राद्ध किसका व कैसे करें:- ‘पितर’ शब्द का अर्थ- “अपनी सन्तति की रक्षा करने वाला” ही पितर कहलाता है।संतान की रक्षा जीवित ही कर सकता है।अत: पितर शब्द जीवित माता-पिता आदि के लिए आया है। श्राद्ध शब्द का अर्थ-श्राद्ध श्रद्धा धातु से बना है।श्रद्धा भी जीवित के साथ होती है।अत: जीवित माता-पिता के प्रति श्रद्धा रखना ही श्राद्ध कहलाता है। मरने के बाद शरीर में से आत्मा निकल जाने के कारण उनके लिए कुछ भी क्रिया करना व्यर्थ है। तर्पण का अर्थ-तर्पण उसे कहते हैं कि माता पिता या बडों की इतनी सेवा करो कि वें त्रप्त हो जायें।वे अपने बच्चों से पूर्णतया संतुष्ट रहें। श्राद्ध और तर्पण जीवित के साथ ही होता है। जीवित माता-पिता की सेवा करना ही धर्म है। पौराणिक पंडों के अनुसार मृत्योपरांत कर्मकांड जैसे श्राद्ध आदि जीव मुक्ति के लिये किये जाते हैं।अब सोचने की बात ये है कि यदि जीव मुक्त हो गया,तो श्राद्ध किसका ?यदि जीव मुक्त हो चुका है,तो पितर पक्ष में आवाहन किसका होता है ? जो है ही नहीं उसको कैसे बुलाया जा सकता है,कैसे उसे भोजन कराया जा सकता है? शरीर छोड़ते ही आत्मा अपने कर्मानुसार दो गतियों में से एक गति को प्राप्त करती है या तो मोक्ष अथवा पुनर्जन्म,तो फिर मरने के बाद इन डकोतों को खिला कर क्या लाभ? पौराणिकों में भ्रान्ति है कि श्राद्ध के दिनों में हमारा खाया हुआ मरों हुओं के पास पहुंच जायेगा।यह बात नितान्त असत्य है। •••••••••••••••••••••••••••••••• जिसे सही समय पर सही मार्गदर्शन मिल गया या जिनकी तार्किक व चिंतनशील प्रवृत्ति है या जो कोई भी वेदोक्त ग्रन्थ पढते हैं,वो तो इन पंडों से बचे हुए है,अन्यथा आम आदमी के लिये बचने का इन ढोंगियों ने कोई रास्ता ही नहीं छोड़ा है। इसलिए हमें लाश पर बैठकर भी खाना खा जाने वाले पौराणिक पंडों को कुछ भी व कभी भी नहीं देना चहिये।क्योंकि इन्हें खिलाने-पिलाने से ये और ज्यादा बढेंगे।जिससे ज्यादा पंडे पाप को और ज्यादा फैलायेंगे।पापियों को बढाने में सहयोग करने के कारण हम भी पाप के भागी बनेंगे। इसलिए हमें पशु-पक्षी,पेड-पौधों,मनुष्यों(जिनमे चेतना हो) आदि की,जो भी परस्पर उपयोगी व हानि न पहुंचाने की स्थिति में हो,सेवा करनी चहिये,अन्य की कभी नहीं। पशुओं की सेवा इस प्रकार की जा सकती है,जैसे कोई पशु प्यासा है,तो उसे पानी पिलायें,भूखा है उसे चारा खिलायें,अगर पीड़ित है,उसे चोट लगी है,तो उसकी मरहम पट्टी करायें। पक्षियों के लिये छत पर पानी व किसी अन्न के दाने रखकर पक्षियों की सेवा की जा सकती है। ऐसा सभी करें,तो चारों तरफ पशु-पक्षी की खुशनुमा आवाजें आने से वातावरण सकारात्मक होगा।जिससे हमें सकारात्मक ऊर्जा मिलने से खुशी प्राप्त होगी। सोचें कि अगर घरों में चिडिया न चहचाये,तो घरों में कितना कम मन लगेगा,घर में टुकडा लेने कुत्ता न आये,तो कैसे शान्ति मिलेगी?दुधारू पशु न हो,तो हमारे जीवन पे ही संकट खडा हो जायेगा। अपने से बडे मनुष्यों की सेवा उनका कहा मानने व सम्मान करने,उनके स्वास्थ्य व खानपान की देखभाल करके की जा सकती है। इस प्रकार अगर अपने-अपने घर में सभी अपने से बडों की सेवा करेंगे,तो बच्चे भी हमसे प्रेरणा प्राप्त करके अपनों से बडों का सम्मान व सेवा करेंगे।अन्यथा वृद्धाश्रम में जाना पडेगा। पेड-पौधों की सेवा उनमें पानी व जरूरी खाद या दवाई डालकर की जा सकती है।उनके फूल,पत्तों व टहनियों को नुकसान न पहुंचाकर की जा सकती है। ऐसे करने से चारों तरफ हरियाली बढेगी,जिस कारण हम पेड-पौधों का महत्व समझने के कारण और ज्यादा पेड-पौधे लगायेंगे। अन्यथा प्रदूषण बढता जायेगा,बरसात कम होने से पानी का संकट खडा हो जायेगा। इस प्रकार बाकि बची जड चीजों का यथायोग्य प्रयोग करने से उन चीज़ों की सेवा की जा सकती है।जैसे-खाने के लिये इतनी ही चीजें बनायें,जितनी आवश्यक हो,अन्यथा फालतू चीजें बेकार जाने के कारण हम खाने के प्रति लापरवाह होने के कारण घाटे में जाते रहते हैं।यही आदत अन्य खर्चों में भी बढ जाती है।जिस कारण कहा जाता है कि चीजों का सम्मान न करने के कारण घर से लक्ष्मी चली जाती है।हम कर्ज में डब जाते हैं।बहुत से घरों में कर्जों के कईं कारणों में एक कारण ये भी है। कोई भी चीज हो,चाहे वो किसी भी प्रयोग में आती हो,उतना ही प्रयोग करें,जितनी उसकी जरूरत हो।जैसे पानी,बिजली,हीटर आदि का प्रयोग ध्यान पूर्वक करें।यही उनकी सेवा है। सेवा चाहे चेतन की हो या जड की सम्मानपूर्वक की जानी चहिये। जो चीजें मनुष्यों या पशु-पक्षियों,पेड पौधों आदि को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में हो या ये परस्पर हानि पहुंचाने की स्थिति में हो,तो उन हानिकारक चीजों की सेवा नहीं,बल्कि उसका निपटारा जरूरी होता है,अगर वो ज्यादा हानि पहुंचाने की स्थिति में हो,तो उसे हमेशा के लिये समाप्त कर दें।जैसे डेंगू मच्छर व पाखंडी पंडा आदि। इस प्रकार सभी खुशहाल होंगे व आगे बढने के लिए प्रेरित होंगे।पाखंडियों की बातों पर चलकर पाखंड के कारण सारा समाज दिशाहीन होकर समाप्त हो जायेगा।अगर हमें समाप्त होना है,तो पौराणिक पाखंड को पकडे रखें।अन्यथा वेदमत की ओर लौटें। वेदमत समझने के लिए सत्यार्थ प्रकाश पढें।।
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