३१ ज्येष्ठ 14 जून 16
😶 “ नदी के पार ” 🌞
🔥🔥ओ३म् अश्मन्वती रीयते स ँ रभध्वमुत्तिष्ठत प्र तरता सखाय:।🔥🔥
🍃🍂 अत्रा जहीमो अशिवा ये असन् शिवान् वयमुत्तरेमाभिवाजान् ।। 🍂🍃
ऋ० १० । ५३ । ८ ; यजु:० ३५ । १०; अथर्व० १२ । २ । २६
शब्दार्थ :- पत्थरों,शिलाओंवाली नदी वेग से बह रही हैं ।
हे साथियों,मित्रों !
उठो,मिलकर एक दूसरे को सहारा दो और इस नदी को प्रबलता से तर जाओ ।
आओ, जो हमारे अकल्याणकार संग्रह हैं उन्हें हम यहीं छोड़ दें और कल्याणकारी सुखों,बलों और ज्ञानों को पाने के लिए हम इस नदी के पार हो जाएँ ।
विनय :- भाइयों !
सांसारिकता की नदी बड़े वेग से बह रही हैं । अपने अभीष्ट सुखों को,सच्चे भोगों को,बलों को हम इस नदी के पार पहुंचकर ही पा सकते हैं,पर हमें बहाये लिये जानेवाले विषयों के इस भारी प्रवाह को तर जाना भी आसान कार्य नहीं हैं । यह नदीं बड़ी विकट हैं । इसमें पड़े हुए भोग्य-पदार्थों के बड़े-बड़े और फिसलनेवाले चिकने पत्थर हमारे पैरों को जमने नहीं देते । इधर शिलाओं की ठोकर खाकर कदम-कदम पर गिर पड़ने का डर है,उधर नदीं का वेग हमें बहाये लिए जाता है, परन्तु पार पहुँचे बिना हमें सुख-शान्ति भी नही मिल सकती, अत:
भाइयों !
उठो,मिलकर एक दूसरे को सहारा देते हुए आगे बढ़ो । हिम्मत करके उठ खड़े होओं और दृढ़ता के साथ प्रबल यत्न करते हुए इस नदी के पार उतर जाओ,
मुश्किल ये हो रहा है कि पत्थरों वाली और वेगवती इस नदी के पार उतरना इतना मुश्किल हो रहा हैं भोगेच्छा,कुसंस्कार,अधर्म की वासना तथा पापों के भारी बोझ से हमने अपने आप को बोझिल बना रखा है । इसके कारण हमारा पार उतरना मुश्किल हो रहा है ।
आओ ! साथियों,भाइयों पहले हम अपने बुरे कर्म यहीं छोड़ दे
यदि इस बोझ के साथ हम स्वयं डूब मरना या नदी प्रवाह हो जाना नहीं चाहते तो हमें इन बुराइयों को तो नदी में प्रवाह कर देना चाहिए । इन बुराइयों से छुटकारा पाकर हमें एक दूसरे को सहारा देकर आगे बढना चाहिए ।
हे कल्याण चाहनेवाले !
यह नदी चाहे कितनी विकट हो, पर इसे पार किये बिना कोई हल नहीं कोई चारा नही ।
ओ३म् का झंडा 🚩🚩🚩
……………..ऊँचा रहे
🐚🐚🐚 वैदिक विनय से 🐚🐚🐚
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