स्वामी दयानन्द के उपदेश से जीवन परिवर्तन
पंजाब के जेलम नगर में महर्षि दयानंद के प्रवचन हो रहे थे । एक सज्जन वहां के तहसीलदार को ले आये और ऋषि जी से निवेदन किया की ये अच्छे कवि व संगीतज्ञ तथा मधुर गायक है , महर्षि ने कहा सुनाओ। इन्होने मधुर स्वर में जो संगीतमय गीत गाया तो सारे श्रोता झूमने लगे , महर्षि भी आनंदविभोर हो गए । महर्षि के उपदेश पश्चात एक सज्जन ने कहा - ऋषि जी ये जो संगीतमय गीत गा रहे थे वे बड़े शराबी , वेश्यागामी , जुआरी , रिश्वतखोर है । ऐसे अनेक दोष इनमे है । ऐसे को अपनी सभा में स्थान दिया।
ऋषि मुस्कुराए और कहा - कल आने दो।
दूसरे दिवस आकर फिर सुमधुर कंठ से प्रभूमाहिमा में गीत गाया । सबको बड़ा आनंद आया । महर्षि ने शराब , वेश्यागमन , जुआ , रिश्वत आदि से क्या हानि होती है इसी पर उपदेश दिया । तहसीलदार जी अनुभव करते थे की ये तो मेरे जीवन की डायरी सुना रहे है। सत्संग सम्पन्न हुआ । तहसीलदार जी ने भी आज्ञा मांगी । महर्षि ने कहा - आपका कितना मधुर कंठ है ! कितने सुंदर प्रभुभक्ति के गीत गाते हो । इस नगर में तुम हीरे हो । हो तो हीरे , किन्तु कीचड़ में पड़े हो ।
हृदय उपदेशामृत से निर्मल हो गया था इन वचनों का ऐसा प्रभाव पड़ा की घर पहुंचकर शराब की बोतलें फेंक दी , वेश्याओं को निकाल दिया , जुआरियो को विदा किया ! जीवन पलट गया।
पत्नी को बुलाया और महर्षि के पास पहुंचे । ऋषिराज ! यह हीरा कीचड़ से निकलकर ऋषि चरणों में आ गया है , इसका उद्धार करें । यह कह ऋषि चरणों में गिर पड़े । अविरल अश्रुधारा से महर्षि के पावो का प्रक्षालन कर दिया । सर्व श्रोता भी अश्रुपूरित हो गए । महर्षि ने हृदय से लगा लिया ।
ये तहसीलदार महेता अमीचंद थे जिन्होंने महर्षि की कृपा से सत्संग में आकर अनेक प्रभू महिमा के गीतों की रचना कर प्रचार किया।
मेहता अमीचंद जेहलम (वर्तमान में पाकिस्तान) जिले के पहले आर्य प्रचारक बने।
उदाहरण के लिए -
1. तुम हो प्रभू चाँद मैं हूँ चकोर , तुम हो कमलफूल मैं रस का भौंरा
2. जय जय पिता परम आनंद दाता , जगदादि कारण मुक्तिप्रदाता
3.आओ मिल सब गीत गाओ उस प्रभु के धन्यवाद
from Tumblr http://ift.tt/28JYU8o
via IFTTT
No comments:
Post a Comment