न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोअयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।गीता (2/20)
शरीर में 6 विकार होते हैं – उत्पन्न होना,सत्तावाला दीखना,परिवर्तन होना,वृद्धि होना,घटना और नष्ट होना।आत्मा इन विकारों से मुक्त है। यह सनातन है।यह कभी मृत्यु को आलिंगन नहीं करती।जिसका जन्म होता है,उसी की मृत्यु अवश्यंभावी है।आत्मा में संयोग एवं वियोग नहीं होते।
आत्मा स्वतःसिद्ध निर्विकार है।इसकी सत्ता का आरम्भ और अन्त नहीं होता।इसे जन्मरहित कहते हैं।इसका अपक्षय कभी भी नहीं होता।शरीर कुछ आयु पश्चात् घटने लगता है,शक्ति क्षीण होने लगती है,इन्द्रियाँ शिथिल हो जाती हैं।लेकिन नित्य –तत्त्व आत्मा में किन्चिन्मात्र भी कमी नहीं आती।
आत्मा अनादि है।इस नित्य – तत्त्व में कोई वृद्धि भी नहीं होती।शरीर नश्वर है,जबकि आत्मा अविनाशी है।
शरीर परिवर्तनशील और विकारी होने के कारण आत्मा का अंग नहीं है।
ओम शान्ति
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