नमस्ते जी
हमारे साथ जुड़े हुए पाठकगण यदि सोए हुए तो कृप्या अन्यों के लिए नही तो कमसे कम स्वयं के लिए जागे।
उक्त प्रश्नों का संक्षिप्त उत्तर इसप्रकार से जाने।
१ ) मनुष्य जीवन मे अर्थात मनुष्यरूपी शरीर के प्रयोजन का प्रयोजक साधन *धर्म* है।
२ ) अभ्युदय उसे कहते है जो लौकिक और पारलौकिक उन्नति से सम्पन हो। अर्थात *जो अर्थ और काम की प्राप्ति होती हो, वह निःश्रेयस में सहायक हो, और निःश्रेयस के लिए सम्पन्न हो।*
३) निःश्रेयस की प्राप्ति अत्यन्त दुःखों से छूटना अर्थात *नि: = नितान्त, श्रेयस= कल्याण निःश्रेयस धर्म की भूमि पर पनपता है और धर्म, अर्थ और काम को निःश्रेयस की छांव रहती है।* अर्थात इतरेइत्तराश्रय
४ शास्त्र *विषयी* है और तत्त्वज्ञान *विषय* अर्थात जिसमें विषय रहता हो वह विषयी = शास्त्र।
मुक्ति *कार्य* है और *तत्त्वज्ञान* कारण। अर्थात पदार्थो का वर्णन करने से ज्ञायक और पदार्थ ज्ञेय अर्थात जानने योग्य।
५ ) निःश्रेयस को ध्यान में रखते हुए अभ्युदय की प्राप्ति करनी चाहिए अर्थात हमारे पास साधन व कामनाएं हो वह धर्म के अनुकूल होने से निःश्रेयस के सहायक है और जो अभ्युदय में अन्याय युक्त साधन की प्राप्ति है अर्थात अधर्म से की गई प्राप्ति से भी अभ्युदय तो होता है केवल इसी जीवन में किन्तु आगे के लिए बाधक है।
शेष प्रश्नों का उत्तर देना का पाठकगण कृप्या प्रयास करें।
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