Monday, June 13, 2016

मन सपिॅत, तन सपिॅत और यह जीवन सपिॅत, चाहता हूँ मातृ -भू, तुझको अभी कुछ और भी दू। माँ तुम्हारा ऋण...

मन सपिॅत, तन सपिॅत और
यह जीवन सपिॅत,
चाहता हूँ मातृ -भू, तुझको
अभी कुछ और भी दू।
माँ तुम्हारा ऋण बहुत है मैं अकिंचन,
किंतु इतना कर रहा फिर भी निवेदन,
थाल में लाऊ सजाकर जान को जब,
स्वीकार कर लेना दया कर यह समपॅण,
गान अपिॅत, प्राण अपिॅत,
रक्त का कण-कण सपिॅत।।


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