*नम्रता और अभिमान* ये दोनों विरोधी तत्व हैं। प्रायः लोग नम्रता की प्रशंसा करते हैं फिर भी उसे जीवन में ला नहीं पाते।
इसी प्रकार से अभिमान की बहुत निंदा करते हैं, फिर भी उसे छोड़ नहीं पाते ।
कोई बात नहीं । किसी भी दोष को छोड़ने के लिए और गुण को धारण करने के लिए बार बार पुरुषार्थ करना चाहिए , चाहे जितनी बार भी असफल हों, तब भी कभी निराश नहीं होना चाहिए , सफलता एक दिन अवश्य मिलेगी ।
तो *नम्रता ही अच्छी है , यही सुखदायक है , समाज में प्रतिष्ठा जनक है । जबकि अभिमान बुद्धि का विनाशक है, दुखदायक है, प्रतिष्ठा को धूल में मिलाने वाला है* ।
ऐसा बार-बार सोचें। ऐसा कुछ प्रयास करने के बाद, आप का अभिमान धीरे-धीरे कम होने लगेगा, और नम्रता बढ़ने लगेगी । तब देखिएगा, जीवन में कितना आनंद होगा। -स्वामी विवेकानंद परिव्राजक ।
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