मित्रों, आज का मानव ईश्वर को प्राप्त करने के लिए संसार में इस प्रकार भटक रहा है जिस प्रकार कस्तूरी मृग, कस्तूरी को ढूंढता हुआ वन में भटकता है जबकि कस्तूरी मृग की नाभि में होती है उसी प्रकार मनुष्य संसार में ईश्वर को ढूंढ रहे हैं जबकि ईश्वर उसके सबसे समीप है आवश्यकता है तो सिर्फ ईश्वर को जानने की, ईश्वर को पहचानने की। इसके लिए विद्वानों ने बताया है कि अगर हम अपने अंतःकरण में ईश्वर को देखना चाहते हैं तो हमें अपने अंतःकरण को पवित्र बनाने की आवश्यकता है इसके लिए विद्वानों ने बताया है सत्य आहार, सत्य विचार, सत्य आचरण, सत्य ज्ञान और तप। मित्रों सत्य आहार से हमारा तात्पर्य है मेहनत कर खाने से, शुद्ध और सात्विक भोजन से। सत्य विचार से हमारा तात्पर्य है जन कल्याण के विचारों से। वेदों में भी कहा गया है तन्वे मनः शिव संकल्पमअस्तु। हे ईश्वर मेरे विचार सभी को सुख देने वाले हों। महर्षि गुरुवर देव दयानंद सरस्वती जी ने भी कहा है कि हमें सभी की उन्नति में ही अपनी उन्नति समझनी चाहिए। यह है सत्य विचार। सत्य आचरण से हमारा तात्पर्य यम नियम का पालन करना, सभी दोषों को छोड़कर सत्य को अपने आचरण में उतारना। मित्रों सत्य ज्ञान से हमारा तात्पर्य है विज्ञान और आत्म ज्ञान के बारे में जानना। विज्ञान कहते हैं सृष्टि के बारे में, सृष्टि के रहस्यों के बारे में जानना। आत्म ज्ञान का अर्थ है आत्मा और परमात्मा के बारे में जानना। मैं कौन हूं, कहाँ से आया हूँ, कहाँ जाना है आदि। तप से हमारा तात्पर्य है किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसके मार्ग में आने वाली कठिनाई और कष्टों की परवाह किए बिना उद्देश्य की तरफ बढ़ते रहना। संसार में कोई कार्य बगैर तप के नहीं होता है मित्रों ईश्वर की भक्ति और ईश्वर के बारे में ज्ञान के बगैर कोई दूसरा रास्ता नहीं है मोक्ष का तभी वेदों में कहा नान्याः पन्था विद्ययते$नाय
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