Friday, June 22, 2018

◙ *मैं तुम्हारा ऋणी हूँ; उस ऋण मे मुक्त होना चाहता हूँ…*_“ऋषिवर! तुम्हें भौतिक शरीर त्यागे ४१...

◙ *मैं तुम्हारा ऋणी हूँ; उस ऋण मे मुक्त होना चाहता हूँ…*


_“ऋषिवर! तुम्हें भौतिक शरीर त्यागे ४१ वर्ष हो चुके, परन्तु तुम्हारी दिव्य मूर्ति मेरे हृदय-पटल पर अब तक ज्यों-की-त्यों अंकित है. मेरे निर्बल हृदय के अतिरिक्त कौन मरणधर्मा मनुष्य जान सकता है कि कितनी बार गिरते-गिरते तुम्हारे स्मरण मात्र ने मेरी आत्मिक रक्षा की है. तुमने कितनी गिरी हुई आत्माओं की काया पलट दी, इसकी गणना कौन मनुष्य कर सकता है? परमात्मा के बिना, जिनकी पवित्र गोद में तुम इस समय विचर रहे हो, कौन कह सकता है कि तुम्हारे उपदेशों से निकली हुई अग्नि ने संसार में प्रचलित कितने पापों को दग्ध कर दिया है? परन्तु अपने विषय में मैं कह सकता हूँ कि तुम्हारे सत्संग ने मुझे कैसी गिरी हुई अवस्था से उठाकर सच्चा जीवन-लाभ करने के योग्य बनाया?”_


_“मैं क्या था इसे इस कहानी में मैंने छिपाया नहीं. मैं क्या बन गया और अब क्या हूँ, वह सब तुम्हारी कृपा का ही परिणाम है. इसलिए इससे बढकर मेरे पास तुम्हारी जन्म-शताब्दी पर और कोई भेंट नहीं हो सकती कि तुम्हारा दिया आत्मिक जीवन तुम्हें ही अर्पण करुं. तुम वाणी द्वारा प्रचार करनेवाले केवल तत्ववेत्ता ही न थे, परन्तु जिन सच्चाइयों का तुम संसार में प्रचार करना चाहते थे उनको क्रिया में लाकर सिद्ध कर देना भी तुम्हारा ही काम था. भगवान् कृष्ण की तरह तुम्हारे लिए भी तीनों लोकों में कोई कर्तव्य शेष नहीं रह गया था, परन्तु तुमने भी मानव-संसार को सीधा मार्ग दिखाने के लिए कर्म की उपेक्षा नहीं की”._


_“भगवन् ! मैं तुम्हारा ऋणी हूँ; उस ऋण मे मुक्त होना चाहता हूँ. इसलिए जिस परमपिता की असीम गोद में तुम परमानन्द का अनुभव कर रहे हो, उसी से प्रार्थना करता हूँ कि मुझे तुम्हारा सच्चा शिष्य बनने की शक्ति प्रदान करे”._


*- श्रद्धानन्द*


(अपने आत्मोत्सर्ग से दो वर्ष पूर्व वि.सं. १९८१ तदनुसार ई.१९२४ में प्रकाशित अपना आत्म-चरित *“कल्याण मार्ग का पथिक”* ऋषि दयानन्द सरस्वती के चरणों में सादर समर्पित करते हुवे स्वामी श्रद्धानन्द जी के मार्मिक शब्द… स्वामी जी की यह आत्मकथा अपने जन्म-वर्ष १८५७ ई. से १८९२ ई. तक कुल ३५ वर्षों के क्रिया-कलाप और घटनाओं का विवरण देती है. उसके आगे का जीवन तथा उनके कार्यों का लेखा-जोखा जानने के लिए पढें: *“स्वामी श्रद्धानन्द: एक विलक्षण व्यक्तित्व”*, सम्पादक: डॉ. विनोदचन्द्र विद्यालंकार)


* *स्त्रोत:* कल्याण मार्ग का पथिक(संस्करण २०१५, पृ.३)

* *लेखक:* स्वामी श्रद्धानन्द जी

* *सम्पादक:* डॉ. ज्वलन्तकुमार शास्त्री

* *प्रस्तुति:* राजेश ‘आर्य’

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◆ *Swami Shraddhanand* (MR Jambunathan)


https://drive.google.com/file/d/1ACWhRpU4mGpCKsx_OUzZRijHt9_cTD4x/view?usp=drivesdk

◆ *कल्याण मार्ग का पथिक* (स्वामी श्रद्धानन्द)


https://drive.google.com/file/d/1rN4XefoE0bB7JrEG3P0rPIjrcM0YVQyB/view?usp=drivesdk

◆ *वीर सन्यासी श्रद्धानन्द* (राम गोपाल)


https://drive.google.com/file/d/14By6FywhUouSzVbde5PCFvBGEQWr6K52/view?usp=drivesdk

◆ *स्वामी श्रद्धानन्द* (उमा चतुर्वेदी)


https://drive.google.com/file/d/1H1nxN3IBQ3_0Gp3kfai_fIEcWv79QmbK/view?usp=drivesdk

◆ *स्वामी श्रद्धानन्द* (सत्यदेव विद्यालंकार)


https://drive.google.com/file/d/1ZlDBiNqvzeoSe-3GoPwVWrinL7rc_bVM/view?usp=drivesdk


*II ओ३म् II*


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