नमस्ते जी
पूर्वपक्ष ने निष्क्रमण और प्रवेशन का आकाश के लिङ्ग में अन्वय और व्यतिरेक व्याप्ति से निषेध किया उनका सूत्रकार समाधान करते हुए बताते है कि :- *संयोगादभाव: कर्मण:।। २३ ।। ( २ - १ )*
अर्थात संयोग से कर्म का अभाव होता है।
अतः आकाश किसी मूर्त द्रव्य की निष्क्रमणादि क्रिया का निमित्तकारण ही होता है।
अर्थात किसी भी द्रव्य का एक स्थान से वियोग या विभाग होकर अन्य स्थान से संयोग हो जाना ही क्रिया है। और यह संयोग - विभाग आकाश के बिना सम्भव नहीं हो सकते, अर्थात आकाश में ही संयोग या विभाग रूप क्रिया सम्भव है।
अतः मूर्तद्रव्य, क्रिया का समवायिकारण; आघात, संयोगादि असमवायिकारण; शेष सब साधन निमित्तकारण रहते है।
इसप्रकार काल,आकाश, दिशा आदि कार्यमात्र के निमित्तकारण माने जाते है।
तो यहां शंका होती है कि यदि आकाश कार्यो का निमित्तकारण है, तो धनुष से छोड़ा हुआ बाण, बंदूक से छुटी हुई गोली हाथ से फेंका गया पत्थर इत्यादि की क्रिया आकाश के नित्य एवं व्यापक होने से कभी समाप्त नही होनी चाहिए।
तो यंहा जानना चाहिए कि,प्रत्येक कार्य के अनेक कारण होते है; कोई भी आघात व नोदन की अपनी एक सीमा होती है, और प्रतिरोधक द्रव्यों से भी क्रिया समाप्त हो जाती है।
इससे क्रिया के प्रति आकाश की निमित्तकारणता में कोई बाधा नही आती
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