आचार्य अनिल
सतय धटना
सत्यार्थ प्रकाश के प्रसंग से
भूतपूर्व पटवारी के जीवन में
आया नया मोड़
लोगों से ली रिश्र्वत लौटाकर खुद बन
गया संत
पश्चाताप के लिए गुरुकुल में कर रहा है
गौसेवा
कहते हैं कि जब जागो तभी सवेरा हो
जाता है। जीवन में की गई गलतियों पर
मनुष्य पश्चाताप कर ले और सद्कर्म
शुरू कर दे तो वह देवता तुल्य हो जाता
है। इसी बात को अपने जीवन में उतारा
है हरियाणा के सफीदों हलके के
महामुनि महासिंह ने। क्षेत्र में
महामुनि के नाम से जाने जाने वाले इस
शक्श का वर्तमान व भूतकाल
बिल्कुल अलग है। महामुनि पहले
पटवारी थे। नौकरी के समय लोगों से
रिश्र्वत लेने के लिए मशहुर महासिंह
पटवारी के जीवन में एक ऐसा
परिवर्तन आया कि उन्होंने बिना
किसी दबाव के सभी लोगों की रिश्र्वत
वापिस कर दी। बाद में वे खुद भी संत
बन गए। संत बनने के बाद महामुनि
गुरुकुल कालवा में चले गए और
तपस्वी आचार्य बलदेव महाराज के
सानिध्य में दीक्षा ग्रहण करके गऊ
सेवा में जूट गए। सफीदों हलके का यह
वहीं गुरुकुल है जहां कभी योग गुरु
रामदेव ने अपनी शिक्षा प्राप्त की
थी। इसी गुरुकुल की शिक्षा
की ज्योत
आज विश्र्व में योग के रूप में जल रही
है।तपस्वी आचार्य बलदेव द्वारा
स्थापित इस गुरुकुल में अनेक संत पैदा
हुए हैं। ऐसे ही संत महामुनि महासिंह
हैं। जो पिछले 15 साल से इस गुरुकुल
व गौशाला की सेवा कर रहे हैं। महामुनि
का इसी गुरुकुल से ह्रदय परिवर्तन
हुआ और एक ऐसा काम किया जिसके
लिए बहुत बडे़ दिल की जरूरत होती
है। उन्होंने अपनी नौकरी के समय
लोगों से सरकारी काम की एवज में ली
रिश्र्वत को वापिस कर दिया।
महामुनि ने लोगों को रिश्र्वत के पैसे
वापिस करके उनसे माफी मांगी और
इसका पछतावा करने के लिए संत बन
गए। उसी दिन से गौ सेवा करके लोगों
के लिए मिशाल बन गए। महामुनि खुद
स्वीकार करते हैं कि उन्होंने नौकरी के
समय लोगों से रिश्र्वत ली लेकिन
रिटायरमेंट के बाद जब वे आचार्य
बलदेव के संपर्क में आए तो उनका
जीवन ही बदल गया। आचार्य बलदेव
ने उन्हे सत्यार्थ प्रकाश पढ़ने के
लिए दी। सत्यार्थ प्रकाश पढ़ने के
बाद उनके जीवन में एकदम से बदलाव
आ गया। महामुनि बताते हैं कि
सत्यार्थ प्रकाश के एक प्रसंग कि
एक पटवारी द्वारा पछतावा करते हुए
अपनी जमीन बेचकर लोगों की
रिश्र्वत लौटाने की घटना ने उन्हें
झकझौर कर रख दिया। महामुनि ने
यह प्रसंग पढ़कर उसी समय निर्णय
लिया कि वे भी सभी के रिश्र्वत में
लिए पैसे लौटा देंगे। इस निर्णय के
बाद महामुनि ने बैठकर उन सभी लोगों
की लिस्ट तैयार कर ली जिनसे उन्होंने
नौकरी के दौरान रिश्र्वत ली थी।
महामुनि सभी लोगों के घरों पर गए
और उनका पैसे लौटाने का कार्य शुरू
कर दिया। कुछ लोगों ने तो उनसे पैसे
वापिस ले लिए लेकिन कुछ लोगों ने पैसे
लेने से मना कर दिया। जिन लोगों ने
पैसे लेने से मना कर दिया उन लोगों की
जितनी रकम बनती थी महामुनि ने उस
रकम की गौशाला में चंदे की रसीद
कटवा दी। महामुनि ने जिन ग्राम
पंचायतों से पैसे लिए थे उनके पैसे भी
लौटा दिए। उसके बाद महामुनि ने
बाकी का सारा जीवन गऊ सेवा में लगा
दिया। महामुनि ने पैसे से इस कदर
तौबा कर ली कि सरकार द्वारा दी जा
रही पैंशन को गुरुकुल में पढ़ने वाले
ब्रह्मचारियों व गरीब छात्रों को दान
कर देते हैं। महामुनि के इस कार्य से
कायल गुरुकुल के प्रबंधक आचार्य
राजेंद्र ने उनकी प्रशंसा करते हुए
उनकों सच्चा पुरुसारथि बतलाया।
उनके परिवार के लोग भी उनके इस
कार्य से खुश हैं। उनके बेटे लाला ने
बताया कि मुनि बनने के बाद वे कभी
भी घर पर वापिस नहीं आए। अपने
पैसे प्राप्त करने वाले श्रीया व सरपंच
दलबीर ने बताया कि उनके मना करने
के बावजूद उन्होंने पैसे वापिस कर
दिए। forward by आरय कांनतिलाल भुज करछ
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