समाज एवं राष्ट्र को उन्नतिशील एवं जीवित रहने के लिए
वैज्ञानिक उपलब्धियाँ भी आवश्यक हैं„„ किन्तु इन आवश्यकताओं
की पूर्ति से होनेवालें बुरे प्रभाव को हटाते रहना भी उतना ही
आवश्यक है जितना गन्दे शरीर एवं वस्त्र को धोकर स्वच्छ रखना | एक
सामाजिक प्राणि होने के नाते हमारा यह नियम होना चाहिए
कि जिस वातावरण में हम रह रहे हैं और हमारे कारण जो गन्दगी
फैलती है उसका निराकरण करना भी अपना धर्म समझें„„ जो वस्तु
हम गन्दा कर रहे हैं उसी चीज को स्वच्छ रखना भी अपना वास्तविक
कर्त्तव्य है |
वायु दूषित कर देने का बदला किसी भूखे को भोजन खिला देने से
पूरा समझना मात्र एक सन्तोष ही है„„ उचित बदला यही हो
सकता है कि उस वायु को ही हम स्वच्छ बनाते रहें | वायु स्वच्छता
का एकमात्र उपाय हैं तो वह ””यज्ञ”” ही हैं„„ परन्तु उस हवन की
मात्रा इतनी होनी चाहिए कि प्रतिदिन उत्तरोत्तर बढ़ते हुए
विषैलेपन का प्रभाव क्षीण कर सकें!!!!
ओ३म
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