वेदविचार-305
(वेद का पढ़ना-पढ़ाना और सुनना-सुनाना सब आर्यों का परम धर्म है। -स्वामी दयानन्द सरस्वती)
6- भूमिवर्ग:
कृषि: (11)
घृतेन सीता मधुना समज्यतां विश्वैर्देवैरनुमता मरुद्भिः।
ऊर्जस्वती पयसा पिन्वमानास्मान्त्सीते पयसाsभ्या ववृत्स्व।।
-यजुर्वेद 12/70; द्र० अथर्व० (3/17/9)
शब्दार्थ- (विश्वैः) समस्त (देवैः) देवों एवं (मरुद्भिः) मरुतों से (अनुमता) अनुमोदित तथा-
(पयसा) दूध से (पिन्वमाना) सिंचित होती हुई (ऊर्जस्वती) ऊर्जावाली (सीता) फाली (मधुना) मधुर (घृतेन) घृत से (सम्) अच्छी तरह (अज्यताम्) पुती जाए।
(सीते) हे सीते! (अस्मान्) हम लोगों से (पयसा) दूध से (अभि) मुख्यतः (आ) सब ओर से (ववृत्स्व) वर्ताव करो।
भावार्थ- सब विद्वानों को चाहिए कि किसान लोग विद्या के अनुकूल घी मीठा और जल आदि से संस्कार कर स्वीकार की हुई खेत की पृथिवी को अन्न को सिद्ध करनेवाली करें। जैसे बीज सुगंधि आदि युक्त करके बोते हैं, वैसे इस पृथिवी को भी संस्कार युक्त करें।
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