[7/22, 8:28 AM] +91 92751 95715: 🔥ओ३म्🔥
⚛️अरा इव रथनाभस्य प्राणे सर्वं प्रतिष्ठितम्।
ऋचो यजूंषि सामानि यज्ञः क्षत्रं ब्रह्म च।⚛️
☸️जिस प्रकार रथ के पहिये की #नाभि में अरे लगे होते हैं, जो नाभि के बिना स्थित नहीं रह सकते, ऐसे ही सम्पूर्ण पदार्थ #प्राणों में स्थित रहते हैं। #ऋग्वेद जिससे स्तुति की जाती है, वह प्राणों से स्थित है, #यजुर्वेद जिससे क्रिया होती है, वह भी प्राणों से स्थित है, और #सामवेद जिससे उपासना होती है, वह भी प्राणों के कारण से है। #यज्ञादि कर्म भी प्राणों के ही द्वारा होते हैं। शरीर में जो बल स्थित है, वह भी प्राणों के ही कारण से है। निदान बाह्य पदार्थो का ज्ञान जिससे ब्राह्मण बनते हैं, वह भी प्राण वायु के ही आधार से है।
⚛️तात्पर्य यह है कि चाहे किसी प्रकार का काम या ज्ञान करना हो, वह #प्राणधारी #जीव ही कर सकता है प्राण रहित #जीवात्मा सब कामों से शून्य होता है अर्थात् वह कुछ काम नहीं कर सकता। ज्ञान, बल, यज्ञ, स्तुति, कर्म, उपासना सब प्राणों से ही हो सकते हैं अर्थात् जो जीव का #लक्षण है कि वह ज्ञान तो #स्वाभाविक रखता है, अन्य कामों को यंत्रों से कर सकता है। जिस #यंत्र से जीव काम करता है, वह प्राण ही है, अतएव प्रत्येक #योनि में जीव ही #प्राणी कहलाता है। जो कुछ वृद्धि, क्षय इत्यादि #विकार है सब #प्राणों के कारण ही हैं। ⚛️
#प्रश्नोपनिषद् @द्वितीय प्रश्न @
[7/22, 8:29 AM] +91 92751 95715: 🔥ओ३म्🔥
💥शरीर में जीतने काम होते हैं उन सबका कारण #प्राण है। जीव तो केवल नियम में रखने वाला है, शेष सब क्रिया प्राणों से होती है। प्राण ही माता के उदर में जाकर लोथड़ा बनाते हैं, प्राण ही #पुत्र और #पुत्री के रूप में उत्पन्न होकर बाहर दृष्टि पड़ते हैं। यह सब जगत् पशु और पक्षी आदि #प्राणों की रक्षार्थ ही भोजन करते हैं। यदि प्राणों को उसकी #भोग्य वस्तु न दी जावे, तो शरीर समाप्त हो सकता है, प्राण ही खाने वाला है। 💥
#प्रश्नोपनिषद् @द्वितीय प्रश्न @
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