📢 *सनातन धर्म को नष्ट करने हेतु किये गये इस्लामी प्रयासों की एक झलक*
इस्लामी शासन काल में *षड्यंत्रिक TAX* और सनातन संस्कारों की हानि
*THEY WILL NEVER TEACH YOU THIS IN HISTORY*
इस्लामी आक्रमणों के 1200 वर्षों के इतिहास में धर्म की बहुत हानि हुई, सती प्रथा, बाल विवाह, जात पात, आदि जाने कितनी ही सामाजिक बुराइयां सनातन धर्म को छू गयीं, और जाने कितनी ही विकृतियाँ सनातन धर्म को चोटिल करती रहीं। ऐसी ही कुछ बुराइयों के बारे में भारतवर्ष की इतिहास की पुस्तकों में पढ़ाया जाता है परन्तु उन्हें पढ़कर लगता है कि वो केवल ऊपरी ज्ञान हैं, और ज्यादातर
बुराइयों को सनातन धर्म से जोड़कर ही दिखा दिया जाता है, परन्तु *ये नहीं बताया जाता कि उन बुराइयों के असली कारण क्या थे*, और किन कारणों से उन बुराइयों का उदय हुआ और विस्तार हुआ?
सनातन संस्कृति के शास्त्रों के अनुसार में मनुष्यों को 16 संस्कारों के साथ अपना जीवन व्यतीत करने का आदेश दिया गया है, जिनके नियम और उद्देश्य अलग-अलग हैं। इस्लामी आक्रमणों से पहले तक संस्कार प्रथा अपने नियमो के अनुसार निरंतर आगे बढ़ रही थी, परन्तु इस्लामी आक्रमणों के बाद और सफलतम अंग्रेजी स्वप्नकार Lord McCauley ने संस्कार पद्धतियों को सनातन संस्कृति से पृथक-सा ही कर दिया। यदि सही शब्दों में कहूँ तो शायद संस्कार प्रथा लुप्तप्राय सी ही हो चुकी है। इस्लामी शासनों के कार्यकालों में किस प्रकार संस्कारों में कमी हुई इसके बारे में आप सबको कुछ बताना चाहता हूँ, कृपया ध्यान से पढ़ें और सबको पढ़ा कर जागरूक करें…
आप सबने इस्लामी शासन कालों में *जजिया और महसूल* के बारे में ही सुना होगा… परन्तु सोचने वाली बात है कि क्या इस्लामी मानसिकता के अनुसार हिन्दुओं पर धर्मांतरण के लिए दबाव बनाने हेतु ये दो ही कर (TAX) काफी थे… ये सोचना ही हास्यापद होगा।
इस्लामी शासन कालों में समस्त 16 संस्कारों पर TAX लगाया जाता था, जिसको की नेहरु, प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और अलीगढ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इतिहासकारों ने भारतीय शिक्षा पद्धति की इतिहास की पुस्तकों में जगह नहीं दी l ऐसे और भी बहुत से विषय हैं जिन पर यह बहस की जा सकती है, परन्तु वो किसी और दिन करेंगे।
अरब से जब इस्लामी आक्रमण प्रारम्भ हुए तो अपनी क्रूरता, वह्शीपन, आक्रामकता, दरिंदगी से इरान, मिस्र, तुर्की, इराक आदि सब देशों विजय करते हुए सनातन संस्कृति को समाप्त करने मलेच्छों द्वारा ऋषि भूमि देव तुल्य भारत पर आक्रमण किये गए। लक्ष्य केवल एक था… *दारुल हर्ब को… दारुल इस्लाम* बनाने का और इस लक्ष्य के लिए जिस नीचता पर उतरा जाए वो सब उचित थीं। इस्लामी मानसिकता के अनुसार जजिया और
महसूल जैसे TAXES के बाद सनातन संस्कृति के 16 संस्कारों पर भी TAX लगाया गया।
संस्कारों पर TAX लगाने का मुख्य कारण यह था कि सनातन धर्म के अनुयायी TAX के बोझ के कारण अपने संस्कारों से दूर हो जाएँ। धीरे धीरे इस प्रकार के षड्यंत्रों के कारण इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा अपनाई गयी इस सोच का यह लक्ष्य सिद्ध होता गया। *धीरे-धीरे समय ऐसा भी आया कि कुछ लोग केवल अति आवश्यक संस्कारों को ही करवाने लगे, और कुछ लोग संस्कारों से पूर्णतया कट से गए।*
सबसे पहले आता है *‘गर्भाधान संस्कार’*।
किसी सनातन धर्म की स्त्री द्वारा जब गर्भ धारण किया जाता था तो एक निश्चित TAX इलाके के मौलवी या इमाम के पास जमा किया जाता था और उसकी एक रसीद भी मिलती थीl *यदि उस TAX को दिए बिना किसी भी सनातन धर्म के अनुसायी के घर में कोई सन्तान उत्पन्न होती थी तो उसे इस्लामी सैनिक उठाकर ले जाते थे और उसकी इस्लामी नियमों के अनुसार सुन्नत करके उसे मुसलमान बना दिया जाता था।*
*नामकरण संस्कार*
नामकरण संस्कार का षड्यंत्र यदि देखा जाए तो सबसे महत्वपूर्ण है । इस को समझने में नामकरण संस्कार में जब किसी बच्चे का नाम रखा जाता था तो उन पर विभिन्न प्रकार के TAX निर्धारित किये गए थे। उदाहरण के लिए - कुंवर व्यापक सिंह। इसमें 'कुंवर’ शब्द एक सम्माननीय उपाधि को दर्शाता है, जोकि किसी राजघराने से सम्बन्ध रखता है। उसके बाद 'व्यापक’ शब्द सनातन संस्कृति के
शब्दकोश का एक ऐसा शब्द है जो जब तक चलन में रहेगा तब तक सनातन संस्कृति जीवित रहेगी।
उसके बाद 'सिंह’ शब्द आता है जोकि एक वर्ण व्यवस्था या एक वंशावली का सूचक है।
'कुंवर’ पर TAX 10000 रुपये
'व्यापक’ पर TAX 1000 रुपये
'सिंह’ पर TAX 1000 रुपये
अब जो TAX चुकाने में सक्षम लोग थे वो अपने-अपने बजट के अनुसार अपने बच्चों के लिए शुभ नाम निकाल लेते थे। समस्या वहाँ उत्पन्न हुई जिनके पास पैसे न हों। क्या ऐसे बच्चों का कोई नाम नहीं होता होगा ?
नहीं, ऐसा नहीं था। ऐसे गरीब परिवारों के बच्चों के लिए भी नाम रखे जाने का प्रावधान था। परन्तु ऐसे नाम उस इलाके के मौलवी या इमाम द्वारा मुफ्त में दिया जाता था और यह कड़ा नियम था कि जो नाम इमाम या मौलवी देंगे वही रखा जायेगा अन्यथा दंड का प्रावधान भी होता था। अब ज़रा सोचिये कि किस प्रकार के नाम दिए जाते होंगे इलाके के मौलवी या इमाम द्वारा।
लल्लू राम,
झंडू राम,
कूड़े सिंह,
घासी राम,
घसीटा राम,
फांसी राम,
फुग्गन सिंह,
राम कटोरी,
लल्लू सिंह,
फुद्दू राम,
रोंदू सिंह,
रोंदू राम,
रोंदू मल,
खचेडू राम,
खचेडू मल,
लंगड़ा सिंह
इस प्रकार के नाम इलाके के मौलवी और इमामों द्वारा मुफ्त में दिए जाते थे।
क्या आप ऐसे नाम अपने बच्चों के रख सकते हैं … कभी?? शायद नहीं?
*विवाह संस्कार* के लिए इलाके के मौलवी से स्वीकृति लेनी पडती थी, बारात निकालने, ढोल-नगाड़े बजाने पर भी TAX होता था और बारात
किस-किस मार्ग से जाएगी यह भी मौलवी या इमाम ही तय करते थे। *इस्लामिक केन्द्रों के सामने ढोल नगाड़े नहीं बजाये जायेंगे, वहाँ पर से सर झुका कर जाना पड़ेगा।* वर्तमान समय में असम और पश्चिम बंगाल के मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्रों में तो यह आम बात है।
*अंतिम संस्कार* पर तो भारी TAX लगाया जाता था, जिसके कारण यह तक कहा जाता था कि यदि TAX देने का पैसा नहीं है तो इस्लाम स्वीकार करो और कब्रिस्तान में दफना दो।
वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, आजमगढ़, आदि क्षेत्रों में यह आम बात है। केरल, बंगाल, असम के मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्रों में खुल्लम-खुल्ला यह फरमान सुनाया जाता है, जहाँ पर प्रशासन और पुलिस द्वारा कोई सहायता नहीं उपलब्ध करवाई जाती।
इस्लामिक शासन काल में *सनातन गुरुकुल शिक्षा पद्धति* को भी धीरे-धीरे नष्ट किया जाने लगा। औरंगजेब के शासनकाल में तो यह खुल्लम खुल्ला फरमान सुनाया गया था कि
किस प्रकार हिन्दुओं को मुसलमान बनाना है?
किस-किस प्रकार की यातनाएं देनी हैं?
किस प्रकार औरतों का शारीरिक मान मर्दन करना है?
किस प्रकार मन्दिरों को ध्वस्त करना है?
किस प्रकार मूर्तियों का विध्वंस करना है?
*मूर्तियों को तोड़कर उन पर मल-मूत्र का त्याग करके उनको मन्दिर के नीचे ही दबा देना खासकर मंदिरों की सीढ़ियो के नीचे, और फिर उसी के ऊपर मस्जिद का निर्माण कर दिया जाए।*
मन्दिरों के पुजारियों को कत्ल कर दिया जाए। यदि वे इस्लाम कबूल करें तो छोड़ दिया जाए।
जितने भी गुरुकुल हैं उनको ध्वस्त कर दिया जाए और आचार्यों को तत्काल मौत के घाट उतार दिया जाए।
गौशालाओं को अपने नियन्त्रण में ले लिया जाए।
कई मन्दिरों को ध्वस्त करते हुए तो वहाँ पर गाय काटी जाती थी।
वर्तमान समय में औरंगजेब के खुद के हाथों से लिखे ऐसे हस्तलेख हैं जिन पर उसके दस्तखत भी हैं l ऐसे अत्याचारों और दमन के कारण *उपनयन* जैसा अति महत्वपूर्ण संस्कार भी विलुप्ति कि कगार पर पहुँचने लगा l धीरे-धीरे संस्कारों का यह सिलसिला ख़त्म-सा होता चला गया। *वानप्रस्थ* और *सन्यास* संस्कारों को तो लोग भूल ही गए क्योंकि उनका अर्थ ही नहीं ज्ञात हो पाया आनेवाली कई पीढ़ियों को।
*छत्रपति शिवाजी महाराज* द्वारा एक बार *पंजाब* क्षेत्र में Survey करवाया गया था जिसके अनुसार पंजाब के कई क्षेत्र ऐसे थे जहाँ पर लोग *गायत्री महामंत्र* भी भूल चुके थे, उन्हें उसका उच्चारण तो क्या इसके बारे में पता ही नहीं था। धीरे धीरे पंजाब और अन्य क्षेत्रों में छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा ध्वस्त मन्दिरों का निर्माण करवाया गया और कई जगहों पर आचार्यों को भेजा गया जिन्होंने धर्म प्रचार एवं प्रसार के कार्य किये।
एक महत्वपूर्ण बात सामने आती है। कृपया ध्यान से पढ़ें और समझें एक अनोखी कहानी जो भुला दी गयी SICKULAR भारतीय इतिहासकारों द्वारा और नेहरू के द्वारा। औरंगजेब की मृत्यु के 10 वर्ष के अंदर-अंदर ही मुगलिया सल्तनत मिट्टी में मिल चुकी थी। *रंगीले शाह* अपनी रंगीलियों के लिए प्रसिद्ध था और दिन प्रतिदिन मुगलिया सल्तनत कर्जों में डूब रही थीl रंगीले शाह को कर्ज देने में सबसे आगे जयपुर का महाराजा था l एक बार मौका पाकर जयपुर के महाराजा ने अपना कर्जा माँग लिया। रंगीले शाह ने बुरे समय पर जयपुर के महाराजा से सम्बन्ध खराब करना उचित न समझा क्योंकि आगे के लिए कर्ज मिलना बंद हो सकता था जयपुर के महाराज से परन्तु रंगीले शाह ने जयपुर के महाराजा की रियासतों को बढ़ाकर बहुत ही ज्यादा विस्तृत कर दिया और कहा कि जो नए क्षेत्र आपको दिए गए हैं आप वहाँ से अपना कर वसूलें जिससे कि कर्ज उतर जाए। जयपुर के महाराज के प्रभाव क्षेत्र में अब गंगा किनारे ब्रजघाट, आगरा, बिजनौर, सहारनपुर, पानीपत, सोनीपत आदि बहुत से क्षेत्र भी सम्मिलित हो गए। इन क्षेत्रों में संस्कारों के ऊपर लगने वाले TAX - जजिया और महसूल आदि धार्मिक TAXES के कारण जनता त्राहि-त्राहि कर रही थी और जयपुर के महाराजा के प्रभाव क्षेत्र में आने के कारण सनातन धर्मी अपनी आशाएं लगाकर बैठे थे कि अब यह पैशाचिक सिलसिला बंद होगा। परन्तु जयपुर के महाराजा ने TAXES वापिस नहीं लिए।
मराठा साम्राज्य के पेशवा के *राजदूत दीनानाथ शर्मा* उन दिनों जयपुर में नियुक्त थे। उन्होंने
भरतपुर के *जाट नेता बदनसिंह* की मदद की और जाटों की अपनी ही एक सेना बनवा डाली जिनको पेशवा द्वारा मान्यता भी दिलवा दी गयी और 5000 की मनसबदारी भी दिलवा दी गयी। धीरे-धीरे बदनसिंह ने अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाया और दीनानाथ शर्मा के कहने पर समस्त जगहों से मुस्लिम TAXES से पाबंदी हटवाने लगेl
जयपुर के महाराजा नि:सहाय हो गए क्योंकि पेशवा से सीधे टकराव उनके लिए सम्भव नहीं था। इन्हीं दिनों ब्रजघाट तक का क्षेत्र जाटों द्वारा मुक्त करवा लिया गया जिसका नाम रखा गया - *गढ़मुक्तेश्वर*।
बदन सिंह और राजा सूरजमल ने बहुत से क्षेत्रों पर अपना प्रभाव स्थापित किया और मुस्लिम अत्याचारों से मुक्ति दिलवाने का कार्य किया। फिर भी ऐसी समस्याएं यदाकदा सामने आ ही जाती थीं कि कई-कई जगहों पर मुस्लिम हिन्दुओं को घेरकर उनसे TAX लेते थे या फिर संस्कारों के कार्यों में विघ्न पैदा करते थे। इस समस्या से निपटने के लिए आगे चलकर बदनसिंह के बाद राजा सूरजमल ने *गंगा-महायज्ञ* का आयोजन किया जिसमे गंगोत्री से 11000 कलश मंगवाए गए गंगाजल के और उन्हें *भरतपुर* के पास ही *सुजान गंगा* के नाम से स्थापित करवाया और सभी देवी देवताओं को स्थापित करवाया गया और बहुत से मन्दिरों का निर्माण करवाया गया। सुजान गंगा पर आनेवाले कई वर्षों तक संस्कारों के कार्य होते रहे।
1947 के बाद *नेहरू और SICKULAR जमात* ने मिलकर सुजान गंगा का अस्तित्व समाप्त कर दिया। उसमें आसपास के सारे गंदे नाले मिलवा दिए और आसपास की फेक्टरियों का गंदा पानी आदि उसमें गिरवा दिया। आसपास के लोग मल-मूत्र त्याग करने लगे। इसी वर्ष हुए एक सर्वे के अनुसार सुजानगंगा के चारों और 650 से ज्यादा लोगों द्वारा प्रतिदिन मल-मूत्र त्याग किया जाता है।
आप सबसे विनम्र अनुरोध है कि अपने इतिहास को जानें जोकि आवश्यक है। अपने पूर्वजों के इतिहास जो जानें और समझने का प्रयास करें। उनके द्वारा स्थापित किये गए सिद्धांतों को जीवित रखें। *जिस सनातन संस्कृति को जीवित रखने के लिए और अखंड भारत की सीमाओं की रक्षा हेतु हमारे असंख्य पूर्वजों ने अपने शौर्य और पराक्रम से अनेकों बार अपने प्राणों तक की आहुति दी गयी हो, उसे हम किस प्रकार आसानी से भुलाते जा रहे हैं*। 💣💣💣
from Tumblr http://ift.tt/2diesDw
via
IFTTT